romantic-ghazals

tiri hi shakl ke but hain kai taraashe hue..

tiri hi shakl ke but hain kai taraashe hue
na pooch kaa'ba-e-dil mein bhi kya tamaashe hue

hamaari laash ko maidan-e-ishq mein pehchaan
bujhi hui si hain aankhen to dil kharaashe hue

b-waqt-e-wasl koi baat bhi na ki ham ne
zabaan thi sookhi hui hont irtia'ashe hue

vo kaise baat ko tolenge aur boleinge
jo pal mein tole hue aur pal mein maashe hue

mazaak chhod bata ye ki mujh se kya parda
tire nuqoosh hain saare mere talashe hue

main tere shehar se nikla tha ain us lamha
tire nikaah pe taqseem jab bataashe hue 
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तिरी ही शक्ल के बुत हैं कई तराशे हुए
न पूछ का'बा-ए-दिल में भी क्या तमाशे हुए

हमारी लाश को मैदान-ए-इश्क़ में पहचान
बुझी हुई सी हैं आँखें तो दिल ख़राशे हुए

ब-वक़्त-ए-वस्ल कोई बात भी न की हम ने
ज़बाँ थी सूखी हुई होंट इर्तिआ'शे हुए

वो कैसे बात को तोलेंगे और बोलेंगे
जो पल में तोले हुए और पल में माशे हुए

मज़ाक़ छोड़ बता ये कि मुझ से क्या पर्दा
तिरे नुक़ूश हैं सारे मिरे तलाशे हुए

मैं तेरे शहर से निकला था ऐन उस लम्हा
तिरे निकाह पे तक़्सीम जब बताशे हुए
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Ye jo mujh par nikhar hai sain..

ye jo mujh par nikhar hai sain
aap hi ki bahar hai sain

aap chahen to jaan bhi le len
aap ko iḳhtiyar hai sain

tum milate ho bichhde logon ko
ek mera bhi yaar hai sain

kisi khunTi se bandh diije use
dil baḌa be-mahar hai sain

'ishq men laghzishon pe kiije muāf
sain ye pahli baar hai sain

kul mila kar hai jo bhi kuchh mera
aap se musta'ar hai sain

ek kashti bana hi diije mujhe
koi dariya ke paar hai sain

roz aansu kama ke laata huun
gham mira rozgar hai sain

vusat-e-rizq ki dua diije
dard Ka karobar hai sain

ḳhar-zaron se ho ke aaya huun
pairahan tar-tar hai sain

kabhi aa kar to dekhiye ki ye dil
kaisa ujḌa dayar hai sain
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यह जो मुझ पर निखार है साईं
आप ही की बहार है साईं

आप चाहें तो जान भी ले लें
आप को इख़्तियार है साईं

तुम मिलाते हो बिछड़े लोगों को
एक मेरा भी यार है साईं

किसी खूंटी से बाँध दीजिए उसे
दिल बड़ा बे-महार है साईं

'इश्क़ में ल़ग्ज़िशों पे कीजिए माफ़
साईं ये पहली बार है साईं

कुल मिला कर है जो भी कुछ मेरा
आप से मुस्तआ'र है साईं

एक कश्ती बना ही दीजिए मुझे
कोई दरिया के पार है साईं

रोज़ आँसू कमा के लाता हूँ
ग़म मेरा रोज़गार है साईं

वुसअत-ए-रिज़्क़ की दुआ दीजिए
दर्द का कारोबार है साईं

खार-ज़ारों से हो के आया हूँ
पहनावा तार-तार है साईं

कभी आ कर तो देखिए कि ये दिल
कैसा उजड़ा दयार है साईं

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ik lafz-e-mohabbat ka adna ye fasana hai..

ik lafz-e-mohabbat ka adna ye fasana hai
simTe to dil-e-ashiq phaile to zamana hai

ye kis ka tasavvur hai ye kis ka fasana hai
jo ashk hai ankhon men tasbih ka daana hai

dil sang-e-malamat ka har-chand nishana hai
dil phir bhi mira dil hai dil hi to zamana hai

ham ishq ke maron ka itna hi fasana hai
rone ko nahin koi hansne ko zamana hai

vo aur vafa-dushman manenge na maana hai
sab dil ki shararat hai ankhon ka bahana hai

shair huun main shair huun mera hi zamana hai
fitrat mira aina qudrat mira shana hai

jo un pe guzarti hai kis ne use jaana hai
apni hi musibat hai apna hi fasana hai

kya husn ne samjha hai kya ishq ne jaana hai
ham ḳhak-nashinon ki Thokar men zamana hai

aghaz-e-mohabbat hai aana hai na jaana hai
ashkon ki hukumat hai aahon ka zamana hai

ankhon men nami si hai chup chup se vo baiThe hain
nazuk si nigahon men nazuk sa fasana hai

ham dard-ba-dil nalan vo dast-ba-dil hairan
ai ishq to kya zalim tera hi zamana hai

ya vo the ḳhafa ham se ya ham hain ḳhafa un se
kal un ka zamana tha aaj apna zamana hai

ai ishq-e-junun-pesha haan ishq-e-junun-pesha
aaj ek sitamgar ko hans hans ke rulana hai

thoḌi si ijazat bhi ai bazm-gah-e-hasti
aa nikle hain dam-bhar ko rona hai rulana hai

ye ishq nahin asan itna hi samajh liije
ik aag ka dariya hai aur Duub ke jaana hai

ḳhud husn-o-shabab un ka kya kam hai raqib apna
jab dekhiye ab vo hain aina hai shana hai

tasvir ke do ruḳh hain jaan aur gham-e-janan
ik naqsh chhupana hai ik naqsh dikhana hai

ye husn-o-jamal un ka ye ishq-o-shabab apna
jiine ki tamanna hai marne ka zamana hai

mujh ko isi dhun men hai har lahza basar karna
ab aae vo ab aae lazim unhen aana hai

ḳhuddari-o-mahrumi mahrumi-o-ḳhuddari
ab dil ko ḳhuda rakkhe ab dil ka zamana hai

ashkon ke tabassum men aahon ke tarannum men
maasum mohabbat ka maasum fasana hai

aansu to bahut se hain ankhon men 'jigar' lekin
bandh jaae so moti hai rah jaae so daana hai
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इक शब्द-ए-मोहब्बत का अदना ये फसाना है
सिमटे तो दिल-ए-आशिक़, फैले तो ज़माना है

ये किस का तसव्वुर है, ये किस का फसाना है
जो अश्क है आँखों में, तसबीह का दाना है

दिल संग-ए-मलामत का हरचंद निशाना है
दिल फिर भी मेरा दिल है, दिल ही तो ज़माना है

हम इश्क़ के मारे का इतना ही फसाना है
रोने को नहीं कोई, हंसने को ज़माना है

वो और वफ़ा-दुश्मन मानेंगे न मानना है
सब दिल की शरारत है, आँखों का बहाना है

शायर हूँ मैं, शायर हूँ, मेरा ही ज़माना है
फितरत मेरा आईना, क़ुदरत मेरा शाना है

जो उन पे गुज़रती है, किस ने उसे जाना है
अपनी ही मुसीबत है, अपना ही फसाना है

क्या हुस्न ने समझा है, क्या इश्क़ ने जाना है
हम ख़ाक-नशीनों की ठोकर में ज़माना है

आ़ग़ाज़-ए-मोहब्बत है, आना है न जाना है
आँखों की हुकूमत है, आहों का ज़माना है

आँखों में नमी सी है, चुप चुप से वो बैठे हैं
नाज़ुक सी निगाहों में, नाज़ुक सा फसाना है

हम दर्द-बर-दिल नालाँ, वो दस्त-बर-दिल हैराँ
ए इश्क़ तो क्या ज़ालिम, तेरा ही ज़माना है

या वो थे ख़फ़ा हम से, या हम हैं ख़फ़ा उन से
कल उनका ज़माना था, आज अपना ज़माना है

ए इश्क़-ए-जनून-पेशा, हाँ इश्क़-ए-जनून-पेशा
आज एक सितमगर को हंसी हंसी के रुलाना है

थोड़ी सी इजाज़त भी ए बज़्म-गाह-ए-हस्ती
आ निकले हैं दम भर को रोना है, रुलाना है

ये इश्क़ नहीं आसान, इतना ही समझ लीजिए
एक आग का दरिया है और डूब के जाना है

ख़ुद हुस्न-ओ-शबाब उनका, क्या कम है रक़ीब अपना
जब देखिए अब वो हैं, आईना है शाना है

तस्वीर के दो रुख हैं, जान और ग़म-ए-जानाँ
एक नक़्श छुपाना है, एक नक़्श दिखाना है

ये हुस्न-ओ-जमाल उनका, ये इश्क़-ओ-शबाब अपना
जीने की तमन्ना है, मरने का ज़माना है

मुझ को इसी धुन में है, हर लम्हा बसर करना
अब आए वो, अब आए, लाज़िम उन्हें आना है

ख़ुद्दारी-ओ-मह्रूमी, मह्रूमी-ओ-ख़ुद्दारी
अब दिल को ख़ुदा रखे, अब दिल का ज़माना है

आँखों के तबस्सुम में, आहों के तरन्नुम में
मासूम मोहब्बत का मासूम फसाना है

आँसू तो बहुत से हैं आँखों में 'जिगर' लेकिन
बाँध जाए सो मोती है, रह जाए सो दाना है
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Tire ishq ki intiha chahta huun..

tire ishq ki intiha chahta huun
miri sadgi dekh kya chahta huun

sitam ho ki ho vada-e-be-hijabi
koi baat sabr-azma chahta huun

ye jannat mubarak rahe zahidon ko
ki main aap ka samna chahta huun

zara sa to dil huun magar shoḳh itna
vahi lan-tarani suna chahta huun

koi dam ka mehman huun ai ahl-e-mahfil
charagh-e-sahar huun bujha chahta huun

bhari bazm men raaz ki baat kah di
baḌa be-adab huun saza chahta huun
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तेरे इश्क की इंतिहा चाहता हूँ
मेरी साधगी देख क्या चाहता हूँ

सितम हो कि हो वादा-ए-बे-हिजाबी
कोई बात सब्र-आज़मा चाहता हूँ

ये जन्नत मुबारक रहे ज़ाहिदों को
कि मैं आप का सामना चाहता हूँ

ज़रासा तो दिल हूँ मगर शोख़ इतना
वही लंत-तरानी सुना चाहता हूँ

कोई दम का मेहमान हूँ ऐ अहल-ए-महफ़िल
चिराग़-ए-सहर हूँ बुझा चाहता हूँ

भरी महफ़िल में राज़ की बात कह दी
बड़ा बे-अदब हूँ सज़ा चाहता हूँ

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Aap ka etibar kaun kare..

aap ka etibar kaun kare
roz ka intizar kaun kare

zikr-e-mehr-o-vafa to ham karte
par tumhen sharmsar kaun kare

ho jo us chashm-e-mast se be-ḳhud
phir use hoshiyar kaun kare

tum to ho jaan ik zamane ki
jaan tum par nisar kaun kare

afat-e-rozgar jab tum ho
shikva-e-rozgar kaun kare

apni tasbih rahne de Zahid
daana daana shumar kaun kare

hijr men zahr kha ke mar jaun
maut Ka intizar kaun kare

aankh hai turk zulf hai sayyad
dekhen dil ka shikar kaun kare

Vada karte nahin ye kahte hain
tujh ko ummīd-var kaun kare

'dagh ki shakl dekh kar bole
aisi surat ko pyaar kaun kare
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आप का एतिबार कौन करे
रोज़ का इंतज़ार कौन करे

ज़िक्र-ए-महरो-वफ़ा तो हम करते
पर तुम्हें शर्मसार कौन करे

हो जो उस चश्म-ए-मस्त से बे-ख़ुद
फिर उसे होशियार कौन करे

तुम तो हो जान एक ज़माने की
जान तुम पर निसार कौन करे

आफ़त-ए-रोज़गार जब तुम हो
शिकवा-ए-रोज़गार कौन करे

अपनी तस्बीह रहने दे ज़ाहिद
दाना दाना शुमार कौन करे

हिज्र में ज़हर खा के मर जाऊं
मौत का इंतज़ार कौन करे

आँख है तुर्क ज़ुल्फ है सैय्याद
देखें दिल का शिकार कौन करे

वादा करते नहीं ये कहते हैं
तुझ को उम्मीद-वार कौन करे

'दाग' की शक्ल देख कर बोले
ऐसी सूरत को प्यार कौन करे

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Jab se usne kheecha hai khidki ka parda ek taraf..

जब से उसने खींचा है खिड़की का पर्दा एक तरफ़
उसका कमरा एक तरफ़ है बाक़ी दुनिया एक तरफ़

मैंने अब तक जितने भी लोगों में ख़ुद को बाँटा है
बचपन से रखता आया हूँ तेरा हिस्सा एक तरफ़

एक तरफ़ मुझे जल्दी है उसके दिल में घर करने की
एक तरफ़ वो कर देता है रफ़्ता रफ़्ता एक तरफ़

यूँ तो आज भी तेरा दुख दिल दहला देता है लेकिन
तुझ से जुदा होने के बाद का पहला हफ़्ता एक तरफ़

उसकी आँखों ने मुझसे मेरी ख़ुद्दारी छीनी वरना
पाँव की ठोकर से कर देता था मैं दुनिया एक तरफ़

मेरी मर्ज़ी थी मैं ज़र्रे चुनता या लहरें चुनता
उसने सहरा एक तरफ़ रक्खा और दरिया एक तरफ़
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Barso purana dost Mila jaise gair ho..

बरसों पुराना दोस्त मिला जैसे ग़ैर हो
देखा रुका झिझक के कहा तुम उमैर हो

मिलते हैं मुश्किलों से यहाँ हम-ख़याल लोग
तेरे तमाम चाहने वालों की ख़ैर हो

कमरे में सिगरेटों का धुआँ और तेरी महक
जैसे शदीद धुंध में बाग़ों की सैर हो

हम मुत्मइन बहुत हैं अगर ख़ुश नहीं भी हैं
तुम ख़ुश हो क्या हुआ जो हमारे बग़ैर हो

पैरों में उसके सर को धरें इल्तिजा करें
इक इल्तिजा कि जिसका न सर हो न पैर हो
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us ke nazdik gham-e-tark-e-wafa kuch bhi nahin..

उस के नज़दीक ग़म-ए-तर्क-ए-वफ़ा कुछ भी नहीं
मुतमइन ऐसा है वो जैसे हुआ कुछ भी नहीं

अब तो हाथों से लकीरें भी मिटी जाती हैं
उस को खो कर तो मिरे पास रहा कुछ भी नहीं

चार दिन रह गए मेले में मगर अब के भी
उस ने आने के लिए ख़त में लिखा कुछ भी नहीं

कल बिछड़ना है तो फिर अहद-ए-वफ़ा सोच के बाँध
अभी आग़ाज़-ए-मोहब्बत है गया कुछ भी नहीं

मैं तो इस वास्ते चुप हूँ कि तमाशा न बने
तू समझता है मुझे तुझ से गिला कुछ भी नहीं

ऐ 'शुमार' आँखें इसी तरह बिछाए रखना
जाने किस वक़्त वो आ जाए पता कुछ भी नहीं

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us ke nazdik gham-e-tark-e-vafa kuchh bhi nahin
mutma.in aisa hai vo jaise hua kuchh bhi nahin

ab to hathon se lakiren bhi miTi jaati hain
us ko kho kar to mire paas raha kuchh bhi nahin

chaar din rah ga.e mele men magar ab ke bhi
us ne aane ke liye ḳhat men likha kuchh bhi nahin

kal bichhaḌna hai to phir ahd-e-vafa soch ke bandh
abhi aghaz-e-mohabbat hai gaya kuchh bhi nahin

main to is vaste chup huun ki tamasha na bane
tu samajhta hai mujhe tujh se gila kuchh bhi nahin

ai ‘shumar’ ankhen isi tarah bichha.e rakhna
jaane kis vaqt vo aa jaa.e pata kuchh bhi nahin
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tum apna ranj-o-ghum apni pareshaani mujhe de do..

तुम अपना रंज-ओ-ग़म अपनी परेशानी मुझे दे दो
तुम्हें ग़म की क़सम इस दिल की वीरानी मुझे दे दो 

ये माना मैं किसी क़ाबिल नहीं हूँ इन निगाहों में
बुरा क्या है अगर ये दुख ये हैरानी मुझे दे दो

मैं देखूँ तो सही दुनिया तुम्हें कैसे सताती है
कोई दिन के लिए अपनी निगहबानी मुझे दे दो 

वो दिल जो मैं ने माँगा था मगर ग़ैरों ने पाया है
बड़ी शय है अगर उस की पशेमानी मुझे दे दो

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tum apanaa ra.nj-o-Gam, apani pareshaan mujhe de do 
tumhe.n gham kii qasam, is dil kI virAni mujhe de do

ye maanaa mai.n kisii qaabil nahii.n huu.N in nigaaho.n me.n
buraa kyaa hai agar, ye dukh ye hairaani mujhe de do

mai.n dekhuu.n to sahii, duniyaa tumhe.n kaise sataati hai 
koi din ke liye, apni nigahabaani mujhe de do

vo dil jo maine maa.ngaa thaa magar gairo.n ne paayaa
ba.Dk shai hai agar, usaki pashemaani mujhe de do
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phone to dur waha khat bhi nahi pahuchenge..

फ़ोन तो दूर वहाँ ख़त भी नहीं पहुँचेंगे
अब के ये लोग तुम्हें ऐसी जगह भेजेंगे

ज़िंदगी देख चुके तुझ को बड़े पर्दे पर
आज के बअ'द कोई फ़िल्म नहीं देखेंगे

मसअला ये है मैं दुश्मन के क़रीं पहुँचूँगा
और कबूतर मिरी तलवार पे आ बैठेंगे

हम को इक बार किनारों से निकल जाने दो
फिर तो सैलाब के पानी की तरह फैलेंगे

तू वो दरिया है अगर जल्दी नहीं की तू ने
ख़ुद समुंदर तुझे मिलने के लिए आएँगे

सेग़ा-ए-राज़ में रक्खेंगे नहीं इश्क़ तिरा
हम तिरे नाम से ख़ुशबू की दुकाँ खोलेंगे
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jab raat ki tanhaai dil ban ke dhadkati hai..

jab raat ki tanhaai dil ban ke dhadkati hai
yaadon ke dareechon mein chilman si sarkati hai

loban mein chingaari jaise koi rakh jaaye
yun yaad tiri shab bhar seene mein sulagti hai

yun pyaar nahin chhupta palkon ke jhukaane se
aankhon ke lifaafon mein tahreer chamakti hai

khush-rang parindon ke laut aane ke din aaye
bichhde hue milte hain jab barf pighalti hai

shohrat ki bulandi bhi pal bhar ka tamasha hai
jis daal pe baithe ho vo toot bhi sakti hai 
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जब रात की तन्हाई दिल बन के धड़कती है
यादों के दरीचों में चिलमन सी सरकती है

लोबान में चिंगारी जैसे कोई रख जाए
यूँ याद तिरी शब भर सीने में सुलगती है

यूँ प्यार नहीं छुपता पलकों के झुकाने से
आँखों के लिफ़ाफ़ों में तहरीर चमकती है

ख़ुश-रंग परिंदों के लौट आने के दिन आए
बिछड़े हुए मिलते हैं जब बर्फ़ पिघलती है

शोहरत की बुलंदी भी पल भर का तमाशा है
जिस डाल पे बैठे हो वो टूट भी सकती है
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khushboo ki tarah aaya vo tez hawaon mein..

khushboo ki tarah aaya vo tez hawaon mein
maanga tha jise ham ne din raat duaon mein

tum chat pe nahin aaye main ghar se nahin nikla
ye chaand bahut bhatka saawan ki ghataon mein

is shehar mein ik ladki bilkul hai ghazal jaisi
bijli si ghataon mein khushboo si adaaon mein

mausam ka ishaara hai khush rahne do bacchon ko
maasoom mohabbat hai phoolon ki khataaon mein

ham chaand sitaaron ki raahon ke musaafir hain
ham raat chamakte hain tareek khalaon mein

bhagwaan hi bhejenge chaawal se bhari thaali
mazloom parindon ki maasoom sabhaaon mein

daada bade bhole the sab se yahi kahte the
kuchh zahar bhi hota hai angrezee davaaon mein 
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ख़ुशबू की तरह आया वो तेज़ हवाओं में
माँगा था जिसे हम ने दिन रात दुआओं में

तुम छत पे नहीं आए मैं घर से नहीं निकला
ये चाँद बहुत भटका सावन की घटाओं में

इस शहर में इक लड़की बिल्कुल है ग़ज़ल जैसी
बिजली सी घटाओं में ख़ुशबू सी अदाओं में

मौसम का इशारा है ख़ुश रहने दो बच्चों को
मासूम मोहब्बत है फूलों की ख़ताओं में

हम चाँद सितारों की राहों के मुसाफ़िर हैं
हम रात चमकते हैं तारीक ख़लाओं में

भगवान ही भेजेंगे चावल से भरी थाली
मज़लूम परिंदों की मासूम सभाओं में

दादा बड़े भोले थे सब से यही कहते थे
कुछ ज़हर भी होता है अंग्रेज़ी दवाओं में
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khuda ham ko aisi khudaai na de..

khuda ham ko aisi khudaai na de
ki apne siva kuchh dikhaai na de

khata-waar samjhegi duniya tujhe
ab itni ziyaada safaai na de

haso aaj itna ki is shor mein
sada siskiyon kii sunaai na de

ghulaami ko barkat samajhne lagen
asiroon ko aisi rihaai na de

khuda aise ehsaas ka naam hai
rahe saamne aur dikhaai na de 
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ख़ुदा हम को ऐसी ख़ुदाई न दे
कि अपने सिवा कुछ दिखाई न दे

ख़ता-वार समझेगी दुनिया तुझे
अब इतनी ज़ियादा सफ़ाई न दे

हँसो आज इतना कि इस शोर में
सदा सिसकियों की सुनाई न दे

ग़ुलामी को बरकत समझने लगें
असीरों को ऐसी रिहाई न दे

ख़ुदा ऐसे एहसास का नाम है
रहे सामने और दिखाई न दे
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she'r mere kahaan the kisi ke liye..

she'r mere kahaan the kisi ke liye
maine sab kuchh likha hai tumhaare liye

apne dukh sukh bahut khoobsurat rahe
ham jiye bhi to ik doosre ke liye

hum-safar ne mera saath chhodaa nahin
apne aansu diye raaste ke liye

is haveli mein ab koii rehta nahin
chaand nikla kise dekhne ke liye

zindagi aur main do alag to nahin
main ne sab phool kaate isi se liye

shehar mein ab mera koii dushman nahin
sab ko apna liya maine tere liye

zehan mein titliyan ud rahi hain bahut
koii dhaaga nahin baandhne ke liye

ek tasveer ghazalon mein aisi bani
agle pichhle zamaanon ke chehre liye 
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शे'र मेरे कहाँ थे किसी के लिए
मैंने सब कुछ लिखा है तुम्हारे लिए

अपने दुख सुख बहुत ख़ूबसूरत रहे
हम जिए भी तो इक दूसरे के लिए

हम-सफ़र ने मिरा साथ छोड़ा नहीं
अपने आँसू दिए रास्ते के लिए

इस हवेली में अब कोई रहता नहीं
चाँद निकला किसे देखने के लिए

ज़िंदगी और मैं दो अलग तो नहीं
मैं ने सब फूल काटे इसी से लिए

शहर में अब मिरा कोई दुश्मन नहीं
सब को अपना लिया मैंने तेरे लिए

ज़ेहन में तितलियाँ उड़ रही हैं बहुत
कोई धागा नहीं बाँधने के लिए

एक तस्वीर ग़ज़लों में ऐसी बनी
अगले पिछले ज़मानों के चेहरे लिए
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parakhnaa mat parkhne mein koi apna nahin rehta..

parakhnaa mat parkhne mein koi apna nahin rehta
kisi bhi aaine mein der tak chehra nahin rehta

bade logon se milne mein hamesha fasla rakhna
jahaan dariya samundar se mila dariya nahin rehta

hazaaron sher mere so gaye kaaghaz ki qabron mein
ajab maa hoon koi baccha mera zinda nahin rehta

mohabbat ek khushboo hai hamesha saath chalti hai
koi insaan tanhaai mein bhi tanhaa nahin rehta 
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परखना मत परखने में कोई अपना नहीं रहता
किसी भी आइने में देर तक चेहरा नहीं रहता

बड़े लोगों से मिलने में हमेशा फ़ासला रखना
जहाँ दरिया समुंदर से मिला दरिया नहीं रहता

हज़ारों शेर मेरे सो गए काग़ज़ की क़ब्रों में
अजब माँ हूँ कोई बच्चा मिरा ज़िंदा नहीं रहता

मोहब्बत एक ख़ुशबू है हमेशा साथ चलती है
कोई इंसान तन्हाई में भी तन्हा नहीं रहता
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dhundh raha hai farang aish-e-jahaan ka davaam..

dhundh raha hai farang aish-e-jahaan ka davaam
waa-e-tamannaa-e-khaam waa-e-tamannaa-e-khaam

peer-e-haram ne kaha sun ke meri rooyedaad
pukhta hai teri fugaan ab na ise dil mein thaam

tha areni go kaleem main areni go nahin
us ko taqaza rawa mujh pe taqaza haraam

garche hai ifshaa-e-raaz ahl-e-nazar ki fugaan
ho nahin saka kabhi sheva-e-rindaana aam

halkaa-e-suufi mein zikr be-nam o be-soz-o-saaz
main bhi raha tishna-kaam tu bhi raha tishna-kaam

ishq tiri intiha ishq meri intiha
tu bhi abhi na-tamaam main bhi abhi na-tamaam

aah ki khoya gaya tujh se faqiri ka raaz
warna hai maal-e-faqeer saltanat-e-room-o-shaam 
--------------------------------------------------
ढूँड रहा है फ़रंग ऐश-ए-जहाँ का दवाम
वा-ए-तमन्ना-ए-ख़ाम वा-ए-तमन्ना-ए-ख़ाम

पीर-ए-हरम ने कहा सुन के मेरी रूएदाद
पुख़्ता है तेरी फ़ुग़ाँ अब न इसे दिल में थाम

था अरेनी गो कलीम मैं अरेनी गो नहीं
उस को तक़ाज़ा रवा मुझ पे तक़ाज़ा हराम

गरचे है इफ़शा-ए-राज़ अहल-ए-नज़र की फ़ुग़ाँ
हो नहीं सकता कभी शेवा-ए-रिंदाना आम

हल्क़ा-ए-सूफ़ी में ज़िक्र बे-नम ओ बे-सोज़-ओ-साज़
मैं भी रहा तिश्ना-काम तू भी रहा तिश्ना-काम

इश्क़ तिरी इंतिहा इश्क़ मिरी इंतिहा
तू भी अभी ना-तमाम मैं भी अभी ना-तमाम

आह कि खोया गया तुझ से फ़क़ीरी का राज़
वर्ना है माल-ए-फ़क़ीर सल्तनत-ए-रूम-ओ-शाम
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ejaz hai kisi ka ya gardish-e-zamaana..

ejaz hai kisi ka ya gardish-e-zamaana
toota hai asia mein sehr-e-firangiyaana

taameer-e-aashiyaa se main ne ye raaz paaya
ahl-e-nava ke haq mein bijli hai aashiyana

ye bandagi khudaai vo bandagi gadaai
ya banda-e-khuda ban ya banda-e-zamaana

ghaafil na ho khudi se kar apni paasbaani
shaayad kisi haram ka tu bhi hai aastaana

ai la ilaah ke waaris baaki nahin hai tujh mein
guftaar-e-dilbaraana kirdaar-e-qaahiraana

teri nigaah se dil seenon mein kaanpate the
khoya gaya hai tera jazb-e-qalandaaraana

raaz-e-haram se shaayad iqbaal ba-khabar hai
hain is ki guftugoo ke andaaz mehraamaana 
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एजाज़ है किसी का या गर्दिश-ए-ज़माना
टूटा है एशिया में सेहर-ए-फ़िरंगियाना

तामीर-ए-आशियाँ से मैं ने ये राज़ पाया
अह्ल-ए-नवा के हक़ में बिजली है आशियाना

ये बंदगी ख़ुदाई वो बंदगी गदाई
या बंदा-ए-ख़ुदा बन या बंदा-ए-ज़माना

ग़ाफ़िल न हो ख़ुदी से कर अपनी पासबानी
शायद किसी हरम का तू भी है आस्ताना

ऐ ला इलाह के वारिस बाक़ी नहीं है तुझ में
गुफ़्तार-ए-दिलबराना किरदार-ए-क़ाहिराना

तेरी निगाह से दिल सीनों में काँपते थे
खोया गया है तेरा जज़्ब-ए-क़लंदराना

राज़-ए-हरम से शायद 'इक़बाल' बा-ख़बर है
हैं इस की गुफ़्तुगू के अंदाज़ महरमाना
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na takht-o-taaj mein ne lashkar-o-sipaah mein hai..

na takht-o-taaj mein ne lashkar-o-sipaah mein hai
jo baat mard-e-qalander ki baargaah mein hai

sanam-kada hai jahaan aur mard-e-haq hai khaleel
ye nukta vo hai ki poshida laa-ilah mein hai

wahi jahaan hai tira jis ko tu kare paida
ye sang-o-khisht nahin jo tiri nigaah mein hai

mah o sitaara se aage maqaam hai jis ka
vo musht-e-khaak abhi aawaargaan-e-raah mein hai

khabar mili hai khudaayan-e-bahr-o-bar se mujhe
farang rahguzar-e-sail-e-be-panaah mein hai

talash us ki fazaaon mein kar naseeb apna
jahaan-e-tazaa meri aah-e-subh-gaah mein hai

mere kadu ko ghaneemat samajh ki baada-e-naab
na madarse mein hai baaki na khaanqaah mein hai 
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न तख़्त-ओ-ताज में ने लश्कर-ओ-सिपाह में है
जो बात मर्द-ए-क़लंदर की बारगाह में है

सनम-कदा है जहाँ और मर्द-ए-हक़ है ख़लील
ये नुक्ता वो है कि पोशीदा ला-इलाह में है

वही जहाँ है तिरा जिस को तू करे पैदा
ये संग-ओ-ख़िश्त नहीं जो तिरी निगाह में है

मह ओ सितारा से आगे मक़ाम है जिस का
वो मुश्त-ए-ख़ाक अभी आवारगान-ए-राह में है

ख़बर मिली है ख़ुदायान-ए-बहर-ओ-बर से मुझे
फ़रंग रहगुज़र-ए-सैल-ए-बे-पनाह में है

तलाश उस की फ़ज़ाओं में कर नसीब अपना
जहान-ए-ताज़ा मिरी आह-ए-सुब्ह-गाह में है

मिरे कदू को ग़नीमत समझ कि बादा-ए-नाब
न मदरसे में है बाक़ी न ख़ानक़ाह में है
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ki haq se farishton ne iqbaal ki gammaazi..

ki haq se farishton ne iqbaal ki gammaazi
gustaakh hai karta hai fitrat ki hina-bandi

khaaki hai magar is ke andaaz hain aflaaki
roomi hai na shaami hai kaashi na samarqandi

sikhlaai farishton ko aadam ki tadap us ne
aadam ko sikhaata hai aadaab-e-khudaavandi 
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की हक़ से फ़रिश्तों ने 'इक़बाल' की ग़म्माज़ी
गुस्ताख़ है करता है फ़ितरत की हिना-बंदी

ख़ाकी है मगर इस के अंदाज़ हैं अफ़्लाकी
रूमी है न शामी है काशी न समरक़ंदी

सिखलाई फ़रिश्तों को आदम की तड़प उस ने
आदम को सिखाता है आदाब-ए-ख़ुदावंदी
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apni jaulaan-gaah zer-e-aasmaan samjha tha main..

apni jaulaan-gaah zer-e-aasmaan samjha tha main
aab o gil ke khel ko apna jahaan samjha tha main

be-hijaabi se tiri toota nigaahon ka tilism
ik rida-e-neel-goon ko aasmaan samjha tha main

kaarwaan thak kar fazaa ke pech-o-kham mein rah gaya
mehr o maah o mushtari ko hum-inaan samjha tha main

ishq ki ik jast ne tay kar diya qissa tamaam
is zameen o aasmaan ko be-karaan samjha tha main

kah gaeein raaz-e-mohabbat parda-daari-ha-e-shauq
thi fugaan vo bhi jise zabt-e-fughaan samjha tha main

thi kisi darmaanda rah-rau ki sada-e-dardnaak
jis ko aawaaz-e-raheel-e-kaarvaan samjha tha main 
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अपनी जौलाँ-गाह ज़ेर-ए-आसमाँ समझा था मैं
आब ओ गिल के खेल को अपना जहाँ समझा था मैं

बे-हिजाबी से तिरी टूटा निगाहों का तिलिस्म
इक रिदा-ए-नील-गूँ को आसमाँ समझा था मैं

कारवाँ थक कर फ़ज़ा के पेच-ओ-ख़म में रह गया
मेहर ओ माह ओ मुश्तरी को हम-इनाँ समझा था मैं

इश्क़ की इक जस्त ने तय कर दिया क़िस्सा तमाम
इस ज़मीन ओ आसमाँ को बे-कराँ समझा था मैं

कह गईं राज़-ए-मोहब्बत पर्दा-दारी-हा-ए-शौक़
थी फ़ुग़ाँ वो भी जिसे ज़ब्त-ए-फ़ुग़ाँ समझा था मैं

थी किसी दरमाँदा रह-रौ की सदा-ए-दर्दनाक
जिस को आवाज़-ए-रहील-ए-कारवाँ समझा था मैं
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kushaada dast-e-karam jab vo be-niyaaz kare..

kushaada dast-e-karam jab vo be-niyaaz kare
niyaaz-mand na kyun aajizi pe naaz kare

bitha ke arsh pe rakha hai tu ne ai wa'iz
khuda vo kya hai jo bandon se ehtiraaz kare

meri nigaah mein vo rind hi nahin saaqi
jo hoshiyaari o masti mein imtiyaaz kare

mudaam gosh-b-dil rah ye saaz hai aisa
jo ho shikasta to paida nawa-e-raaz kare

koi ye pooche ki wa'iz ka kya bigadta hai
jo be-amal pe bhi rahmat vo be-niyaaz kare

sukhun mein soz ilaahi kahaan se aata hai
ye cheez vo hai ki patthar ko bhi gudaaz kare

tameez-e-laala-o-gul se hai naala-e-bulbul
jahaan mein vaa na koi chashm-e-imtiyaaz kare

ghuroor-e-zohad ne sikhla diya hai wa'iz ko
ki bandagaan-e-khuda par zabaan daraaz kare

hawa ho aisi ki hindostaan se ai iqbaal
uda ke mujh ko ghubaar-e-rah-e-hijaaz kare 
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कुशादा दस्त-ए-करम जब वो बे-नियाज़ करे
नियाज़-मंद न क्यूँ आजिज़ी पे नाज़ करे

बिठा के अर्श पे रक्खा है तू ने ऐ वाइ'ज़
ख़ुदा वो क्या है जो बंदों से एहतिराज़ करे

मिरी निगाह में वो रिंद ही नहीं साक़ी
जो होशियारी ओ मस्ती में इम्तियाज़ करे

मुदाम गोश-ब-दिल रह ये साज़ है ऐसा
जो हो शिकस्ता तो पैदा नवा-ए-राज़ करे

कोई ये पूछे कि वाइ'ज़ का क्या बिगड़ता है
जो बे-अमल पे भी रहमत वो बे-नियाज़ करे

सुख़न में सोज़ इलाही कहाँ से आता है
ये चीज़ वो है कि पत्थर को भी गुदाज़ करे

तमीज़-ए-लाला-ओ-गुल से है नाला-ए-बुलबुल
जहाँ में वा न कोई चश्म-ए-इम्तियाज़ करे

ग़ुरूर-ए-ज़ोहद ने सिखला दिया है वाइ'ज़ को
कि बंदगान-ए-ख़ुदा पर ज़बाँ दराज़ करे

हवा हो ऐसी कि हिन्दोस्ताँ से ऐ 'इक़बाल'
उड़ा के मुझ को ग़ुबार-ए-रह-ए-हिजाज़ करे
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mata-e-be-baha hai dard-o-soz-e-aarzoomandi..

mata-e-be-baha hai dard-o-soz-e-aarzoomandi
maqaam-e-bandagi de kar na luun shaan-e-khudaavandi

tire azaad bandon ki na ye duniya na vo duniya
yahan marne ki paabandi wahan jeene ki paabandi

hijaab ikseer hai aawaara-e-koo-e-mohabbat ko
meri aatish ko bhadrkaati hai teri der-paivandi

guzar-auqaat kar leta hai ye koh o biyaabaan mein
ki shaheen ke liye zillat hai kaar-e-aashiyaan-bandi

ye faizaan-e-nazar tha ya ki khushhaali ki karaamat thi
sikhaaye kis ne ismaail ko aadaab-e-farzandi

ziyaarat-gaah-e-ahl-e-azm-o-himmat hai lahd meri
ki khaak-e-raah ko main ne bataaya raaz-e-alvandi

meri mashshaatgi ki kya zaroorat husn-e-ma'ni ko
ki fitrat khud-b-khud karti hai laale ki hina-bandi 
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मता-ए-बे-बहा है दर्द-ओ-सोज़-ए-आरज़ूमंदी
मक़ाम-ए-बंदगी दे कर न लूँ शान-ए-ख़ुदावंदी

तिरे आज़ाद बंदों की न ये दुनिया न वो दुनिया
यहाँ मरने की पाबंदी वहाँ जीने की पाबंदी

हिजाब इक्सीर है आवारा-ए-कू-ए-मोहब्बत को
मिरी आतिश को भड़काती है तेरी देर-पैवंदी

गुज़र-औक़ात कर लेता है ये कोह ओ बयाबाँ में
कि शाहीं के लिए ज़िल्लत है कार-ए-आशियाँ-बंदी

ये फ़ैज़ान-ए-नज़र था या कि मकतब की करामत थी
सिखाए किस ने इस्माईल को आदाब-ए-फ़रज़ंदी

ज़ियारत-गाह-ए-अहल-ए-अज़्म-ओ-हिम्मत है लहद मेरी
कि ख़ाक-ए-राह को मैं ने बताया राज़-ए-अलवंदी

मिरी मश्शातगी की क्या ज़रूरत हुस्न-ए-मअ'नी को
कि फ़ितरत ख़ुद-ब-ख़ुद करती है लाले की हिना-बंदी
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ya rab ye jahaan-e-guzraan khoob hai lekin..

ya rab ye jahaan-e-guzraan khoob hai lekin
kyun khwaar hain mardaan-e-safa-kesh o hunar-mand

go is ki khudaai mein mahaajan ka bhi hai haath
duniya to samjhti hai farangi ko khuda-wand

tu barg-e-gaya hai na wahi ahl-e-khirad raa
o kisht-e-gul-o-laala b-bakhshad b-khare chand

haazir hain kaleesa mein kebab o may-e-gulgoo'n
masjid mein dhara kya hai b-juz mau'izaa o pand

ahkaam tire haq hain magar apne mufassir
taawil se quraan ko bana sakte hain paazand

firdaus jo tera hai kisi ne nahin dekha
afrang ka har qaryaa hai firdaus ki maanind

muddat se hai aawaara-e-aflaak mera fikr
kar de ise ab chaand ke ghaaron mein nazar-band

fitrat ne mujhe bakshe hain jauhar malaakooti
khaaki hoon magar khaak se rakhta nahin paivand

darvesh-e-khuda-mast na sharqi hai na garbi
ghar mera na dilli na safaahaan na samarkand

kehta hoon wahi baat samajhta hoon jise haq
ne aabla-e-masjid hoon na tahzeeb ka farzand

apne bhi khafa mujh se hain begaane bhi na-khush
main zahar-e-halaahal ko kabhi kah na saka qand

mushkil hai ik banda-e-haq-been-o-haq-andesh
khaashaak ke tode ko kahe koh-e-damaavand

hoon aatish-e-namrood ke sholoon mein bhi khaamosh
main banda-e-momin hoon nahin daana-e-aspand

pur-soz nazar-baaz o niko-been o kam aarzoo
azaad o girftaar o tahee keesa o khursand

har haal mein mera dil-e-be-qaid hai khurram
kya chheenega gunche se koi zauq-e-shakar-khand

chup rah na saka hazrat-e-yazdaan mein bhi iqbaal
karta koi is banda-e-gustaakh ka munh band 
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या रब ये जहान-ए-गुज़राँ ख़ूब है लेकिन
क्यूँ ख़्वार हैं मर्दान-ए-सफ़ा-केश ओ हुनर-मंद

गो इस की ख़ुदाई में महाजन का भी है हाथ
दुनिया तो समझती है फ़रंगी को ख़ुदावंद

तू बर्ग-ए-गया है न वही अहल-ए-ख़िरद रा
ओ किश्त-ए-गुल-ओ-लाला ब-बख़शद ब-ख़रे चंद

हाज़िर हैं कलीसा में कबाब ओ मय-ए-गुलगूँ
मस्जिद में धरा क्या है ब-जुज़ मौइज़ा ओ पंद

अहकाम तिरे हक़ हैं मगर अपने मुफ़स्सिर
तावील से क़ुरआँ को बना सकते हैं पाज़ंद

फ़िरदौस जो तेरा है किसी ने नहीं देखा
अफ़रंग का हर क़र्या है फ़िरदौस की मानिंद

मुद्दत से है आवारा-ए-अफ़्लाक मिरा फ़िक्र
कर दे इसे अब चाँद के ग़ारों में नज़र-बंद

फ़ितरत ने मुझे बख़्शे हैं जौहर मलाकूती
ख़ाकी हूँ मगर ख़ाक से रखता नहीं पैवंद

दरवेश-ए-ख़ुदा-मस्त न शर्क़ी है न ग़र्बी
घर मेरा न दिल्ली न सफ़ाहाँ न समरक़ंद

कहता हूँ वही बात समझता हूँ जिसे हक़
ने आबला-ए-मस्जिद हूँ न तहज़ीब का फ़रज़ंद

अपने भी ख़फ़ा मुझ से हैं बेगाने भी ना-ख़ुश
मैं ज़हर-ए-हलाहल को कभी कह न सका क़ंद

मुश्किल है इक बंदा-ए-हक़-बीन-ओ-हक़-अंदेश
ख़ाशाक के तोदे को कहे कोह-ए-दमावंद

हूँ आतिश-ए-नमरूद के शो'लों में भी ख़ामोश
मैं बंदा-ए-मोमिन हूँ नहीं दाना-ए-असपंद

पुर-सोज़ नज़र-बाज़ ओ निको-बीन ओ कम आरज़ू
आज़ाद ओ गिरफ़्तार ओ तही कीसा ओ ख़ुरसंद

हर हाल में मेरा दिल-ए-बे-क़ैद है ख़ुर्रम
क्या छीनेगा ग़ुंचे से कोई ज़ौक़-ए-शकर-ख़ंद

चुप रह न सका हज़रत-ए-यज़्दाँ में भी 'इक़बाल'
करता कोई इस बंदा-ए-गुस्ताख़ का मुँह बंद
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ye payaam de gai hai mujhe baad-e-subh-gaahi..

ye payaam de gai hai mujhe baad-e-subh-gaahi
ki khudi ke aarifon ka hai maqaam paadshaahi

tiri zindagi isee se tiri aabroo isee se
jo rahi khudi to shaahi na rahi to roo-siyaahi

na diya nishaan-e-manzil mujhe ai hakeem tu ne
mujhe kya gila ho tujh se tu na rah-nasheen na raahi

mere halka-e-sukhan mein abhi zer-e-tarbiyat hain
vo gada ki jaante hain rah-o-rasm-e-kaj-kulaahi

ye muaamle hain naazuk jo tiri raza ho tu kar
ki mujhe to khush na aaya ye tariq-e-khaanqaahi

tu huma ka hai shikaari abhi ibtida hai teri
nahin maslahat se khaali ye jahaan-e-murg-o-maahi

tu arab ho ya ajam ho tira la ilaah illa
lughat-e-ghareeb jab tak tira dil na de gawaahi
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ये पयाम दे गई है मुझे बाद-ए-सुब्ह-गाही
कि ख़ुदी के आरिफ़ों का है मक़ाम पादशाही

तिरी ज़िंदगी इसी से तिरी आबरू इसी से
जो रही ख़ुदी तो शाही न रही तो रू-सियाही

न दिया निशान-ए-मंज़िल मुझे ऐ हकीम तू ने
मुझे क्या गिला हो तुझ से तू न रह-नशीं न राही

मिरे हल्क़ा-ए-सुख़न में अभी ज़ेर-ए-तर्बियत हैं
वो गदा कि जानते हैं रह-ओ-रस्म-ए-कज-कुलाही

ये मुआमले हैं नाज़ुक जो तिरी रज़ा हो तू कर
कि मुझे तो ख़ुश न आया ये तरिक़-ए-ख़ानक़ाही

तू हुमा का है शिकारी अभी इब्तिदा है तेरी
नहीं मस्लहत से ख़ाली ये जहान-ए-मुर्ग़-ओ-माही

तू अरब हो या अजम हो तिरा ला इलाह इल्ला
लुग़त-ए-ग़रीब जब तक तिरा दिल न दे गवाही
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ik danish-e-nooraani ik danish-e-burhaani..

ik danish-e-nooraani ik danish-e-burhaani
hai danish-e-burhaani hairat ki faraavani

is paikar-e-khaaki mein ik shay hai so vo teri
mere liye mushkil hai is shay ki nigahbaani

ab kya jo fugaan meri pahunchee hai sitaaron tak
tu ne hi sikhaai thi mujh ko ye ghazal-khwaani

ho naqsh agar baatil takraar se kya haasil
kya tujh ko khush aati hai aadam ki ye arzaani

mujh ko to sikha di hai afrang ne zindeeqi
is daur ke mulla hain kyun nang-e-muslmaani

taqdeer shikan quwwat baaki hai abhi is mein
naadaan jise kahte hain taqdeer ka zindaani

tere bhi sanam-khaane mere bhi sanam-khaane
dono ke sanam khaaki dono ke sanam faani 
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इक दानिश-ए-नूरानी इक दानिश-ए-बुरहानी
है दानिश-ए-बुरहानी हैरत की फ़रावानी

इस पैकर-ए-ख़ाकी में इक शय है सो वो तेरी
मेरे लिए मुश्किल है इस शय की निगहबानी

अब क्या जो फ़ुग़ाँ मेरी पहुँची है सितारों तक
तू ने ही सिखाई थी मुझ को ये ग़ज़ल-ख़्वानी

हो नक़्श अगर बातिल तकरार से क्या हासिल
क्या तुझ को ख़ुश आती है आदम की ये अर्ज़ानी

मुझ को तो सिखा दी है अफ़रंग ने ज़िंदीक़ी
इस दौर के मुल्ला हैं क्यूँ नंग-ए-मुसलमानी

तक़दीर शिकन क़ुव्वत बाक़ी है अभी इस में
नादाँ जिसे कहते हैं तक़दीर का ज़िंदानी

तेरे भी सनम-ख़ाने मेरे भी सनम-ख़ाने
दोनों के सनम ख़ाकी दोनों के सनम फ़ानी
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tujhe yaad kya nahin hai mere dil ka vo zamaana..

tujhe yaad kya nahin hai mere dil ka vo zamaana
vo adab-gah-e-mohabbat vo nigaah ka taaziyaana

ye butaan-e-asr-e-haazir ki bane hain madarse mein
na ada-e-kaafiraana na taraash-e-aazraana

nahin is khuli fazaa mein koi gosha-e-faraaghat
ye jahaan ajab jahaan hai na qafas na aashiyana

rag-e-taak muntazir hai tiri baarish-e-karam ki
ki ajam ke may-kadon mein na rahi may-e-mugaana

mere ham-safeer ise bhi asar-e-bahaar samjhe
unhen kya khabar ki kya hai ye nawa-e-aashiqana

mere khaak o khun se tu ne ye jahaan kiya hai paida
sila-e-shaahid kya hai tab-o-taab-e-jaavedaana

tiri banda-parvari se mere din guzar rahe hain
na gila hai doston ka na shikaayat-e-zamaana
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तुझे याद क्या नहीं है मिरे दिल का वो ज़माना
वो अदब-गह-ए-मोहब्बत वो निगह का ताज़ियाना

ये बुतान-ए-अस्र-ए-हाज़िर कि बने हैं मदरसे में
न अदा-ए-काफ़िराना न तराश-ए-आज़राना

नहीं इस खुली फ़ज़ा में कोई गोशा-ए-फ़राग़त
ये जहाँ अजब जहाँ है न क़फ़स न आशियाना

रग-ए-ताक मुंतज़िर है तिरी बारिश-ए-करम की
कि अजम के मय-कदों में न रही मय-ए-मुग़ाना

मिरे हम-सफ़ीर इसे भी असर-ए-बहार समझे
उन्हें क्या ख़बर कि क्या है ये नवा-ए-आशिक़ाना

मिरे ख़ाक ओ ख़ूँ से तू ने ये जहाँ किया है पैदा
सिला-ए-शाहिद क्या है तब-ओ-ताब-ए-जावेदाना

तिरी बंदा-परवरी से मिरे दिन गुज़र रहे हैं
न गिला है दोस्तों का न शिकायत-ए-ज़माना
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khudi ho ilm se mohkam to ghairat-e-jibreel..

khudi ho ilm se mohkam to ghairat-e-jibreel
agar ho ishq se mohkam to soor-e-israfeel

azaab-e-danish-e-haazir se ba-khabar hoon main
ki main is aag mein daala gaya hoon misl-e-khaleel

fareb-khurda-e-manzil hai kaarwaan warna
ziyaada rahat-e-manzil se hai nashaat-e-raheel

nazar nahin to mere halka-e-sukhan mein na baith
ki nukta-ha-e-khudi hain misaal-e-tegh-e-aseel

mujhe vo dars-e-farang aaj yaad aate hain
kahaan huzoor ki lazzat kahaan hijaab-e-daleel

andheri shab hai juda apne qafile se hai tu
tire liye hai mera shola-e-nava qindeel

gareeb o saada o rangeen hai dastaan-e-haram
nihaayat is ki husain ibtida hai ismaail 
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ख़ुदी हो इल्म से मोहकम तो ग़ैरत-ए-जिब्रील
अगर हो इश्क़ से मोहकम तो सूर-ए-इस्राफ़ील

अज़ाब-ए-दानिश-ए-हाज़िर से बा-ख़बर हूँ मैं
कि मैं इस आग में डाला गया हूँ मिस्ल-ए-ख़लील

फ़रेब-ख़ुर्दा-ए-मंज़िल है कारवाँ वर्ना
ज़ियादा राहत-ए-मंज़िल से है नशात-ए-रहील

नज़र नहीं तो मिरे हल्क़ा-ए-सुख़न में न बैठ
कि नुक्ता-हा-ए-ख़ुदी हैं मिसाल-ए-तेग़-ए-असील

मुझे वो दर्स-ए-फ़रंग आज याद आते हैं
कहाँ हुज़ूर की लज़्ज़त कहाँ हिजाब-ए-दलील

अँधेरी शब है जुदा अपने क़ाफ़िले से है तू
तिरे लिए है मिरा शोला-ए-नवा क़िंदील

ग़रीब ओ सादा ओ रंगीं है दस्तान-ए-हरम
निहायत इस की हुसैन इब्तिदा है इस्माईल
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na aate hamein is mein takraar kya thi..

na aate hamein is mein takraar kya thi
magar wa'da karte hue aar kya thi

tumhaare payaami ne sab raaz khola
khata is mein bande ki sarkaar kya thi

bhari bazm mein apne aashiq ko taada
tiri aankh masti mein hushyaar kya thi

taammul to tha un ko aane mein qaasid
magar ye bata tarz-e-inkaar kya thi

khinche khud-bakhud jaanib-e-toor moosa
kashish teri ai shauq-e-deedaar. kya thi

kahi zikr rehta hai iqbaal tera
fusoon tha koi teri guftaar kya thi 
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न आते हमें इस में तकरार क्या थी
मगर वा'दा करते हुए आर क्या थी

तुम्हारे पयामी ने सब राज़ खोला
ख़ता इस में बंदे की सरकार क्या थी

भरी बज़्म में अपने आशिक़ को ताड़ा
तिरी आँख मस्ती में हुश्यार क्या थी

तअम्मुल तो था उन को आने में क़ासिद
मगर ये बता तर्ज़-ए-इंकार क्या थी

खिंचे ख़ुद-बख़ुद जानिब-ए-तूर मूसा
कशिश तेरी ऐ शौक़-ए-दीदार क्या थी

कहीं ज़िक्र रहता है 'इक़बाल' तेरा
फ़ुसूँ था कोई तेरी गुफ़्तार क्या थी
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digar-goon hai jahaan taaron ki gardish tez hai saaqi..

digar-goon hai jahaan taaron ki gardish tez hai saaqi
dil-e-har-zarra mein ghaaga-e-rusta-khez hai saaqi

mata-e-deen-o-daanish loot gai allah-waalon ki
ye kis kaafir-ada ka ghaza-e-khoon-rez hai saaqi

wahi deerina beemaari wahi na-mohkami dil ki
ilaaj is ka wahi aab-e-nashaat-angez hai saaqi

haram ke dil mein soz-e-aarzoo paida nahin hota
ki paidaai tiri ab tak hijaab-aamez hai saaqi

na utha phir koi roomi ajam ke laala-zaaro se
wahi aab-o-gil-e-eran wahi tabrez hai saaqi

nahin hai na-umeed iqbaal apni kisht-e-veeraan se
zara nam ho to ye mitti bahut zarkhez hai saaqi

faqeer-e-raah ko bakshe gaye asraar-e-sultaani
baha meri nava ki daulat-e-parvez hai saaqi
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दिगर-गूँ है जहाँ तारों की गर्दिश तेज़ है साक़ी
दिल-ए-हर-ज़र्रा में ग़ोग़ा-ए-रुस्ता-ख़े़ज़ है साक़ी

मता-ए-दीन-ओ-दानिश लुट गई अल्लाह-वालों की
ये किस काफ़िर-अदा का ग़म्ज़ा-ए-ख़ूँ-रेज़ है साक़ी

वही देरीना बीमारी वही ना-मोहकमी दिल की
इलाज इस का वही आब-ए-नशात-अंगेज़ है साक़ी

हरम के दिल में सोज़-ए-आरज़ू पैदा नहीं होता
कि पैदाई तिरी अब तक हिजाब-आमेज़ है साक़ी

न उट्ठा फिर कोई 'रूमी' अजम के लाला-ज़ारों से
वही आब-ओ-गिल-ए-ईराँ वही तबरेज़ है साक़ी

नहीं है ना-उमीद 'इक़बाल' अपनी किश्त-ए-वीराँ से
ज़रा नम हो तो ये मिट्टी बहुत ज़रख़ेज़ है साक़ी

फ़क़ीर-ए-राह को बख़्शे गए असरार-ए-सुल्तानी
बहा मेरी नवा की दौलत-ए-परवेज़ है साक़ी
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asar kare na kare sun to le meri fariyaad..

asar kare na kare sun to le meri fariyaad
nahin hai daad ka taalib ye banda-e-aazaad

ye musht-e-khaak ye sarsar ye wusa'at-e-aflaak
karam hai ya ki sitam teri lazzat-e-eijaad

thehar saka na hawa-e-chaman mein khema-e-gul
yahi hai fasl-e-bahaari yahi hai baad-e-muraad

qusoor-waar ghareeb-ud-dayaar hoon lekin
tira kharaabaa farishte na kar sake aabaad

meri jafa-talbi ko duaaein deta hai
vo dasht-e-saada vo tera jahaan-e-be-buniyaad

khatr-pasand tabeeyat ko saazgaar nahin
vo gulsitaan ki jahaan ghaat mein na ho sayyaad

maqaam-e-shauq tire qudsiyon ke bas ka nahin
unhin ka kaam hai ye jin ke hausale hain ziyaad 
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असर करे न करे सुन तो ले मिरी फ़रियाद
नहीं है दाद का तालिब ये बंदा-ए-आज़ाद

ये मुश्त-ए-ख़ाक ये सरसर ये वुसअ'त-ए-अफ़्लाक
करम है या कि सितम तेरी लज़्ज़त-ए-ईजाद

ठहर सका न हवा-ए-चमन में ख़ेमा-ए-गुल
यही है फ़स्ल-ए-बहारी यही है बाद-ए-मुराद

क़ुसूर-वार ग़रीब-उद-दयार हूँ लेकिन
तिरा ख़राबा फ़रिश्ते न कर सके आबाद

मिरी जफ़ा-तलबी को दुआएँ देता है
वो दश्त-ए-सादा वो तेरा जहान-ए-बे-बुनियाद

ख़तर-पसंद तबीअत को साज़गार नहीं
वो गुल्सिताँ कि जहाँ घात में न हो सय्याद

मक़ाम-ए-शौक़ तिरे क़ुदसियों के बस का नहीं
उन्हीं का काम है ये जिन के हौसले हैं ज़ियाद
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aahan mein dhalti jaayegi ikkeesveen sadi..

aahan mein dhalti jaayegi ikkeesveen sadi
phir bhi ghazal sunaayegi ikkeesveen sadi

baghdaad dilli maasko london ke darmiyaan
baarood bhi bichaayegi ikkeesveen sadi

jal kar jo raakh ho gaeein dangoon mein is baras
un jhuggiyoon mein aayegi ikkeesveen sadi

tahzeeb ke libaas utar jaayenge janab
dollar mein yun nachaayegi ikkeesveen sadi

le ja ke aasmaan pe taaron ke aas-paas
america ko giraayegi ikkeesveen sadi

ik yaatra zaroor ho ninnayaanve ke paas
rath par sawaar aayegi ikkeesveen sadi

phir se khuda banaayega koi naya jahaan
duniya ko yun mitaayegi ikkeesveen sadi

computers se ghazlein likhenge basheer-badr
ghalib ko bhool jaayegi ikkeesveen sadi 
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आहन में ढलती जाएगी इक्कीसवीं सदी
फिर भी ग़ज़ल सुनाएगी इक्कीसवीं सदी

बग़दाद दिल्ली मास्को लंदन के दरमियाँ
बारूद भी बिछाएगी इक्कीसवीं सदी

जल कर जो राख हो गईं दंगों में इस बरस
उन झुग्गियों में आएगी इक्कीसवीं सदी

तहज़ीब के लिबास उतर जाएँगे जनाब
डॉलर में यूँ नचाएगी इक्कीसवीं सदी

ले जा के आसमान पे तारों के आस-पास
अमरीका को गिराएगी इक्कीसवीं सदी

इक यात्रा ज़रूर हो निन्नयानवे के पास
रथ पर सवार आएगी इक्कीसवीं सदी

फिर से ख़ुदा बनाएगा कोई नया जहाँ
दुनिया को यूँ मिटाएगी इक्कीसवीं सदी

कम्पयूटरों से ग़ज़लें लिखेंगे 'बशीर-बद्र'
'ग़ालिब' को भूल जाएगी इक्कीसवीं सदी
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Us dar ka darbaan bana de ya Allah..

Us dar ka darbaan bana de ya Allah
Mujhko bhi sultan bana de ya Allah

In aankhon se tere naam ki baarish ho
Patthar hoon, insaan bana de ya Allah

Sehma dil, tooti kashti, chadhta darya
Har mushkil aasaan bana de ya Allah

Main jab chaahun, jhaank ke tujhko dekh sakoon
Dil ko roshandaan bana de ya Allah

Mera bachcha saada kaaghaz jaisa hai
Ek harf-e-imaan bana de ya Allah

Chaand-sitare jhuk kar kadmon ko choomen
Aisa Hindostan bana de ya Allah
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उस दर का दरबान बना दे या अल्लाह
मुझको भी सुल्तान बना दे या अल्लाह

इन आँखों से तेरे नाम की बारिश हो
पत्थर हूँ, इन्सान बना दे या अल्लाह

सहमा दिल, टूटी कश्ती, चढ़ता दरया
हर मुश्किल आसान बना दे या अल्लाह

मैं जब चाहूँ झाँक के तुझको देख सकूँ
दिल को रोशनदान बना दे या अल्लाह

मेरा बच्चा सादा काग़ज़ जैसा है
इक हर्फ़े ईमान बना दे या अल्लाह

चाँद-सितारे झुक कर क़दमों को चूमें
ऐसा हिन्दोस्तान बना दे या अल्लाह
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Meri aankhon mein tere pyaar ka aansoo aaye..

Meri aankhon mein tere pyaar ka aansoo aaye
Koi khushboo main lagaoon, teri khushboo aaye

Waqt-e-rukhsat kahin taare, kahin jugnu aaye
Haar pehnane mujhe phool se baazu aaye

Maine din-raat Khuda se yeh dua maangi thi
Koi aahat na ho dar par mere jab tu aaye

In dino aap ka aalam bhi ajab aalam hai
Teer khaya hua jaise koi aahoo aaye

Uski baatein ki gul-o-lala pe shabnam barse
Sab ko apnane ka us shokh ko jaadu aaye

Usne chhoo kar mujhe patthar se phir insaan kiya
Muddaton baad meri aankhon mein aansoo aaye
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मेरी आंखों में तिरे प्यार का आंसू आए
कोई ख़ुशबू मैं लगाऊंतिरी ख़ुशबू आए

वक़्त-ए-रुख़्सत कहीं तारे कहीं जुगनू आए
हार पहनाने मुझे फूल से बाज़ू आए

मैं ने दिन रात ख़ुदा से ये दुआ मांगी थी
कोई आहट न हो दर पर मिरे जब तू आए

इन दिनों आप का आलम भी अजब आलम है
तीर खाया हुआ जैसे कोई आहू आए

उस की बातें कि गुल-ओ-लाला पे शबनम बरसे
सब को अपनाने का उस शोख़ को जादू आए

उस ने छू कर मुझे पत्थर से फिर इंसान किया
मुद्दतों बाद मिरी आंखों में आंसू आए
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Abhi is taraf na nigah kar, main ghazal ki palkein sanvaar loon..

Abhi is taraf na nigah kar, main ghazal ki palkein sanvaar loon
Mera lafz-lafz ho aaina, tujhe aaine mein utaar loon

Main tamaam din ka thaka hua, tu tamaam shab ka jaga hua
Zara thehar ja isi mod par, tere saath shaam guzaar loon

Agar aasmaan ki numaishon mein mujhe bhi izn-e-qayam ho
To main motiyon ki dukaan se teri baaliyan, tere haar loon

Kahin aur baant de shohratein, kahin aur bakhsh de izzatein
Mere paas hai mera aaina, main kabhi na gard-o-ghubaar loon

Kai ajnabi teri raah mein, mere paas se yun guzhar gaye
Jinhein dekh kar yeh tadap hui, tera naam le ke pukar loon
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अभी इस तरफ़ न निगाह कर मैं ग़ज़ल की पलकें संवार लूं
मिरा लफ़्ज़ लफ़्ज़ हो आईना तुझे आइने में उतार लूं

मैं तमाम दिन का थका हुआ तू तमाम शब का जगा हुआ
ज़रा ठहर जा इसी मोड़ पर तेरे साथ शाम गुज़ार लूं

अगर आसमां की नुमाइशों में मुझे भी इज़्न-ए-क़याम हो
तो मैं मोतियों की दुकान से तिरी बालियां तिरे हार लूं

कहीं और बांट दे शोहरतें कहीं और बख़्श दे इज़्ज़तें
मिरे पास है मिरा आईना मैं कभी न गर्द-ओ-ग़ुबार लूं

कई अजनबी तिरी राह में मिरे पास से यूं गुज़र गए
जिन्हें देख कर ये तड़प हुई तिरा नाम ले के पुकार लूं
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Kahaan aansuon ki yeh saugaat hogi..

Kahaan aansuon ki yeh saugaat hogi
Naye log honge, nai baat hogi

Main har haal mein muskurata rahunga
Tumhari mohabbat agar saath hogi

Chiragon ko aankhon mein mehfooz rakhna
Badi door tak raat hi raat hogi

Pareshan ho tum bhi, pareshan hoon main bhi
Chalo mai-kade mein, wahin baat hogi

Chiragon ki lau se, sitaron ki zau tak
Tumhein main milunga, jahan raat hogi

Jahan waadiyon mein naye phool aaye
Hamari tumhari mulaqaat hogi

Sadaon ko alfaaz milne na payen
Na baadal ghirenge, na barsaat hogi

Musafir hain hum bhi, musafir ho tum bhi
Kisi mod par phir mulaqaat hogi
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कहाँ आँसुओं की ये सौग़ात होगी
नए लोग होंगे नई बात होगी

मैं हर हाल में मुस्कुराता रहूँगा
तुम्हारी मोहब्बत अगर साथ होगी

चराग़ों को आँखों में महफ़ूज़ रखना
बड़ी दूर तक रात ही रात होगी

परेशां हो तुम भी परेशां हूँ मैं भी
चलो मय-कदे में वहीं बात होगी

चराग़ों की लौ से सितारों की ज़ौ तक
तुम्हें मैं मिलूँगा जहाँ रात होगी

जहाँ वादियों में नए फूल आए
हमारी तुम्हारी मुलाक़ात होगी

सदाओं को अल्फ़ाज़ मिलने न पाएँ
न बादल घिरेंगे न बरसात होगी

मुसाफ़िर हैं हम भी मुसाफ़िर हो तुम भी
किसी मोड़ पर फिर मुलाक़ात होगी
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Na ji bhar ke dekha, na kuch baat ki..

Na ji bhar ke dekha, na kuch baat ki
Badi aarzoo thi mulaqaat ki

Ujaalon ki pariyan nahaane lagin
Nadi gun-gunayi khayalaat ki

Main chup tha to chalti hawa ruk gayi
Zubaan sab samajhte hain jazbaat ki

Muqaddar meri chashm-e-pur-aab ka
Barasti hui raat barsaat ki

Kai saal se kuch khabar hi nahin
Kahaan din guzara, kahaan raat ki
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न जी भर के देखा न कुछ बात की
बड़ी आरज़ू थी मुलाक़ात की

उजालों की परियाँ नहाने लगीं
नदी गुनगुनाई ख़यालात की

मैं चुप था तो चलती हवा रुक गई
ज़बाँ सब समझते हैं जज़्बात की

मुक़द्दर मिरी चश्म-ए-पुर-आब का
बरसती हुई रात बरसात की

कई साल से कुछ ख़बर ही नहीं
कहाँ दिन गुज़ारा कहाँ रात की
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dua karo ki ye pauda sada haraa hi lage..

dua karo ki ye pauda sada haraa hi lage
udaasiyon mein bhi chehra khila khila hi lage

vo saadgi na kare kuchh bhi to ada hi lage
vo bhol-pan hai ki bebaki bhi haya hi lage

ye zaafraani pulovar usi ka hissa hai
koi jo doosra pahne to doosra hi lage

nahin hai mere muqaddar mein raushni na sahi
ye khidki kholo zara subh ki hawa hi lage

ajeeb shakhs hai naaraz ho ke hansta hai
main chahta hoon khafa ho to vo khafa hi lage

haseen to aur hain lekin koi kahaan tujh sa
jo dil jalaae bahut phir bhi dilruba hi lage

hazaaron bhes mein firte hain raam aur raheem
koi zaroori nahin hai bhala bhala hi lage 
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दुआ करो कि ये पौदा सदा हरा ही लगे
उदासियों में भी चेहरा खिला खिला ही लगे

वो सादगी न करे कुछ भी तो अदा ही लगे
वो भोल-पन है कि बेबाकी भी हया ही लगे

ये ज़ाफ़रानी पुलओवर उसी का हिस्सा है
कोई जो दूसरा पहने तो दूसरा ही लगे

नहीं है मेरे मुक़द्दर में रौशनी न सही
ये खिड़की खोलो ज़रा सुब्ह की हवा ही लगे

अजीब शख़्स है नाराज़ हो के हँसता है
मैं चाहता हूँ ख़फ़ा हो तो वो ख़फ़ा ही लगे

हसीं तो और हैं लेकिन कोई कहाँ तुझ सा
जो दिल जलाए बहुत फिर भी दिलरुबा ही लगे

हज़ारों भेस में फिरते हैं राम और रहीम
कोई ज़रूरी नहीं है भला भला ही लगे
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Sau khuloos baaton mein, sab karam khayalon mein..

Sau khuloos baaton mein, sab karam khayalon mein
Bas zara wafaa kam hai tere shehar waalon mein

Pehli baar nazron ne chaand bolte dekha
Hum jawaab kya dete, kho gaye sawaalon mein

Raat teri yaadon ne dil ko is tarah chheda
Jaise koi chutki le narm-narm gaalon mein

Yoon kisi ki aankhon mein subah tak abhi the hum
Jis tarah rahe shabnam phool ke pyaalon mein

Meri aankh ke taare ab na dekh paoge
Raat ke musaafir the, kho gaye ujaalon mein

Jaise aadhi shab ke baad chaand neend mein chaunke
Woh gulaab ki jumbish un siyaah baalon mein
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सौ ख़ुलूस बातों में सब करम ख़यालों में
बस ज़रा वफ़ा कम है तेरे शहर वालों में

पहली बार नज़रों ने चाँद बोलते देखा
हम जवाब क्या देते खो गए सवालों में

रात तेरी यादों ने दिल को इस तरह छेड़ा
जैसे कोई चुटकी ले नर्म नर्म गालों में

यूँ किसी की आँखों में सुब्ह तक अभी थे हम
जिस तरह रहे शबनम फूल के प्यालों में

मेरी आँख के तारे अब न देख पाओगे
रात के मुसाफ़िर थे खो गए उजालों में

जैसे आधी शब के बा'द चाँद नींद में चौंके
वो गुलाब की जुम्बिश उन सियाह बालों में

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Kahin chaand raahon mein kho gaya, kahin chaandni bhi bhatak gayi..

Kahin chaand raahon mein kho gaya, kahin chaandni bhi bhatak gayi
Main chiraagh, wo bhi bujha hua, meri raat kaise chamak gayi

Meri daastan ka urooj tha, teri narm palkon ki chhaon mein
Mere saath tha tujhe jagna, teri aankh kaise jhapak gayi

Bhalla hum mile bhi to kya mile, wahi dooriyan wahi faasle
Na kabhi humare qadam badhe, na kabhi tumhari jhijhak gayi

Tere haath se mere honth tak, wahi intezaar ki pyaas hai
Mere naam ki jo sharaab thi, kahin raste mein chalak gayi

Tujhe bhool jaane ki koshishen kabhi kaamyaab na ho sakin
Teri yaad shaakh-e-gulaab hai, jo hawa chali to lachak gayi
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कहीं चाँद राहों में खो गया कहीं चाँदनी भी भटक गई 
मैं चराग़ वो भी बुझा हुआ मेरी रात कैसे चमक गई 

मिरी दास्ताँ का उरूज था तिरी नर्म पलकों की छाँव में 
मिरे साथ था तुझे जागना तिरी आँख कैसे झपक गई 

भला हम मिले भी तो क्या मिले वही दूरियाँ वही फ़ासले 
न कभी हमारे क़दम बढ़े न कभी तुम्हारी झिजक गई 

तिरे हाथ से मेरे होंट तक वही इंतिज़ार की प्यास है 
मिरे नाम की जो शराब थी कहीं रास्ते में छलक गई 

तुझे भूल जाने की कोशिशें कभी कामयाब न हो सकीं 
तिरी याद शाख़-ए-गुलाब है जो हवा चली तो लचक गई
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apne andaaz ka akela tha..

apne andaaz ka akela tha
is liye main bada akela tha

pyaar to janam ka akela tha
kya mera tajurba akela tha

saath tera na kuchh badal paaya
mera hi raasta akela tha

bakhshish-e-be-hisaab ke aage
mera dast-e-dua akela tha

teri samjhauta-baaz duniya mein
kaun mere siva akela tha

jo bhi milta gale laga leta
kis qadar aaina akela tha 
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अपने अंदाज़ का अकेला था
इस लिए मैं बड़ा अकेला था

प्यार तो जन्म का अकेला था
क्या मिरा तजरबा अकेला था

साथ तेरा न कुछ बदल पाया
मेरा ही रास्ता अकेला था

बख़्शिश-ए-बे-हिसाब के आगे
मेरा दस्त-ए-दुआ' अकेला था

तेरी समझौते-बाज़ दुनिया में
कौन मेरे सिवा अकेला था

जो भी मिलता गले लगा लेता
किस क़दर आइना अकेला था
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kitna dushwaar tha duniya ye hunar aana bhi..

kitna dushwaar tha duniya ye hunar aana bhi
tujh se hi fasla rakhna tujhe apnaana bhi

kaisi aadaab-e-numaish ne lagaaiin shartein
phool hona hi nahin phool nazar aana bhi

dil ki bigdi hui aadat se ye ummeed na thi
bhool jaayega ye ik din tira yaad aana bhi

jaane kab shehar ke rishton ka badal jaaye mizaaj
itna aasaan to nahin laut ke ghar aana bhi

aise rishte ka bharam rakhna koi khel nahin
tera hona bhi nahin aur tira kahlaana bhi

khud ko pehchaan ke dekhe to zara ye dariya
bhool jaayega samundar ki taraf jaana bhi

jaanne waalon ki is bheed se kya hoga waseem
is mein ye dekhiye koi mujhe pahchaana bhi 
-----------------------------------------
कितना दुश्वार था दुनिया ये हुनर आना भी
तुझ से ही फ़ासला रखना तुझे अपनाना भी

कैसी आदाब-ए-नुमाइश ने लगाईं शर्तें
फूल होना ही नहीं फूल नज़र आना भी

दिल की बिगड़ी हुई आदत से ये उम्मीद न थी
भूल जाएगा ये इक दिन तिरा याद आना भी

जाने कब शहर के रिश्तों का बदल जाए मिज़ाज
इतना आसाँ तो नहीं लौट के घर आना भी

ऐसे रिश्ते का भरम रखना कोई खेल नहीं
तेरा होना भी नहीं और तिरा कहलाना भी

ख़ुद को पहचान के देखे तो ज़रा ये दरिया
भूल जाएगा समुंदर की तरफ़ जाना भी

जानने वालों की इस भीड़ से क्या होगा 'वसीम'
इस में ये देखिए कोई मुझे पहचाना भी
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ye hai to sab ke liye ho ye zid hamaari hai..

ye hai to sab ke liye ho ye zid hamaari hai
is ek baat pe duniya se jang jaari hai

udaan waalo uraano pe waqt bhari hai
paron ki ab ke nahin hauslon ki baari hai

main qatra ho ke bhi toofaan se jang leta hoon
mujhe bachaana samundar ki zimmedaari hai

isee se jalte hain sehra-e-aarzoo mein charaagh
ye tishnagi to mujhe zindagi se pyaari hai

koi bataaye ye us ke ghuroor-e-beja ko
vo jang main ne ladi hi nahin jo haari hai

har ek saans pe pahra hai be-yaqeeni ka
ye zindagi to nahin maut ki sawaari hai

dua karo ki salaamat rahe meri himmat
ye ik charaagh kai aandhiyon pe bhari hai 
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ये है तो सब के लिए हो ये ज़िद हमारी है
इस एक बात पे दुनिया से जंग जारी है

उड़ान वालो उड़ानों पे वक़्त भारी है
परों की अब के नहीं हौसलों की बारी है

मैं क़तरा हो के भी तूफ़ाँ से जंग लेता हूँ
मुझे बचाना समुंदर की ज़िम्मेदारी है

इसी से जलते हैं सहरा-ए-आरज़ू में चराग़
ये तिश्नगी तो मुझे ज़िंदगी से प्यारी है

कोई बताए ये उस के ग़ुरूर-ए-बेजा को
वो जंग मैं ने लड़ी ही नहीं जो हारी है

हर एक साँस पे पहरा है बे-यक़ीनी का
ये ज़िंदगी तो नहीं मौत की सवारी है

दुआ करो कि सलामत रहे मिरी हिम्मत
ये इक चराग़ कई आँधियों पे भारी है
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shaam tak subh ki nazaron se utar jaate hain..

shaam tak subh ki nazaron se utar jaate hain
itne samjhauton pe jeete hain ki mar jaate hain

phir wahi talkhi-e-haalat muqaddar thehri
nashshe kaise bhi hon kuchh din mein utar jaate hain

ik judaai ka vo lamha ki jo marta hi nahin
log kahte the ki sab waqt guzar jaate hain

ghar ki girti hui deewarein hi mujh se achhi
raasta chalte hue log thehar jaate hain

ham to be-naam iraadon ke musaafir hain waseem
kuchh pata ho to bataayein ki kidhar jaate hain 
---------------------------------------------
शाम तक सुब्ह की नज़रों से उतर जाते हैं
इतने समझौतों पे जीते हैं कि मर जाते हैं

फिर वही तल्ख़ी-ए-हालात मुक़द्दर ठहरी
नश्शे कैसे भी हों कुछ दिन में उतर जाते हैं

इक जुदाई का वो लम्हा कि जो मरता ही नहीं
लोग कहते थे कि सब वक़्त गुज़र जाते हैं

घर की गिरती हुई दीवारें ही मुझ से अच्छी
रास्ता चलते हुए लोग ठहर जाते हैं

हम तो बे-नाम इरादों के मुसाफ़िर हैं 'वसीम'
कुछ पता हो तो बताएँ कि किधर जाते हैं
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door se hi bas dariya dariya lagta hai..

door se hi bas dariya dariya lagta hai
doob ke dekho kitna pyaasa lagta hai

tanhaa ho to ghabraaya sa lagta hai
bheed mein us ko dekh ke achha lagta hai

aaj ye hai kal aur yahan hoga koi
socho to sab khel-tamasha lagta hai

main hi na maanoon mere bikharna mein warna
duniya bhar ko haath tumhaara lagta hai

zehan se kaaghaz par tasveer utarte hi
ek musavvir kitna akela lagta hai

pyaar ke is nashsha ko koi kya samjhe
thokar mein jab saara zamaana lagta hai

bheed mein rah kar apna bhi kab rah paata
chaand akela hai to sab ka lagta hai

shaakh pe baithi bholi-bhaali ik chidiya
kya jaane us par bhi nishaana lagta hai 
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दूर से ही बस दरिया दरिया लगता है
डूब के देखो कितना प्यासा लगता है

तन्हा हो तो घबराया सा लगता है
भीड़ में उस को देख के अच्छा लगता है

आज ये है कल और यहाँ होगा कोई
सोचो तो सब खेल-तमाशा लगता है

मैं ही न मानूँ मेरे बिखरने में वर्ना
दुनिया भर को हाथ तुम्हारा लगता है

ज़ेहन से काग़ज़ पर तस्वीर उतरते ही
एक मुसव्विर कितना अकेला लगता है

प्यार के इस नश्शा को कोई क्या समझे
ठोकर में जब सारा ज़माना लगता है

भीड़ में रह कर अपना भी कब रह पाता
चाँद अकेला है तो सब का लगता है

शाख़ पे बैठी भोली-भाली इक चिड़िया
क्या जाने उस पर भी निशाना लगता है
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mere gham ko jo apna bataate rahe..

mere gham ko jo apna bataate rahe
waqt padne pe haathon se jaate rahe

baarishen aayein aur faisla kar gaeein
log tooti chaten aazmaate rahe

aankhen manzar hui kaan naghma hue
ghar ke andaaz hi ghar se jaate rahe

shaam aayi to bichhde hue hum-safar
aansuon se in aankhon mein aate rahe

nanhe bacchon ne choo bhi liya chaand ko
boodhe baba kahaani sunaate rahe

door tak haath mein koi patthar na tha
phir bhi ham jaane kyun sar bachaate rahe

shaayri zahar thi kya karein ai waseem
log peete rahe ham pilaate rahe
---------------------------------
 मेरे ग़म को जो अपना बताते रहे
वक़्त पड़ने पे हाथों से जाते रहे

बारिशें आईं और फ़ैसला कर गईं
लोग टूटी छतें आज़माते रहे

आँखें मंज़र हुईं कान नग़्मा हुए
घर के अंदाज़ ही घर से जाते रहे

शाम आई तो बिछड़े हुए हम-सफ़र
आँसुओं से इन आँखों में आते रहे

नन्हे बच्चों ने छू भी लिया चाँद को
बूढ़े बाबा कहानी सुनाते रहे

दूर तक हाथ में कोई पत्थर न था
फिर भी हम जाने क्यूँ सर बचाते रहे

शाइरी ज़हर थी क्या करें ऐ 'वसीम'
लोग पीते रहे हम पिलाते रहे
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mujhe to qatra hi hona bahut sataata hai..

mujhe to qatra hi hona bahut sataata hai
isee liye to samundar pe rehm aata hai

vo is tarah bhi meri ahmiyat ghataata hai
ki mujh se milne mein shartein bahut lagata hai

bichhadte waqt kisi aankh mein jo aata hai
tamaam umr vo aansu bahut rulaata hai

kahaan pahunch gai duniya use pata hi nahin
jo ab bhi maazi ke qisse sunaaye jaata hai

uthaaye jaayen jahaan haath aise jalse mein
wahi bura jo koi mas'ala uthaata hai

na koi ohda na degree na naam ki takhti
main rah raha hoon yahan mera ghar bataata hai

samajh raha ho kahi khud ko meri kamzori
to us se kah do mujhe bhoolna bhi aata hai 
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मुझे तो क़तरा ही होना बहुत सताता है
इसी लिए तो समुंदर पे रहम आता है

वो इस तरह भी मिरी अहमियत घटाता है
कि मुझ से मिलने में शर्तें बहुत लगाता है

बिछड़ते वक़्त किसी आँख में जो आता है
तमाम उम्र वो आँसू बहुत रुलाता है

कहाँ पहुँच गई दुनिया उसे पता ही नहीं
जो अब भी माज़ी के क़िस्से सुनाए जाता है

उठाए जाएँ जहाँ हाथ ऐसे जलसे में
वही बुरा जो कोई मसअला उठाता है

न कोई ओहदा न डिग्री न नाम की तख़्ती
मैं रह रहा हूँ यहाँ मेरा घर बताता है

समझ रहा हो कहीं ख़ुद को मेरी कमज़ोरी
तो उस से कह दो मुझे भूलना भी आता है
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kuchh itna khauf ka maara hua bhi pyaar na ho..

kuchh itna khauf ka maara hua bhi pyaar na ho
vo e'tibaar dilaae aur e'tibaar na ho

hawa khilaaf ho maujon pe ikhtiyaar na ho
ye kaisi zid hai ki dariya kisi se paar na ho

main gaav laut raha hoon bahut dinon ke baad
khuda kare ki use mera intizaar na ho

zara si baat pe ghut ghut ke subh kar dena
meri tarah bhi koi mera gham-gusaar na ho

dukhi samaaj mein aansu bhare zamaane mein
use ye kaun bataaye ki ashk-baar na ho

gunaahgaaron pe ungli uthaaye dete ho
waseem aaj kahi tum bhi sangsaar na ho 
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कुछ इतना ख़ौफ़ का मारा हुआ भी प्यार न हो
वो ए'तिबार दिलाए और ए'तिबार न हो

हवा ख़िलाफ़ हो मौजों पे इख़्तियार न हो
ये कैसी ज़िद है कि दरिया किसी से पार न हो

मैं गाँव लौट रहा हूँ बहुत दिनों के बाद
ख़ुदा करे कि उसे मेरा इंतिज़ार न हो

ज़रा सी बात पे घुट घुट के सुब्ह कर देना
मिरी तरह भी कोई मेरा ग़म-गुसार न हो

दुखी समाज में आँसू भरे ज़माने में
उसे ये कौन बताए कि अश्क-बार न हो

गुनाहगारों पे उँगली उठाए देते हो
'वसीम' आज कहीं तुम भी संगसार न हो
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chalo ham hi pehal kar den ki ham se bad-gumaan kyun ho..

chalo ham hi pehal kar den ki ham se bad-gumaan kyun ho
koi rishta zara si zid ki khaatir raayegaan kyun ho

main zinda hoon to is zinda-zameeri ki badaulat hi
jo bole tere lehje mein bhala meri zabaan kyun ho

sawaal aakhir ye ik din dekhna ham hi uthaayenge
na samjhe jo zameen ke gham vo apna aasmaan kyun ho

hamaari guftugoo ki aur bhi gaddaari bahut si hain
kisi ka dil dukhaane hi ko phir apni zabaan kyun ho

bikhar kar rah gaya hamsaayagi ka khwaab hi warna
diye is ghar mein raushan hon to us ghar mein dhuaan kyun ho

mohabbat aasmaan ko jab zameen karne ki zid thehri
to phir buzdil usoolon ki sharaafat darmiyaan kyun ho

ummeedein saari duniya se waseem aur khud mein aise gham
kisi pe kuchh na zaahir ho to koi meherbaan kyun ho
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 चलो हम ही पहल कर दें कि हम से बद-गुमाँ क्यूँ हो
कोई रिश्ता ज़रा सी ज़िद की ख़ातिर राएगाँ क्यूँ हो

मैं ज़िंदा हूँ तो इस ज़िंदा-ज़मीरी की बदौलत ही
जो बोले तेरे लहजे में भला मेरी ज़बाँ क्यूँ हो

सवाल आख़िर ये इक दिन देखना हम ही उठाएँगे
न समझे जो ज़मीं के ग़म वो अपना आसमाँ क्यूँ हो

हमारी गुफ़्तुगू की और भी सम्तें बहुत सी हैं
किसी का दिल दुखाने ही को फिर अपनी ज़बाँ क्यूँ हो

बिखर कर रह गया हमसायगी का ख़्वाब ही वर्ना
दिए इस घर में रौशन हों तो उस घर में धुआँ क्यूँ हो

मोहब्बत आसमाँ को जब ज़मीं करने की ज़िद ठहरी
तो फिर बुज़दिल उसूलों की शराफ़त दरमियाँ क्यूँ हो

उम्मीदें सारी दुनिया से 'वसीम' और ख़ुद में ऐसे ग़म
किसी पे कुछ न ज़ाहिर हो तो कोई मेहरबाँ क्यूँ हो
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main ye nahin kehta ki mera sar na milega..

main ye nahin kehta ki mera sar na milega
lekin meri aankhon mein tujhe dar na milega

sar par to bithaane ko hai taiyyaar zamaana
lekin tire rahne ko yahan ghar na milega

jaati hai chali jaaye ye may-khaane ki raunaq
kam-zarfon ke haathon mein to saaghar na milega

duniya ki talab hai to qanaat hi na karna
qatre hi se khush ho to samundar na milega
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मैं ये नहीं कहता कि मिरा सर न मिलेगा
लेकिन मिरी आँखों में तुझे डर न मिलेगा

सर पर तो बिठाने को है तय्यार ज़माना
लेकिन तिरे रहने को यहाँ घर न मिलेगा

जाती है चली जाए ये मय-ख़ाने की रौनक़
कम-ज़र्फ़ों के हाथों में तो साग़र न मिलेगा

दुनिया की तलब है तो क़नाअत ही न करना
क़तरे ही से ख़ुश हो तो समुंदर न मिलेगा
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vo mujh ko kya bataana chahta hai..

vo mujh ko kya bataana chahta hai
jo duniya se chhupaana chahta hai

mujhe dekho ki main us ko hi chaahoon
jise saara zamaana chahta hai

qalam karna kahaan hai us ka mansha
vo mera sar jhukaana chahta hai

shikaayat ka dhuaan aankhon se dil tak
ta'alluq toot jaana chahta hai

taqaza waqt ka kuchh bhi ho ye dil
wahi qissa puraana chahta hai 
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वो मुझ को क्या बताना चाहता है
जो दुनिया से छुपाना चाहता है

मुझे देखो कि मैं उस को ही चाहूँ
जिसे सारा ज़माना चाहता है

क़लम करना कहाँ है उस का मंशा
वो मेरा सर झुकाना चाहता है

शिकायत का धुआँ आँखों से दिल तक
तअ'ल्लुक़ टूट जाना चाहता है

तक़ाज़ा वक़्त का कुछ भी हो ये दिल
वही क़िस्सा पुराना चाहता है
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nahin ki apna zamaana bhi to nahin aaya..

nahin ki apna zamaana bhi to nahin aaya
hamein kisi se nibhaana bhi to nahin aaya

jala ke rakh liya haathon ke saath daaman tak
tumhein charaagh bujhaana bhi to nahin aaya

naye makaan banaaye to faaslon ki tarah
hamein ye shehar basaana bhi to nahin aaya

vo poochta tha meri aankh bheegne ka sabab
mujhe bahaana banaana bhi to nahin aaya

waseem dekhna mud mud ke vo usi ki taraf
kisi ko chhod ke jaana bhi to nahin aaya 
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नहीं कि अपना ज़माना भी तो नहीं आया
हमें किसी से निभाना भी तो नहीं आया

जला के रख लिया हाथों के साथ दामन तक
तुम्हें चराग़ बुझाना भी तो नहीं आया

नए मकान बनाए तो फ़ासलों की तरह
हमें ये शहर बसाना भी तो नहीं आया

वो पूछता था मिरी आँख भीगने का सबब
मुझे बहाना बनाना भी तो नहीं आया

'वसीम' देखना मुड़ मुड़ के वो उसी की तरफ़
किसी को छोड़ के जाना भी तो नहीं आया
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ham apne aap ko ik mas'ala bana na sake..

ham apne aap ko ik mas'ala bana na sake
isee liye to kisi ki nazar mein aa na sake

ham aansuon ki tarah vaaste nibha na sake
rahe jin aankhon mein un mein hi ghar bana na sake

phir aandhiyon ne sikhaaya wahan safar ka hunar
jahaan charaagh hamein raasta dikha na sake

jo pesh pesh the basti bachaane waalon mein
lagi jab aag to apna bhi ghar bacha na sake

mere khuda kisi aisi jagah use rakhna
jahaan koi mere baare mein kuchh bata na sake

tamaam umr ki koshish ka bas yahi haasil
kisi ko apne mutaabiq koi bana na sake

tasalliyon pe bahut din jiya nahin jaata
kuchh aisa ho ke tira e'tibaar aa na sake 
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हम अपने आप को इक मसअला बना न सके
इसी लिए तो किसी की नज़र में आ न सके

हम आँसुओं की तरह वास्ते निभा न सके
रहे जिन आँखों में उन में ही घर बना न सके

फिर आँधियों ने सिखाया वहाँ सफ़र का हुनर
जहाँ चराग़ हमें रास्ता दिखा न सके

जो पेश पेश थे बस्ती बचाने वालों में
लगी जब आग तो अपना भी घर बचा न सके

मिरे ख़ुदा किसी ऐसी जगह उसे रखना
जहाँ कोई मिरे बारे में कुछ बता न सके

तमाम उम्र की कोशिश का बस यही हासिल
किसी को अपने मुताबिक़ कोई बना न सके

तसल्लियों पे बहुत दिन जिया नहीं जाता
कुछ ऐसा हो के तिरा ए'तिबार आ न सके
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kya bataaun kaisa khud ko dar-b-dar main ne kiya..

kya bataaun kaisa khud ko dar-b-dar main ne kiya
umr-bhar kis kis ke hisse ka safar main ne kiya

tu to nafrat bhi na kar paayega is shiddat ke saath
jis bala ka pyaar tujh se be-khabar main ne kiya

kaise bacchon ko bataaun raaston ke pech-o-kham
zindagi-bhar to kitaabon ka safar main ne kiya

kis ko furqat thi ki batlaata tujhe itni si baat
khud se kya bartaav tujh se chhoot kar main ne kiya

chand jazbaati se rishton ke bachaane ko waseem
kaisa kaisa jabr apne aap par main ne kiya 
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क्या बताऊँ कैसा ख़ुद को दर-ब-दर मैं ने किया
उम्र-भर किस किस के हिस्से का सफ़र मैं ने किया

तू तो नफ़रत भी न कर पाएगा इस शिद्दत के साथ
जिस बला का प्यार तुझ से बे-ख़बर मैं ने किया

कैसे बच्चों को बताऊँ रास्तों के पेच-ओ-ख़म
ज़िंदगी-भर तो किताबों का सफ़र मैं ने किया

किस को फ़ुर्सत थी कि बतलाता तुझे इतनी सी बात
ख़ुद से क्या बरताव तुझ से छूट कर मैं ने किया

चंद जज़्बाती से रिश्तों के बचाने को 'वसीम'
कैसा कैसा जब्र अपने आप पर मैं ने किया
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tahreer se warna meri kya ho nahin saka..

tahreer se warna meri kya ho nahin saka
ik tu hai jo lafzon mein ada ho nahin saka

aankhon mein khayaalaat mein saanson mein basa hai
chahe bhi to mujh se vo juda ho nahin saka

jeena hai to ye jabr bhi sahna hi padega
qatra hoon samundar se khafa ho nahin saka

gumraah kiye honge kai phool se jazbe
aise to koi raah-numa ho nahin saka

qad mera badhaane ka use kaam mila hai
jo apne hi pairo'n pe khada ho nahin saka

ai pyaar tire hisse mein aaya tiri qismat
vo dard jo chehron se ada ho nahin saka
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तहरीर से वर्ना मिरी क्या हो नहीं सकता
इक तू है जो लफ़्ज़ों में अदा हो नहीं सकता

आँखों में ख़यालात में साँसों में बसा है
चाहे भी तो मुझ से वो जुदा हो नहीं सकता

जीना है तो ये जब्र भी सहना ही पड़ेगा
क़तरा हूँ समुंदर से ख़फ़ा हो नहीं सकता

गुमराह किए होंगे कई फूल से जज़्बे
ऐसे तो कोई राह-नुमा हो नहीं सकता

क़द मेरा बढ़ाने का उसे काम मिला है
जो अपने ही पैरों पे खड़ा हो नहीं सकता

ऐ प्यार तिरे हिस्से में आया तिरी क़िस्मत
वो दर्द जो चेहरों से अदा हो नहीं सकता
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udaasiyon mein bhi raaste nikaal leta hai..

udaasiyon mein bhi raaste nikaal leta hai
ajeeb dil hai girun to sanbhaal leta hai

ye kaisa shakhs hai kitni hi achhi baat kaho
koi buraai ka pahluu nikaal leta hai

dhale to hoti hai kuchh aur ehtiyaat ki umr
ki bahte bahte ye dariya uchaal leta hai

bade-badoon ki tarah-daariyaan nahin chaltiin
urooj teri khabar jab zawaal leta hai

jab us ke jaam mein ik boond tak nahin hoti
vo meri pyaas ko phir bhi sanbhaal leta hai 
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उदासियों में भी रस्ते निकाल लेता है
अजीब दिल है गिरूँ तो सँभाल लेता है

ये कैसा शख़्स है कितनी ही अच्छी बात कहो
कोई बुराई का पहलू निकाल लेता है

ढले तो होती है कुछ और एहतियात की उम्र
कि बहते बहते ये दरिया उछाल लेता है

बड़े-बड़ों की तरह-दारियाँ नहीं चलतीं
उरूज तेरी ख़बर जब ज़वाल लेता है

जब उस के जाम में इक बूँद तक नहीं होती
वो मेरी प्यास को फिर भी सँभाल लेता है
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sabhi ka dhoop se bachne ko sar nahin hota..

sabhi ka dhoop se bachne ko sar nahin hota
har aadmi ke muqaddar mein ghar nahin hota

kabhi lahu se bhi taarikh likhni padti hai
har ek ma'arka baaton se sar nahin hota

main us ki aankh ka aansu na ban saka warna
mujhe bhi khaak mein milne ka dar nahin hota

mujhe talash karoge to phir na paoge
main ik sada hoon sadaaon ka ghar nahin hota

hamaari aankh ke aansu ki apni duniya hai
kisi faqeer ko shahon ka dar nahin hota

main us makaan mein rehta hoon aur zinda hoon
waseem jis mein hawa ka guzar nahin hota
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सभी का धूप से बचने को सर नहीं होता
हर आदमी के मुक़द्दर में घर नहीं होता

कभी लहू से भी तारीख़ लिखनी पड़ती है
हर एक मा'रका बातों से सर नहीं होता

मैं उस की आँख का आँसू न बन सका वर्ना
मुझे भी ख़ाक में मिलने का डर नहीं होता

मुझे तलाश करोगे तो फिर न पाओगे
मैं इक सदा हूँ सदाओं का घर नहीं होता

हमारी आँख के आँसू की अपनी दुनिया है
किसी फ़क़ीर को शाहों का डर नहीं होता

मैं उस मकान में रहता हूँ और ज़िंदा हूँ
'वसीम' जिस में हवा का गुज़र नहीं होता
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tumhaari raah mein mitti ke ghar nahin aate..

tumhaari raah mein mitti ke ghar nahin aate
isee liye to tumhein ham nazar nahin aate

mohabbaton ke dinon ki yahi kharaabi hai
ye rooth jaayen to phir laut kar nahin aate

jinhen saleeqa hai tehzeeb-e-gham samajhne ka
unhin ke rone mein aansu nazar nahin aate

khushi ki aankh mein aansu ki bhi jagah rakhna
bure zamaane kabhi pooch kar nahin aate

bisaat-e-ishq pe badhna kise nahin aata
ye aur baat ki bachne ke ghar nahin aate

waseem zehan banaate hain to wahi akhbaar
jo le ke ek bhi achhi khabar nahin aate
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 तुम्हारी राह में मिट्टी के घर नहीं आते
इसी लिए तो तुम्हें हम नज़र नहीं आते

मोहब्बतों के दिनों की यही ख़राबी है
ये रूठ जाएँ तो फिर लौट कर नहीं आते

जिन्हें सलीक़ा है तहज़ीब-ए-ग़म समझने का
उन्हीं के रोने में आँसू नज़र नहीं आते

ख़ुशी की आँख में आँसू की भी जगह रखना
बुरे ज़माने कभी पूछ कर नहीं आते

बिसात-ए-इश्क़ पे बढ़ना किसे नहीं आता
ये और बात कि बचने के घर नहीं आते

'वसीम' ज़ेहन बनाते हैं तो वही अख़बार
जो ले के एक भी अच्छी ख़बर नहीं आते
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tu samajhta hai ki rishton ki duhaai denge..

tu samajhta hai ki rishton ki duhaai denge
ham to vo hain tire chehre se dikhaai denge

ham ko mehsoos kiya jaaye hai khushboo ki tarah
ham koi shor nahin hain jo sunaai denge

faisla likkha hua rakha hai pehle se khilaaf
aap kya sahab adaalat mein safaai denge

pichhli saf mein hi sahi hai to isee mehfil mein
aap dekhenge to ham kyun na dikhaai denge
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तू समझता है कि रिश्तों की दुहाई देंगे
हम तो वो हैं तिरे चेहरे से दिखाई देंगे

हम को महसूस किया जाए है ख़ुश्बू की तरह
हम कोई शोर नहीं हैं जो सुनाई देंगे

फ़ैसला लिक्खा हुआ रक्खा है पहले से ख़िलाफ़
आप क्या साहब अदालत में सफ़ाई देंगे

पिछली सफ़ में ही सही है तो इसी महफ़िल में
आप देखेंगे तो हम क्यूँ न दिखाई देंगे
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kahaan savaab kahaan kya azaab hota hai..

kahaan savaab kahaan kya azaab hota hai
mohabbaton mein kab itna hisaab hota hai

bichhad ke mujh se tum apni kashish na kho dena
udaas rahne se chehra kharab hota hai

use pata hi nahin hai ki pyaar ki baazi
jo haar jaaye wahi kaamyaab hota hai

jab us ke paas ganwaane ko kuchh nahin hota
to koi aaj ka izzat-maab hota hai

jise main likhta hoon aise ki khud hi padh paanv
kitaab-e-zeest mein aisa bhi baab hota hai

bahut bharosa na kar lena apni aankhon par
dikhaai deta hai jo kuchh vo khwaab hota hai 
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कहाँ सवाब कहाँ क्या अज़ाब होता है
मोहब्बतों में कब इतना हिसाब होता है

बिछड़ के मुझ से तुम अपनी कशिश न खो देना
उदास रहने से चेहरा ख़राब होता है

उसे पता ही नहीं है कि प्यार की बाज़ी
जो हार जाए वही कामयाब होता है

जब उस के पास गँवाने को कुछ नहीं होता
तो कोई आज का इज़्ज़त-मआब होता है

जिसे मैं लिखता हूँ ऐसे कि ख़ुद ही पढ़ पाँव
किताब-ए-ज़ीस्त में ऐसा भी बाब होता है

बहुत भरोसा न कर लेना अपनी आँखों पर
दिखाई देता है जो कुछ वो ख़्वाब होता है
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haveliyon mein meri tarbiyat nahin hoti..

haveliyon mein meri tarbiyat nahin hoti
to aaj sar pe tapkane ko chat nahin hoti

hamaare ghar ka pata poochne se kya haasil
udaasiyon ki koi shehriyat nahin hoti

charaagh ghar ka ho mehfil ka ho ki mandir ka
hawa ke paas koi maslahat nahin hoti

hamein jo khud mein simatne ka fan nahin aata
to aaj aisi tiri saltanat nahin hoti

waseem shehar mein sacchaaiyon ke lab hote
to aaj khabron mein sab khairiyat nahin hoti 
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हवेलियों में मिरी तर्बियत नहीं होती
तो आज सर पे टपकने को छत नहीं होती

हमारे घर का पता पूछने से क्या हासिल
उदासियों की कोई शहरियत नहीं होती

चराग़ घर का हो महफ़िल का हो कि मंदिर का
हवा के पास कोई मस्लहत नहीं होती

हमें जो ख़ुद में सिमटने का फ़न नहीं आता
तो आज ऐसी तिरी सल्तनत नहीं होती

'वसीम' शहर में सच्चाइयों के लब होते
तो आज ख़बरों में सब ख़ैरियत नहीं होती
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zindagi tujh pe ab ilzaam koi kya rakhe..

zindagi tujh pe ab ilzaam koi kya rakhe
apna ehsaas hi aisa hai jo tanhaa rakhe

kin shikaston ke shab-o-roz se guzra hoga
vo musavvir jo har ik naqsh adhoora rakhe

khushk mitti hi ne jab paanv jamaane na diye
bahte dariya se phir ummeed koi kya rakhe

aa gham-e-dost usi mod pe ho jaaun juda
jo mujhe mera hi rahne de na tera rakhe

aarzooon ke bahut khwaab to dekho ho waseem
jaane kis haal mein be-dard zamaana rakhe 
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ज़िंदगी तुझ पे अब इल्ज़ाम कोई क्या रक्खे
अपना एहसास ही ऐसा है जो तन्हा रक्खे

किन शिकस्तों के शब-ओ-रोज़ से गुज़रा होगा
वो मुसव्विर जो हर इक नक़्श अधूरा रक्खे

ख़ुश्क मिट्टी ही ने जब पाँव जमाने न दिए
बहते दरिया से फिर उम्मीद कोई क्या रक्खे

आ ग़म-ए-दोस्त उसी मोड़ पे हो जाऊँ जुदा
जो मुझे मेरा ही रहने दे न तेरा रक्खे

आरज़ूओं के बहुत ख़्वाब तो देखो हो 'वसीम'
जाने किस हाल में बे-दर्द ज़माना रक्खे
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dua karo ki koi pyaas nazr-e-jaam na ho..

dua karo ki koi pyaas nazr-e-jaam na ho
vo zindagi hi nahin hai jo na-tamaam na ho

jo mujh mein tujh mein chala aa raha hai sadiyon se
kahi hayaat usi faasle ka naam na ho

koi charaagh na aansu na aarzoo-e-seher
khuda kare ki kisi ghar mein aisi shaam na ho

ajeeb shart lagaaee hai ehtiyaaton ne
ki tera zikr karoon aur tera naam na ho

saba-mizaaj ki tezi bhi ek ne'mat hai
agar charaagh bujhaana hi ek kaam na ho

waseem kitni hi subhen lahu lahu guzriin
ik aisi subh bhi aaye ki jis ki shaam na ho
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दुआ करो कि कोई प्यास नज़्र-ए-जाम न हो
वो ज़िंदगी ही नहीं है जो ना-तमाम न हो

जो मुझ में तुझ में चला आ रहा है सदियों से
कहीं हयात उसी फ़ासले का नाम न हो

कोई चराग़ न आँसू न आरज़ू-ए-सहर
ख़ुदा करे कि किसी घर में ऐसी शाम न हो

अजीब शर्त लगाई है एहतियातों ने
कि तेरा ज़िक्र करूँ और तेरा नाम न हो

सबा-मिज़ाज की तेज़ी भी एक ने'मत है
अगर चराग़ बुझाना ही एक काम न हो

'वसीम' कितनी ही सुब्हें लहू लहू गुज़रीं
इक ऐसी सुब्ह भी आए कि जिस की शाम न हो
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meri wafaon ka nashsha utaarne waala..

meri wafaon ka nashsha utaarne waala
kahaan gaya mujhe hans hans ke haarne waala

hamaari jaan gai jaaye dekhna ye hai
kahi nazar mein na aa jaaye maarnay waala

bas ek pyaar ki baazi hai be-gharz baazi
na koi jeetne waala na koi haarne waala

bhare makaan ka bhi apna nasha hai kya jaane
sharaab-khaane mein raatein guzaarne waala

main us ka din bhi zamaane mein baant kar rakh doon
vo meri raaton ko chhup kar guzaarne waala

waseem ham bhi bikharna ka hausla karte
hamein bhi hota jo koi sanwaarne waala
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मिरी वफ़ाओं का नश्शा उतारने वाला
कहाँ गया मुझे हँस हँस के हारने वाला

हमारी जान गई जाए देखना ये है
कहीं नज़र में न आ जाए मारने वाला

बस एक प्यार की बाज़ी है बे-ग़रज़ बाज़ी
न कोई जीतने वाला न कोई हारने वाला

भरे मकाँ का भी अपना नशा है क्या जाने
शराब-ख़ाने में रातें गुज़ारने वाला

मैं उस का दिन भी ज़माने में बाँट कर रख दूँ
वो मेरी रातों को छुप कर गुज़ारने वाला

'वसीम' हम भी बिखरने का हौसला करते
हमें भी होता जो कोई सँवारने वाला

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kahaan qatre ki gham-khwari kare hai..

kahaan qatre ki gham-khwari kare hai
samundar hai adaakaari kare hai

koi maane na maane us ki marzi
magar vo hukm to jaari kare hai

nahin lamha bhi jis ki dastaras mein
wahi sadiyon ki tayyaari kare hai

bade aadarsh hain baaton mein lekin
vo saare kaam baazaari kare hai

hamaari baat bhi aaye to jaanen
vo baatein to bahut saari kare hai

yahi akhbaar ki surkhi banega
zara sa kaam chingaari kare hai

bulaava aayega chal denge ham bhi
safar ki kaun tayyaari kare hai 
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कहाँ क़तरे की ग़म-ख़्वारी करे है
समुंदर है अदाकारी करे है

कोई माने न माने उस की मर्ज़ी
मगर वो हुक्म तो जारी करे है

नहीं लम्हा भी जिस की दस्तरस में
वही सदियों की तय्यारी करे है

बड़े आदर्श हैं बातों में लेकिन
वो सारे काम बाज़ारी करे है

हमारी बात भी आए तो जानें
वो बातें तो बहुत सारी करे है

यही अख़बार की सुर्ख़ी बनेगा
ज़रा सा काम चिंगारी करे है

बुलावा आएगा चल देंगे हम भी
सफ़र की कौन तय्यारी करे है
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nigaahon ke taqaze chain se marne nahin dete..

nigaahon ke taqaze chain se marne nahin dete
yahan manzar hi aise hain ki dil bharne nahin dete

ye log auron ke dukh jeene nikal aaye hain sadkon par
agar apna hi gham hota to yun dharne nahin dete

yahi qatre jo dam apna dikhaane par utar aate
samundar aisi man-maani tujhe karne nahin dete

qalam main to utha ke jaane kab ka rakh chuka hota
magar tum ho ke qissa mukhtasar karne nahin dete

humeen un se umeedein aasmaan choone ki karte hain
humeen bacchon ko apne faisley karne nahin dete
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निगाहों के तक़ाज़े चैन से मरने नहीं देते
यहाँ मंज़र ही ऐसे हैं कि दिल भरने नहीं देते

ये लोग औरों के दुख जीने निकल आए हैं सड़कों पर
अगर अपना ही ग़म होता तो यूँ धरने नहीं देते

यही क़तरे जो दम अपना दिखाने पर उतर आते
समुंदर ऐसी मन-मानी तुझे करने नहीं देते

क़लम मैं तो उठा के जाने कब का रख चुका होता
मगर तुम हो के क़िस्सा मुख़्तसर करने नहीं देते

हमीं उन से उमीदें आसमाँ छूने की करते हैं
हमीं बच्चों को अपने फ़ैसले करने नहीं देते
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sirf tera naam le kar rah gaya..

sirf tera naam le kar rah gaya
aaj deewaana bahut kuchh kah gaya

kya meri taqdeer mein manzil nahin
fasla kyun muskuraa kar rah gaya

zindagi duniya mein aisa ashk thi
jo zara palkon pe thehra bah gaya

aur kya tha us ki pursish ka jawaab
apne hi aansu chhupa kar rah gaya

us se pooch ai kaamyaab-e-zindagi
jis ka afsaana adhoora rah gaya

haaye kya deewaangi thi ai waseem
jo na kehna chahiye tha kah gaya 
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सिर्फ़ तेरा नाम ले कर रह गया
आज दीवाना बहुत कुछ कह गया

क्या मिरी तक़दीर में मंज़िल नहीं
फ़ासला क्यूँ मुस्कुरा कर रह गया

ज़िंदगी दुनिया में ऐसा अश्क थी
जो ज़रा पलकों पे ठहरा बह गया

और क्या था उस की पुर्सिश का जवाब
अपने ही आँसू छुपा कर रह गया

उस से पूछ ऐ कामयाब-ए-ज़िंदगी
जिस का अफ़्साना अधूरा रह गया

हाए क्या दीवानगी थी ऐ 'वसीम'
जो न कहना चाहिए था कह गया
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rang be-rang hon khushboo ka bharosa jaaye..

rang be-rang hon khushboo ka bharosa jaaye
meri aankhon se jo duniya tujhe dekha jaaye

ham ne jis raah ko chhodaa phir use chhod diya
ab na jaayenge udhar chahe zamaana jaaye

main ne muddat se koi khwaab nahin dekha hai
haath rakh de meri aankhon pe ki neend aa jaaye

main gunaahon ka taraf-daar nahin hoon phir bhi
raat ko din ki nigaahon se na dekha jaaye

kuchh badi sochon mein ye sochen bhi shaamil hain waseem
kis bahaane se koi shehar jalaya jaaye 
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रंग बे-रंग हों ख़ुशबू का भरोसा जाए
मेरी आँखों से जो दुनिया तुझे देखा जाए

हम ने जिस राह को छोड़ा फिर उसे छोड़ दिया
अब न जाएँगे उधर चाहे ज़माना जाए

मैं ने मुद्दत से कोई ख़्वाब नहीं देखा है
हाथ रख दे मिरी आँखों पे कि नींद आ जाए

मैं गुनाहों का तरफ़-दार नहीं हूँ फिर भी
रात को दिन की निगाहों से न देखा जाए

कुछ बड़ी सोचों में ये सोचें भी शामिल हैं 'वसीम'
किस बहाने से कोई शहर जलाया जाए
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sab ne milaaye haath yahan teergi ke saath..

sab ne milaaye haath yahan teergi ke saath
kitna bada mazaak hua raushni ke saath

shartein lagaaee jaati nahin dosti ke saath
kijeye mujhe qubool meri har kami ke saath

tera khayal teri talab teri aarzoo
main umr bhar chala hoon kisi raushni ke saath

duniya mere khilaaf khadi kaise ho gai
meri to dushmani bhi nahin thi kisi ke saath

kis kaam ki rahi ye dikhaave ki zindagi
vaade kiye kisi se guzaari kisi ke saath

duniya ko bewafaai ka ilzaam kaun de
apni hi nibh saki na bahut din kisi ke saath

qatre vo kuchh bhi paaye ye mumkin nahin waseem
badhna jo chahte hain samundar-kashi ke saath 
---------------------------------------
सब ने मिलाए हाथ यहाँ तीरगी के साथ
कितना बड़ा मज़ाक़ हुआ रौशनी के साथ

शर्तें लगाई जाती नहीं दोस्ती के साथ
कीजे मुझे क़ुबूल मेरी हर कमी के साथ

तेरा ख़याल तेरी तलब तेरी आरज़ू
मैं उम्र भर चला हूँ किसी रौशनी के साथ

दुनिया मेरे ख़िलाफ़ खड़ी कैसे हो गई
मेरी तो दुश्मनी भी नहीं थी किसी के साथ

किस काम की रही ये दिखावे की ज़िंदगी
वादे किए किसी से गुज़ारी किसी के साथ

दुनिया को बेवफ़ाई का इल्ज़ाम कौन दे
अपनी ही निभ सकी न बहुत दिन किसी के साथ

क़तरे वो कुछ भी पाएँ ये मुमकिन नहीं 'वसीम'
बढ़ना जो चाहते हैं समंदर-कशी के साथ
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bhaagte saayo ke peeche ta-b-kai dauda karein..

bhaagte saayo ke peeche ta-b-kai dauda karein
zindagi tu hi bata kab tak tira peecha karein

roo-e-gul ho chehra-e-mahtaab ho ya husn-e-dost
har chamakti cheez ko kuchh door se dekha karein

be-niyaazi khud saraapa iltijaa ban jaayegi
aap apni dastaan mein husn to paida karein

dil ki tha khush-fahm aagaah-e-haqeeqat ho gaya
shukr bhejen ya tiri bedaad ka shikwa karein

mugbachon se mohtasib tak saikron darbaar hain
ek saaghar ke liye kis kis ko ham sajda karein

tishnagi had se badhi hai mashghala koi nahin
sheesha-o-saaghar na todhen baada-kash to kya karein

doosron par tabsira farmaane se pehle hafiz
apne daaman ki taraf bhi ik nazar dekha karein 
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भागते सायों के पीछे ता-ब-कै दौड़ा करें
ज़िंदगी तू ही बता कब तक तिरा पीछा करें

रू-ए-गुल हो चेहरा-ए-महताब हो या हुस्न-ए-दोस्त
हर चमकती चीज़ को कुछ दूर से देखा करें

बे-नियाज़ी ख़ुद सरापा इल्तिजा बन जाएगी
आप अपनी दास्ताँ में हुस्न तो पैदा करें

दिल कि था ख़ुश-फ़हम आगाह-ए-हक़ीक़त हो गया
शुक्र भेजें या तिरी बेदाद का शिकवा करें

मुग़्बचों से मोहतसिब तक सैकड़ों दरबार हैं
एक साग़र के लिए किस किस को हम सज्दा करें

तिश्नगी हद से बढ़ी है मश्ग़ला कोई नहीं
शीशा-ओ-साग़र न तोड़ें बादा-कश तो क्या करें

दूसरों पर तब्सिरा फ़रमाने से पहले 'हफ़ीज़'
अपने दामन की तरफ़ भी इक नज़र देखा करें
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jahaan dariya kahi apne kinaare chhod deta hai..

jahaan dariya kahi apne kinaare chhod deta hai
koi uthata hai aur toofaan ka rukh mod deta hai

mujhe be-dast-o-pa kar ke bhi khauf us ka nahin jaata
kahi bhi haadisa guzre vo mujh se jod deta hai

bichhad ke tujh se kuchh jaana agar to is qadar jaana
vo mitti hoonjise dariya kinaare chhod deta hai

mohabbat mein zara si bewafaai to zaroori hai
wahi achha bhi lagta hai jo vaade tod deta hai 
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जहां दरिया कहीं अपने किनारे छोड़ देता है
कोई उठता है और तूफ़ान का रुख़ मोड़ देता है

मुझे बे-दस्त-ओ-पा कर के भी ख़ौफ़ उस का नहीं जाता
कहीं भी हादिसा गुज़रे वो मुझ से जोड़ देता है

बिछड़ के तुझ से कुछ जाना अगर तो इस क़दर जाना
वो मिट्टी हूंजिसे दरिया किनारे छोड़ देता है

मोहब्बत में ज़रा सी बेवफ़ाई तो ज़रूरी है
वही अच्छा भी लगता है जो वादे तोड़ देता है
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usoolon pe jahaan aanch aaye takraana zaroori hai..

usoolon pe jahaan aanch aaye takraana zaroori hai
jo zinda hon to phir zinda nazar aana zaroori hai

nayi umron ki khudmukhtaariyon ko kaun samjhaaye
kahaan se bach ke chalna hai kahaan jaana zaroori hai

thake haare parinde jab basere ke liye lautain
saleeqamand shaakhon ka lachak jaana zaroori hai

bahut bebaak aankhon mein t'alluq tik nahin paata
muhabbat mein kashish rakhne ko sharmaana zaroori hai

saleeqa hi nahin shaayad use mehsoos karne ka
jo kehta hai khuda hai to nazar aana zaroori hai

mere honthon pe apni pyaas rakh do aur phir socho
ki iske baad bhi duniya mein kuchh paana zaroori hai 
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उसूलों पे जहाँ आँच आये टकराना ज़रूरी है
जो ज़िन्दा हों तो फिर ज़िन्दा नज़र आना ज़रूरी है

नई उम्रों की ख़ुदमुख़्तारियों को कौन समझाये
कहाँ से बच के चलना है कहाँ जाना ज़रूरी है

थके हारे परिन्दे जब बसेरे के लिये लौटें
सलीक़ामन्द शाख़ों का लचक जाना ज़रूरी है

बहुत बेबाक आँखों में त'अल्लुक़ टिक नहीं पाता
मुहब्बत में कशिश रखने को शर्माना ज़रूरी है

सलीक़ा ही नहीं शायद उसे महसूस करने का
जो कहता है ख़ुदा है तो नज़र आना ज़रूरी है

मेरे होंठों पे अपनी प्यास रख दो और फिर सोचो
कि इसके बाद भी दुनिया में कुछ पाना ज़रूरी है
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meri nazar ke saleeke mein kya nahin aata..

meri nazar ke saleeke mein kya nahin aata
bas ik teri taraf hi dekhna nahin aata

akela chalna to mera naseeb tha ki mujhe
kisi ke saath safar baantna nahin aata

udhar to jaate hain raaste tamaam hone ko
idhar se ho ke koi raasta nahin aata

jagaana aata hai usko tamaam tareekon se
gharo pe dastaken dene khuda nahin aata

yahaan pe tum hi nahin aas paas aur bhi hain
par us tarah se tumhein sochna nahin aata

pade raho yoon hi sahme hue diyon ki tarah
agar hawaon ke par baandhna nahin aata 
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मेरी नजर के सलीके में क्या नहीं आता
बस इक तेरी तरफ ही देखना नहीं आता

अकेले चलना तो मेरा नसीब था कि मुझे
किसी के साथ सफर बांटना नहीं आता

उधर तो जाते हैं रस्ते तमाम होने को
इधर से हो के कोई रास्ता नहीं आता

जगाना आता है उसको तमाम तरीकों से
घरों पे दस्तकें देने ख़ुदा नहीं आता

यहां पे तुम ही नहीं आस पास और भी हैं
पर उस तरह से तुम्हें सोचना नहीं आता

पड़े रहो यूं ही सहमे हुए दियों की तरह
अगर हवाओं के पर बांधना नहीं आता
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bhala ghamon se kahaan haar jaane waale the..

bhala ghamon se kahaan haar jaane waale the
ham aansuon kii tarah muskuraane waale the

humeen ne kar diya ailaan-e-gumrahi warna
hamaare peechhe bahut log aane waale the

unhen to khaak mein milna hi tha ki mere the
ye ashk kaun se unche gharaane waale the

unhen qareeb na hone diya kabhi main ne
jo dosti mein hadein bhool jaane waale the

main jin ko jaan ke pehchaan bhi nahin saktaa
kuchh aise log mera ghar jalane waale the

hamaara almeya ye tha ki hum-safar bhi hamein
wahi mile jo bahut yaad aane waale the

waseem kaisi taalluq kii raah thi jis mein
wahi mile jo bahut dil dukhaane waale the 
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भला ग़मों से कहाँ हार जाने वाले थे
हम आँसुओं की तरह मुस्कुराने वाले थे

हमीं ने कर दिया ऐलान-ए-गुमरही वर्ना
हमारे पीछे बहुत लोग आने वाले थे

उन्हें तो ख़ाक में मिलना ही था कि मेरे थे
ये अश्क कौन से ऊँचे घराने वाले थे

उन्हें क़रीब न होने दिया कभी मैं ने
जो दोस्ती में हदें भूल जाने वाले थे

मैं जिन को जान के पहचान भी नहीं सकता
कुछ ऐसे लोग मिरा घर जलाने वाले थे

हमारा अलमिया ये था कि हम-सफ़र भी हमें
वही मिले जो बहुत याद आने वाले थे

'वसीम' कैसी तअल्लुक़ की राह थी जिस में
वही मिले जो बहुत दिल दुखाने वाले थे
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vo mere ghar nahin aata main us ke ghar nahin jaata..

vo mere ghar nahin aata main us ke ghar nahin jaata
magar in ehtiyaaton se ta'alluq mar nahin jaata

bure achhe hon jaise bhi hon sab rishte yahin ke hain
kisi ko saath duniya se koi le kar nahin jaata

gharo ki tarbiyat kya aa gai tv ke haathon mein
koi baccha ab apne baap ke oopar nahin jaata

khule the shehar mein sau dar magar ik had ke andar hi
kahaan jaata agar main laut ke phir ghar nahin jaata

mohabbat ke ye aansu hain unhen aankhon mein rahne do
shareefon ke gharo ka mas'ala baahar nahin jaata

waseem us se kaho duniya bahut mahdood hai meri
kisi dar ka jo ho jaaye vo phir dar dar nahin jaata 
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वो मेरे घर नहीं आता मैं उस के घर नहीं जाता
मगर इन एहतियातों से तअ'ल्लुक़ मर नहीं जाता

बुरे अच्छे हों जैसे भी हों सब रिश्ते यहीं के हैं
किसी को साथ दुनिया से कोई ले कर नहीं जाता

घरों की तर्बियत क्या आ गई टी-वी के हाथों में
कोई बच्चा अब अपने बाप के ऊपर नहीं जाता

खुले थे शहर में सौ दर मगर इक हद के अंदर ही
कहाँ जाता अगर मैं लौट के फिर घर नहीं जाता

मोहब्बत के ये आँसू हैं उन्हें आँखों में रहने दो
शरीफ़ों के घरों का मसअला बाहर नहीं जाता

'वसीम' उस से कहो दुनिया बहुत महदूद है मेरी
किसी दर का जो हो जाए वो फिर दर दर नहीं जाता
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beete hue din khud ko jab dohraate hain..

beete hue din khud ko jab dohraate hain
ek se jaane ham kitne ho jaate hain

ham bhi dil ki baat kahaan kah paate hain
aap bhi kuchh kahte kahte rah jaate hain

khushboo apne raaste khud tay karti hai
phool to daali ke ho kar rah jaate hain

roz naya ik qissa kehne waale log
kahte kahte khud qissa ho jaate hain

kaun bachaayega phir todne waalon se
phool agar shaakhon se dhokha khaate hain 
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बीते हुए दिन ख़ुद को जब दोहराते हैं
एक से जाने हम कितने हो जाते हैं

हम भी दिल की बात कहाँ कह पाते हैं
आप भी कुछ कहते कहते रह जाते हैं

ख़ुश्बू अपने रस्ते ख़ुद तय करती है
फूल तो डाली के हो कर रह जाते हैं

रोज़ नया इक क़िस्सा कहने वाले लोग
कहते कहते ख़ुद क़िस्सा हो जाते हैं

कौन बचाएगा फिर तोड़ने वालों से
फूल अगर शाख़ों से धोखा खाते हैं
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hamaara azm-e-safar kab kidhar ka ho jaaye..

hamaara azm-e-safar kab kidhar ka ho jaaye
ye vo nahin jo kisi raahguzaar ka ho jaaye

usi ko jeene ka haq hai jo is zamaane mein
idhar ka lagta rahe aur udhar ka ho jaaye

khuli hawaon mein udna to us ki fitrat hai
parinda kyun kisi shaakh-e-shajar ka ho jaaye

main laakh chaahoon magar ho to ye nahin saka
ki tera chehra meri hi nazar ka ho jaaye

mera na hone se kya farq us ko padna hai
pata chale jo kisi kam-nazar ka ho jaaye

waseem subh ki tanhaai-e-safar socho
mushaaira to chalo raat bhar ka ho jaaye 
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हमारा अज़्म-ए-सफ़र कब किधर का हो जाए
ये वो नहीं जो किसी रहगुज़र का हो जाए

उसी को जीने का हक़ है जो इस ज़माने में
इधर का लगता रहे और उधर का हो जाए

खुली हवाओं में उड़ना तो उस की फ़ितरत है
परिंदा क्यूं किसी शाख़-ए-शजर का हो जाए

मैं लाख चाहूं मगर हो तो ये नहीं सकता
कि तेरा चेहरा मिरी ही नज़र का हो जाए

मिरा न होने से क्या फ़र्क़ उस को पड़ना है
पता चले जो किसी कम-नज़र का हो जाए

'वसीम' सुब्ह की तन्हाई-ए-सफ़र सोचो
मुशाएरा तो चलो रात भर का हो जाए
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haadson ki zad pe hain to muskurana chhod den..

haadson ki zad pe hain to muskurana chhod den
zalzalon ke khauf se kya ghar banaana chhod den

tum ne mere ghar na aane ki qasam khaai to hai
aansuon se bhi kaho aankhon mein aana chhod den

pyaar ke dushman kabhi to pyaar se kah ke to dekh
ek tera dar hi kya ham to zamaana chhod den

ghonsle veeraan hain ab vo parinde hi kahaan
ik basere ke liye jo aab-o-daana chhod den 
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हादसों की ज़द पे हैं तो मुस्कुराना छोड़ दें
ज़लज़लों के ख़ौफ़ से क्या घर बनाना छोड़ दें

तुम ने मेरे घर न आने की क़सम खाई तो है
आँसुओं से भी कहो आँखों में आना छोड़ दें

प्यार के दुश्मन कभी तो प्यार से कह के तो देख
एक तेरा दर ही क्या हम तो ज़माना छोड़ दें

घोंसले वीरान हैं अब वो परिंदे ही कहाँ
इक बसेरे के लिए जो आब-ओ-दाना छोड़ दें
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use samajhne ka koi to raasta nikle..

use samajhne ka koi to raasta nikle
main chahta bhi yahi tha vo bewafa nikle

kitaab-e-maazi ke aoraq ult ke dekh zara
na jaane kaun sa safha muda hua nikle

main tujh se milta to tafseel mein nahin jaata
meri taraf se tire dil mein jaane kya nikle

jo dekhne mein bahut hi qareeb lagta hai
usi ke baare mein socho to fasla nikle

tamaam shehar ki aankhon mein surkh sholay hain
waseem ghar se ab aise mein koi kya nikle 
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उसे समझने का कोई तो रास्ता निकले
मैं चाहता भी यही था वो बेवफ़ा निकले

किताब-ए-माज़ी के औराक़ उलट के देख ज़रा
न जाने कौन सा सफ़हा मुड़ा हुआ निकले

मैं तुझ से मिलता तो तफ़्सील में नहीं जाता
मिरी तरफ़ से तिरे दिल में जाने क्या निकले

जो देखने में बहुत ही क़रीब लगता है
उसी के बारे में सोचो तो फ़ासला निकले

तमाम शहर की आँखों में सुर्ख़ शो'ले हैं
'वसीम' घर से अब ऐसे में कोई क्या निकले
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dukh apna agar ham ko bataana nahin aata..

dukh apna agar ham ko bataana nahin aata
tum ko bhi to andaaza lagana nahin aata

pahuncha hai buzurgon ke bayaanon se jo ham tak
kya baat hui kyun vo zamaana nahin aata

main bhi use khone ka hunar seekh na paaya
us ko bhi mujhe chhod ke jaana nahin aata

is chhote zamaane ke bade kaise banoge
logon ko jab aapas mein ladna nahin aata

dhundhe hai to palkon pe chamakne ke bahaane
aansu ko meri aankh mein aana nahin aata

taarikh ki aankhon mein dhuaan ho gaye khud hi
tum ko to koi ghar bhi jalana nahin aata 
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दुख अपना अगर हम को बताना नहीं आता
तुम को भी तो अंदाज़ा लगाना नहीं आता

पहुँचा है बुज़ुर्गों के बयानों से जो हम तक
क्या बात हुई क्यूँ वो ज़माना नहीं आता

मैं भी उसे खोने का हुनर सीख न पाया
उस को भी मुझे छोड़ के जाना नहीं आता

इस छोटे ज़माने के बड़े कैसे बनोगे
लोगों को जब आपस में लड़ाना नहीं आता

ढूँढे है तो पलकों पे चमकने के बहाने
आँसू को मिरी आँख में आना नहीं आता

तारीख़ की आँखों में धुआँ हो गए ख़ुद ही
तुम को तो कोई घर भी जलाना नहीं आता
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aate aate mera naam sa rah gaya..

aate aate mera naam sa rah gaya
us ke honton pe kuchh kaanpata rah gaya

raat mujrim thi daaman bacha le gai
din gawaahon. ki saf mein khada rah gaya

vo mere saamne hi gaya aur main
raaste ki tarah dekhta rah gaya

jhooth waale kahi se kahi badh gaye
aur main tha ki sach bolta rah gaya

aandhiyon ke iraade to achhe na the
ye diya kaise jalta hua rah gaya

us ko kaandhon pe le ja rahe hain waseem
aur vo jeene ka haq maangata rah gaya 
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आते आते मिरा नाम सा रह गया
उस के होंटों पे कुछ काँपता रह गया

रात मुजरिम थी दामन बचा ले गई
दिन गवाहों की सफ़ में खड़ा रह गया

वो मिरे सामने ही गया और मैं
रास्ते की तरह देखता रह गया

झूट वाले कहीं से कहीं बढ़ गए
और मैं था कि सच बोलता रह गया

आँधियों के इरादे तो अच्छे न थे
ये दिया कैसे जलता हुआ रह गया

उस को काँधों पे ले जा रहे हैं 'वसीम'
और वो जीने का हक़ माँगता रह गया
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chala hai silsila kaisa ye raaton ko manaane ka..

chala hai silsila kaisa ye raaton ko manaane ka
tumhein haq de diya kisne diyon ke dil dukhaane ka

iraada chhodiye apni hadon se door jaane ka
zamaana hai zamaane ki nigaahon mein na aane ka

kahaan ki dosti kin doston ki baat karte ho
miyaan dushman nahin milta koi ab to thikaane ka

nigaahon mein koi bhi doosra chehra nahin aaya
bharosa hi kuchh aisa tha tumhaare laut aane ka

ye main hi tha bacha ke khud ko le aaya kinaare tak
samandar ne bahut mauqa diya tha doob jaane ka 
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चला है सिलसिला कैसा ये रातों को मनाने का
तुम्हें हक़ दे दिया किसने दियों के दिल दुखाने का

इरादा छोड़िए अपनी हदों से दूर जाने का
ज़माना है ज़माने की निगाहों में न आने का

कहाँ की दोस्ती किन दोस्तों की बात करते हो
मियाँ दुश्मन नहीं मिलता कोई अब तो ठिकाने का

निगाहों में कोई भी दूसरा चेहरा नहीं आया
भरोसा ही कुछ ऐसा था तुम्हारे लौट आने का

ये मैं ही था बचा के ख़ुद को ले आया किनारे तक
समन्दर ने बहुत मौक़ा दिया था डूब जाने का
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kaun-si baat kahaan kaise kahi jaati hai..

kaun-si baat kahaan kaise kahi jaati hai
ye saleeqa ho to har baat sooni jaati hai

jaisa chaaha tha tujhe dekh na paaye duniya
dil mein bas ek ye hasrat hi rahi jaati hai

ek bigdi hui aulaad bhala kya jaane
kaise maa-baap ke honthon se hasi jaati hai

karz ka bojh uthaaye hue chalne ka azaab
jaise sar par koi deewaar giri jaati hai

apni pehchaan mita dena ho jaise sab kuchh
jo nadi hai vo samandar se mili jaati hai

poochna hai to ghazal waalon se poocho jaakar
kaise har baat saleeqe se kahi jaati hai 
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कौन-सी बात कहाँ, कैसे कही जाती है
ये सलीक़ा हो, तो हर बात सुनी जाती है

जैसा चाहा था तुझे, देख न पाये दुनिया
दिल में बस एक ये हसरत ही रही जाती है

एक बिगड़ी हुई औलाद भला क्या जाने
कैसे माँ-बाप के होंठों से हँसी जाती है

कर्ज़ का बोझ उठाये हुए चलने का अज़ाब
जैसे सर पर कोई दीवार गिरी जाती है

अपनी पहचान मिटा देना हो जैसे सब कुछ
जो नदी है वो समंदर से मिली जाती है

पूछना है तो ग़ज़ल वालों से पूछो जाकर
कैसे हर बात सलीक़े से कही जाती है
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Bhatakta phir raha hoon justuju bin..

Bhatakta phir raha hoon justuju bin
Saraapa aarzoo hoon aarzoo bin.

Koi is sheher ko taraaz kar de
Hui hai meri wahshat ha-o-hoo bin.

Ye sab mojiz-numayi ki hawas hai
Rafugar aaye hain taar-e-rafoo bin.

Maash-e-bedilaan poochho na yaaro
Numoo paate rahe rizq-e-numoo bin.

Guzar ai shauq ab khalwat ki raaten
Guzaarish bin gila bin guftagu bin.
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भटकता फिर रहा हूँ जुस्तुजू बिन
सरापा आरज़ू हूँ आरज़ू बिन

कोई इस शहर को ताराज कर दे
हुई है मेरी वहशत हा-ओ-हू बिन

ये सब मोजिज़-नुमाई की हवस है
रफ़ूगर आए हैं तार-ए-रफ़ू बिन

मआश-ए-बे-दिलाँ पूछो न यारो
नुमू पाते रहे रिज़्क़-ए-नुमू बिन

गुज़ार ऐ शौक़ अब ख़ल्वत की रातें
गुज़ारिश बिन गिला बिन गुफ़्तुगू बिन

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Na pooch us ki jo apne andar chhupa..

Na pooch us ki jo apne andar chhupa
Ghanimat ki main apne baahar chhupa.

Mujhe yahaan kisi pe bharosa nahi
Main apni nigahon se chhup kar chhupa.

Pahunch mukhbiron ki sukhun tak kahaan
So main apne honton pe aksar chhupa.

Meri sun na rakh apne pehlu mein dil
Ise tu kisi aur ke ghar chhupa.

Yahaan tere andar nahi meri khair
Meri jaan mujhe mere andar chhupa.

Khayalon ki aamad mein ye kharazaar
Hai teeron ki yalgaar tu sar chhupa.
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न पूछ उस की जो अपने अंदर छुपा
ग़नीमत कि मैं अपने बाहर छुपा

मुझे याँ किसी पे भरोसा नहीं
मैं अपनी निगाहों से छुप कर छुपा

पहुँच मुख़बिरों की सुख़न तक कहाँ
सो मैं अपने होंटों पे अक्सर छुपा

मिरी सुन न रख अपने पहलू में दिल
इसे तू किसी और के घर छुपा

यहाँ तेरे अंदर नहीं मेरी ख़ैर
मिरी जाँ मुझे मेरे अंदर छुपा

ख़यालों की आमद में ये ख़ारज़ार
है तीरों की यलग़ार तू सर छुपा

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Kaisa dil aur is ke kya gham ji..

Kaisa dil aur is ke kya gham ji
Yoonhi baatein banaate hain hum ji.

Kya bhala aasteen aur daaman
Kab se palken bhi ab nahi nam ji.

Us se ab koi baat kya karna
Khud se bhi baat keeje kam-kam ji.

Dil jo dil kya tha ek mehfil tha
Ab hai darham ji aur barham ji.

Baat be-taur ho gayi shayad
Zakhm bhi ab nahi hai marham ji.

Haar duniya se maan le shayad
Dil hamare mein ab nahi dam ji.

Hai ye hasrat ke zabh ho jaun
Hai shikan us shikam ki zaalim ji.

Kaise aakhir na rang khelen hum
Dil lahoo ho raha hai jaanam ji.

Hai kharaba Hussainiya apna
Roz majlis hai aur maatam ji.

Waqt dam bhar ka khel hai is mein
Besh-az-besh hai kam-az-kam ji.

Hai azal se abad talak ka hisaab
Aur bas ek pal hai paiham ji.

Be-shikan ho gayi hain woh zulfein
Us gali mein nahi rahe kham ji.

Dasht-e-dil ka ghazal hi na raha
Ab bhala kis se keejiye ram ji.
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कैसा दिल और इस के क्या ग़म जी
यूँही बातें बनाते हैं हम जी

क्या भला आस्तीन और दामन
कब से पलकें भी अब नहीं नम जी

उस से अब कोई बात क्या करना
ख़ुद से भी बात कीजे कम-कम जी

दिल जो दिल क्या था एक महफ़िल था
अब है दरहम जी और बरहम जी

बात बे-तौर हो गई शायद
ज़ख़्म भी अब नहीं है मरहम जी

हार दुनिया से मान ले शायद
दिल हमारे में अब नहीं दम जी

है ये हसरत के ज़ब्ह हो जाऊँ
है शिकन उस शिकम कि ज़ालिम जी

कैसे आख़िर न रंग खेलें हम
दिल लहू हो रहा है जानम जी

है ख़राबा हुसैनिया अपना
रोज़ मज्लिस है और मातम जी

वक़्त दम भर का खेल है इस में
बेश-अज़-बेश है कम-अज़-कम जी

है अज़ल से अबद तलक का हिसाब
और बस एक पल है पैहम जी

बे-शिकन हो गई हैं वो ज़ुल्फ़ें
उस गली में नहीं रहे ख़म जी

दश्त-ए-दिल का ग़ज़ाल ही न रहा
अब भला किस से कीजिए रम जी
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Main na thahroon na jaan tu thahra..

Main na thahroon na jaan tu thahra
Kaun lamhon ke roob-roo thahra.

Na guzarnay pe zindagi guzri
Na thaharnay pe chaar-soo thahra.

Hai meri bazm-e-be-dili bhi ajeeb
Dil pe rakhun jahan subu thahra.

Main yahaan muddaton mein aaya hoon
Ek hungama koo-ba-koo thahra.

Mahfil-e-rukhsat-e-hamesha hai
Aao ik hashra-e-hao-hoo thahra.

Ik tawaajjo ajab hai samton mein
Ke na boloon to guftagu thahra.

Kaza-ada thi bahut umeed magar
Hum bhi 'Joun' ek heela-ju thahra.

Ek chaak-e-barhengi hai wujud
Pairhan ho to be-rafu thahra.

Main jo hoon kya nahi hoon main khud bhi
Khud se baat aaj do-badoo thahra.

Bagh-e-jaan se mila na koi samar
'Joun' hum to namoo namoo thahra.
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मैं न ठहरूँ न जान तू ठहरे
कौन लम्हों के रू-ब-रू ठहरे

न गुज़रने पे ज़िंदगी गुज़री
न ठहरने पे चार-सू ठहरे

है मिरी बज़्म-ए-बे-दिली भी अजीब
दिल पे रक्खूँ जहाँ सुबू ठहरे

मैं यहाँ मुद्दतों में आया हूँ
एक हंगामा कू-ब-कू ठहरे

महफ़िल-ए-रुख़्सत-ए-हमेशा है
आओ इक हश्र-ए-हा-ओ-हू ठहरे

इक तवज्जोह अजब है सम्तों में
कि न बोलूँ तो गुफ़्तुगू ठहरे

कज-अदा थी बहुत उमीद मगर
हम भी 'जौन' एक हीला-जू ठहरे

एक चाक-ए-बरहंगी है वजूद
पैरहन हो तो बे-रफ़ू ठहरे

मैं जो हूँ क्या नहीं हूँ मैं ख़ुद भी
ख़ुद से बात आज दू-बदू ठहरे

बाग़-ए-जाँ से मिला न कोई समर
'जौन' हम तो नुमू नुमू ठहरे
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Dil se hai bahut gurez-pa tu..

Dil se hai bahut gurez-pa tu
Tu kaun hai aur hai bhi kya tu.

Kyun mujh mein gawa raha hai khud ko
Mujh aise yahaan hazaar-ha tu.

Hai teri judai aur main hoon
Milte hi kahin bichad gaya tu.

Poochhe jo tujhe koi zara bhi
Jab main na rahoon to dekhna tu.

Ik saans hi bas liya hai main ne
Tu saans na tha so kya hua tu.

Hai kaun jo tera dhyaan rakhe
Bahar mere bas kahin na ja to.
----------------------------------
दिल से है बहुत गुरेज़-पा तू
तू कौन है और है भी क्या तू

क्यूँ मुझ में गँवा रहा है ख़ुद को
मुझ ऐसे यहाँ हज़ार-हा तू

है तेरी जुदाई और मैं हूँ
मिलते ही कहीं बिछड़ गया तू

पूछे जो तुझे कोई ज़रा भी
जब मैं न रहूँ तो देखना तू

इक साँस ही बस लिया है मैं ने
तू साँस न था सो क्या हुआ तू

है कौन जो तेरा ध्यान रखे
बाहर मिरे बस कहीं न जा तो

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Woh khayal-e-muhal kis ka tha..

Woh khayal-e-muhal kis ka tha
Aina be-misaal kis ka tha.

Safar apne aap se tha main
Hijr kis ka wisaal kis ka tha.

Main to khud mein kahin na tha mojood
Mere lab par sawaal kis ka tha.

Thi meri zaat ik khayal-ashob
Jaane main hum-khayal kis ka tha.

Jab ke main har-nafas tha be-ahwal
Woh jo tha mera haal kis ka tha.

Dopehar baad-e-tund koocha-e-yaar
Woh gubaar-e-malaal kis ka tha.
-----------------------------------
वो ख़याल-ए-मुहाल किस का था
आइना बे-मिसाल किस का था

सफ़री अपने आप से था मैं
हिज्र किस का विसाल किस का था

मैं तो ख़ुद में कहीं न था मौजूद
मेरे लब पर सवाल किस का था

थी मिरी ज़ात इक ख़याल-आशोब
जाने मैं हम-ख़याल किस का था

जब कि मैं हर-नफ़स था बे-अहवाल
वो जो था मेरा हाल किस का था

दोपहर बाद-ए-तुंद कूचा-ए-यार
वो ग़ुबार-ए-मलाल किस का था

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Shaam tak meri bekali hai sharab..

Shaam tak meri bekali hai sharab
Shaam ko meri sarkhushi hai sharab.

Jahil-e-waiz ka is ko raas aaye
Sahibo meri aagahi hai sharab.

Rang-ras hai meri ragon mein ravaan
Bakhuda meri zindagi hai sharab.

Naaz hai apni dilbari pe mujhe
Mera dil meri dilbari hai sharab.

Hai ghanimat jo hosh mein nahi main
Shaikh tujh ko bacha rahi hai sharab.

Hiss jo hoti to jaane kya karta
Mufitiyon meri behisi hai sharab.
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शाम तक मेरी बेकली है शराब
शाम को मेरी सरख़ुशी है शराब

जहल-ए-वाइ'ज़ का इस को रास आए
साहिबो मेरी आगही है शराब

रंग-रस है मेरी रगों में रवाँ
ब-ख़ुदा मेरी ज़िंदगी है शराब

नाज़ है अपनी दिलबरी पे मुझे
मेरा दिल मेरी दिलबरी है शराब

है ग़नीमत जो होश में नहीं मैं
शैख़ तुझ को बचा रही है शराब

हिस जो होती तो जाने क्या करता
मुफ़्तियों मेरी बे-हिसी है शराब

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Kya kahen tum se boud-o-baash apni..

Kya kahen tum se boud-o-baash apni
Kaam hi kya wahi talaash apni

Koi dam aisi zindagi bhi karein
Apna seena ho aur kharash apni

Apne hi tisha-e-nadamat se
Zaat hai ab to paash paash apni

Hai labon par nafas-zani ki dukaan
Yawa-goi hai bas maash apni

Teri soorat pe hoon nisaara ab
Aur soorat koi taraash apni

Jism o jaan ko to bech hi daala
Ab mujhe bechni hai laash apni
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क्या कहें तुम से बूद-ओ-बाश अपनी
काम ही क्या वही तलाश अपनी

कोई दम ऐसी ज़िंदगी भी करें
अपना सीना हो और ख़राश अपनी

अपने ही तेशा-ए-नदामत से
ज़ात है अब तो पाश पाश अपनी

है लबों पर नफ़स-ज़नी की दुकाँ
यावा-गोई है बस मआश अपनी

तेरी सूरत पे हूँ निसार प अब
और सूरत कोई तराश अपनी

जिस्म ओ जाँ को तो बेच ही डाला
अब मुझे बेचनी है लाश अपनी

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Gham hai be-maazra kai din se..

Gham hai be-maazra kai din se
Ji nahi lag raha kai din se

Be-shameem-o-malaal-o-hairaan hai
Khema-gaah-e-sabaa kai din se

Dil-mohalle ki us gali mein bhala
Kyun nahi gul macha kai din se

Woh jo khushboo hai us ke qaasid ko
Main nahi mil saka kai din se

Us se bhi aur apne aap se bhi
Hum hain be-waasta kai din se
-------------------------------
ग़म है बे-माजरा कई दिन से
जी नहीं लग रहा कई दिन से

बे-शमीम-ओ-मलाल-ओ-हैराँ है
ख़ेमा-गाह-ए-सबा कई दिन से

दिल-मोहल्ले की उस गली में भला
क्यूँ नहीं गुल मचा कई दिन से

वो जो ख़ुश्बू है उस के क़ासिद को
मैं नहीं मिल सका कई दिन से

उस से भी और अपने आप से भी
हम हैं बे-वासता कई दिन से

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Na koi hijr na koi wisal hai shaayad..

Na koi hijr na koi wisal hai shaayad
Bas ek haalat-e-be-maah-o-saal hai shaayad

Hua hai dair-o-haram mein jo mutakif woh yaqeen
Takaan-e-kashmakash-e-ihtimaal hai shaayad

Khayaal-o-wahm se bartar hai us ki zaat so woh
Nihayat-e-hawas-e-khadd-o-khaal hai shaayad

Main sat-h-e-harf pe tujh ko utaar laaya hoon
Tira zawaal hi mera kamaal hai shaayad

Main ek lamha-e-maujood se idhar na udhar
So jo bhi mere liye hai muhaal hai shaayad

Woh inhimak har ik kaam mein ki khatam na ho
To koi baat hui hai malaal hai shaayad

Gumaan hua hai ye amboh se jawaabon ke
Sawaal khud hi jawab-e-sawaal hai shaaya
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न कोई हिज्र न कोई विसाल है शायद
बस एक हालत-ए-बे-माह-ओ-साल है शायद

हुआ है दैर-ओ-हरम में जो मोतकिफ़ वो यक़ीन
तकान-ए-कश्मकश-ए-एहतिमाल है शायद

ख़याल-ओ-वहम से बरतर है उस की ज़ात सो वो
निहायत-ए-हवस-ए-ख़द्द-ओ-ख़ाल है शायद

मैं सत्ह-ए-हर्फ़ पे तुझ को उतार लाया हूँ
तिरा ज़वाल ही मेरा कमाल है शायद

मैं एक लम्हा-ए-मौजूद से इधर न उधर
सो जो भी मेरे लिए है मुहाल है शायद

वो इंहिमाक हर इक काम में कि ख़त्म न हो
तो कोई बात हुई है मलाल है शायद

गुमाँ हुआ है ये अम्बोह से जवाबों के
सवाल ख़ुद ही जवाब-ए-सवाल है शायद

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Ek gumaan ka haal hai aur faqat gumaan mein hai..

Ek gumaan ka haal hai aur faqat gumaan mein hai
Kis ne azaab-e-jaan saha kaun azaab-e-jaan mein hai

Lamhah-ba-lamhah dam-ba-dam aan-ba-aan ram-ba-ram
Main bhi guzishtagaan mein hoon tu bhi guzishtagaan mein hai

Aadam-o-zaat-e-kibriya karb mein hain juda-juda
Kya kahoon un ka maazra jo bhi hai imtihaan mein hai

Shaakh se udh gaya parindah hai dil-e-shaam-e-dard-mand
Sahan mein hai malaal sa huzn sa aasmaan mein hai

Khud mein bhi be-amaan hoon main tujh mein bhi be-amaan hoon main
Kaun sahega us ka gham woh jo meri amaan mein hai

Kaisa hisaab kya hisaab haalat-e-haal hai azaab
Zakhm nafas nafas mein hai zehr zama zama mein hai

Us ka firaaq bhi ziyan us ka wisal bhi ziyan
Ek ajeeb kashmakash halqa-e-be-dilaan mein hai

Bood-o-nabood ka hisaab main nahi jaanta magar
Saare wujood ki nahi mere adam ki haan mein hai
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एक गुमाँ का हाल है और फ़क़त गुमाँ में है
किस ने अज़ाब-ए-जाँ सहा कौन अज़ाब-ए-जाँ में है

लम्हा-ब-लम्हा दम-ब-दम आन-ब-आन रम-ब-रम
मैं भी गुज़िश्तगाँ में हूँ तू भी गुज़िश्तगाँ में है

आदम-ओ-ज़ात-ए-किब्रिया कर्ब में हैं जुदा जुदा
क्या कहूँ उन का माजरा जो भी है इम्तिहाँ में है

शाख़ से उड़ गया परिंद है दिल-ए-शाम-ए-दर्द-मंद
सहन में है मलाल सा हुज़्न सा आसमाँ में है

ख़ुद में भी बे-अमाँ हूँ मैं तुझ में भी बे-अमाँ हूँ मैं
कौन सहेगा उस का ग़म वो जो मिरी अमाँ में है

कैसा हिसाब क्या हिसाब हालत-ए-हाल है अज़ाब
ज़ख़्म नफ़स नफ़स में है ज़हर ज़माँ ज़माँ में है

उस का फ़िराक़ भी ज़ियाँ उस का विसाल भी ज़ियाँ
एक अजीब कश्मकश हल्क़ा-ए-बे-दिलाँ में है

बूद-ओ-नबूद का हिसाब मैं नहीं जानता मगर
सारे वजूद की नहीं मेरे अदम की हाँ में है

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Ik zakhm bhi yaaran-e-bismil nahi aane ka..

Ik zakhm bhi yaaran-e-bismil nahi aane ka
Maqtal mein pade rahiye qaatil nahi aane ka

Ab kooch karo yaaro sahra se ki sunte hain
Sahra mein ab ainda mehmal nahi aane ka

Wa'iz ko kharaabe mein ik dawat-e-haq dee thi
Main jaan raha tha woh jaahil nahi aane ka

Buniyaad-e-jahan pehle jo thi wohi ab bhi hai
Yoon hashr to yaaran-e-yak-dil nahi aane ka

But hai ki Khuda hai woh maana hai na maanunga
Us shokh se jab tak main khud mil nahi aane ka

Gar dil ki yeh mehfil hai kharcha bhi ho phir dil ka
Bahar se to samaan-e-mehfil nahi aane ka

Woh naaf pyale se sarmast kare warna
Ho ke main kabhi us ka qail nahi aane ka
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इक ज़ख़्म भी यारान-ए-बिस्मिल नहीं आने का
मक़्तल में पड़े रहिए क़ातिल नहीं आने का

अब कूच करो यारो सहरा से कि सुनते हैं
सहरा में अब आइंदा महमिल नहीं आने का

वाइ'ज़ को ख़राबे में इक दावत-ए-हक़ दी थी
मैं जान रहा था वो जाहिल नहीं आने का

बुनियाद-ए-जहाँ पहले जो थी वही अब भी है
यूँ हश्र तो यारान-ए-यक-दिल नहीं आने का

बुत है कि ख़ुदा है वो माना है न मानूँगा
उस शोख़ से जब तक मैं ख़ुद मिल नहीं आने का

गर दिल की ये महफ़िल है ख़र्चा भी हो फिर दिल का
बाहर से तो सामान-ए-महफ़िल नहीं आने का

वो नाफ़ प्याले से सरमस्त करे वर्ना
हो के मैं कभी उस का क़ाइल नहीं आने का

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Kya ho gaya hai gesoo-e-khamdar ko tire..

Kya ho gaya hai gesoo-e-khamdar ko tire
Azad kar rahe hain giraftar ko tire

Ab tu hai muddaton se shab-o-roz roob-roo
Kitne hi din guzar gaye didaar ko tire

Kal raat chobdar samet aa ke le gaya
Ik gol tarah-daar-e-sar-e-daar ko tire

Ab itni kund ho gayi dhaar ai yaqeen tire
Ab rokta nahi hai koi waar ko tire

Ab rishta-e-mareez-o-masiha hua hai khwaar
Sab pesha-war samajhte hain beemaar ko tire

Bahar nikal ke aa dar-o-deewar-e-zaat se
Le jaayegi hawa dar-o-deewar ko tire

Ai rang us mein sood hai tera ziyan nahi
Khushboo uda ke le gayi zangaar ko tire
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क्या हो गया है गेसू-ए-ख़मदार को तिरे
आज़ाद कर रहे हैं गिरफ़्तार को तिरे

अब तू है मुद्दतों से शब-ओ-रोज़ रू-ब-रू
कितने ही दिन गुज़र गए दीदार को तिरे

कल रात चोबदार समेत आ के ले गया
इक ग़ोल तरह-दार-ए-सर-ए-दार को तिरे

अब इतनी कुंद हो गई धार ऐ यक़ीं तिरी
अब रोकता नहीं है कोई वार को तिरे

अब रिश्ता-ए-मरीज़-ओ-मसीहा हुआ है ख़्वार
सब पेशा-वर समझते हैं बीमार को तिरे

बाहर निकल के आ दर-ओ-दीवार-ए-ज़ात से
ले जाएगी हवा दर-ओ-दीवार को तिरे

ऐ रंग उस में सूद है तेरा ज़ियाँ नहीं
ख़ुशबू उड़ा के ले गई ज़ंगार को तिरे

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Dhoop uthata hoon ki ab sar pe koi baar nahi..

Dhoop uthata hoon ki ab sar pe koi baar nahi
Beech deewar hai aur saaya-e-deewar nahi

Shahr ki gasht mein hain subah se saare Mansoor
Ab to Mansoor wahi hai jo sar-e-daar nahi

Mat suno mujh se jo aazaar uthane honge
Ab ke aazaar ye phaila hai ki aazaar nahi

Sochta hoon ki bhala umr ka hasal kya tha
Umr-bhar saans liye aur koi ambar nahi

Jin dukaanon ne lagaaye the nighah mein bazaar
Un dukaanon ka ye rona hai ki bazaar nahi

Ab woh haalat hai ki thak kar main Khuda ho jaoon
Koi dil-daar nahi koi dil-azaar nahi

Mujh se tum kaam na lo kaam mein laao mujh ko
Koi to shahr mein aisa hai ki be-kaar nahi

Yaad-e-aashob ka aalam to woh aalam hai ki ab
Yaad maston ko tiri yaad bhi darkaar nahi

Waqt ko sood pe de aur na rakh koi hisaab
Ab bhala kaisa ziyan koi khareedar nahi
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धूप उठाता हूँ कि अब सर पे कोई बार नहीं
बीच दीवार है और साया-ए-दीवार नहीं

शहर की गश्त में हैं सुब्ह से सारे मंसूर
अब तो मंसूर वही है जो सर-ए-दार नहीं

मत सुनो मुझ से जो आज़ार उठाने होंगे
अब के आज़ार ये फैला है कि आज़ार नहीं

सोचता हूँ कि भला उम्र का हासिल क्या था
उम्र-भर साँस लिए और कोई अम्बार नहीं

जिन दुकानों ने लगाए थे निगह में बाज़ार
उन दुकानों का ये रोना है कि बाज़ार नहीं

अब वो हालत है कि थक कर मैं ख़ुदा हो जाऊँ
कोई दिलदार नहीं कोई दिल-आज़ार नहीं

मुझ से तुम काम न लो काम में लाओ मुझ को
कोई तो शहर में ऐसा है कि बे-कार नहीं

याद-ए-आशोब का आलम तो वो आलम है कि अब
याद मस्तों को तिरी याद भी दरकार नहीं

वक़्त को सूद पे दे और न रख कोई हिसाब
अब भला कैसा ज़ियाँ कोई ख़रीदार नहीं

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Jo guzar dushman hai us ka rahguzar rakhha hai naam..

Jo guzar dushman hai us ka rahguzar rakhha hai naam
Zaat se apni na hilne ka safar rakhha hai naam

Pad gaya hai ik bhawar us ko samajh baithe hain ghar
Lahar uthi hai lahar ka deewar-o-dar rakhha hai naam

Naam jis ka bhi nikal jaye usi par hai madar
Us ka hona ya na hona kya, magar rakhha hai naam

Hum yahaan khud aaye hain laaya nahi koi humein
Aur Khuda ka hum ne apne naam par rakhha hai naam

Chaak-e-chaaki dekh kar pairahan-e-pahnai ki
Main ne apne har nafs ka bakhiya-gar rakhha hai naam

Mera seena koi chalni bhi agar kar de to kya
Main ne to ab apne seene ka sipar rakhha hai naam

Din hue par tu kahin hona kisi bhi shakl mein
Jaag kar khwabon ne tera raat bhar rakhha hai naam
------------------------------------------------------
जो गुज़र दुश्मन है उस का रहगुज़र रक्खा है नाम
ज़ात से अपनी न हिलने का सफ़र रक्खा है नाम

पड़ गया है इक भँवर उस को समझ बैठे हैं घर
लहर उठी है लहर का दीवार-ओ-दर रक्खा है नाम

नाम जिस का भी निकल जाए उसी पर है मदार
उस का होना या न होना क्या, मगर रक्खा है नाम

हम यहाँ ख़ुद आए हैं लाया नहीं कोई हमें
और ख़ुदा का हम ने अपने नाम पर रक्खा है नाम

चाक-ए-चाकी देख कर पैराहन-ए-पहनाई की
मैं ने अपने हर नफ़्स का बख़िया-गर रक्खा है नाम

मेरा सीना कोई छलनी भी अगर कर दे तो क्या
मैं ने तो अब अपने सीने का सिपर रक्खा है नाम

दिन हुए पर तू कहीं होना किसी भी शक्ल में
जाग कर ख़्वाबों ने तेरा रात भर रक्खा है नाम

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Shikwa avval to be-hisaab kiya..

Shikwa avval to be-hisaab kiya
Aur phir band hi ye baab kiya

Jaante the badi awam jise
Hum ne us se bhi ijtinaab kiya

Thi kisi shakhs ki talash mujhe
Main ne khud ko hi intikhaab kiya

Ik taraf main hoon ik taraf tum ho
Jaane kis ne kise kharaab kiya

Aakhir ab kis ki baat maanun main
Jo mila us ne la-jawab kiya

Yoon samajh tujh ko muztarib pa kar
Main ne izhaar-e-iztiraab kiya
--------------------------------
शिकवा अव्वल तो बे-हिसाब किया
और फिर बंद ही ये बाब किया

जानते थे बदी अवाम जिसे
हम ने उस से भी इज्तिनाब किया

थी किसी शख़्स की तलाश मुझे
मैं ने ख़ुद को ही इंतिख़ाब किया

इक तरफ़ मैं हूँ इक तरफ़ तुम हो
जाने किस ने किसे ख़राब किया

आख़िर अब किस की बात मानूँ मैं
जो मिला उस ने ला-जवाब किया

यूँ समझ तुझ को मुज़्तरिब पा कर
मैं ने इज़हार-ए-इज़्तिराब किया

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Na to dil ka na jaan ka daftar hai..

Na to dil ka na jaan ka daftar hai
Zindagi ik ziyan ka daftar hai

Padh raha hoon main kaaghazaat-e-wujud
Aur nahi aur haan ka daftar hai

Koi soche to sooz-e-karb-e-jaan
Saara daftar gumaan ka daftar hai

Hum mein se koi to kare israr
Ke zameen aasman ka daftar hai

Hijr taa-til-e-jism-o-jaan hai miyaan
Wasl jism aur jaan ka daftar hai

Woh jo daftar hai aasmani-tar
Woh miyaan ji yahaan ka daftar hai

Hai jo bood-o-nabood ka daftar
Aakhirash yeh kahaan ka daftar hai

Jo haqeeqat hai dam-b-dam ki yaad
Woh to ik daastaan ka daftar hai

Ho raha hai guzishtagaa ka hisaab
Aur aaindagaan ka daftar hai
--------------------------------
न तो दिल का न जाँ का दफ़्तर है
ज़िंदगी इक ज़ियाँ का दफ़्तर है

पढ़ रहा हूँ मैं काग़ज़ात-ए-वजूद
और नहीं और हाँ का दफ़्तर है

कोई सोचे तो सोज़-ए-कर्ब-ए-जाँ
सारा दफ़्तर गुमाँ का दफ़्तर है

हम में से कोई तो करे इसरार
कि ज़मीं आसमाँ का दफ़्तर है

हिज्र ता'तील-ए-जिस्म-ओ-जाँ है मियाँ
वस्ल जिस्म और जाँ का दफ़्तर है

वो जो दफ़्तर है आसमानी-तर
वो मियाँ जी यहाँ का दफ़्तर है

है जो बूद-ओ-नबूद का दफ़्तर
आख़िरश ये कहाँ का दफ़्तर है

जो हक़ीक़त है दम-ब-दम की याद
वो तो इक दास्ताँ का दफ़्तर है

हो रहा है गुज़िश्तगाँ का हिसाब
और आइंदगाँ का दफ़्तर है

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Shamshir meri, meri sipar kis ke paas hai..

Shamshir meri, meri sipar kis ke paas hai
Do mera khud par mera sar kis ke paas hai

Darpesh ek kaam hai himmat ka saathiyo
Kasna hai mujh ko meri kamar kis ke paas hai

Taari ho mujh pe kaun si haalat mujhe batao
Mera hisaab-e-naf-o-zarar kis ke paas hai

Ai Ahl-e-shahr main to dua-go-e-shahr hoon
Lab par mere dua hai asar kis ke paas hai

Daad-o-sitad ke shahr mein hone ko aayi shaam
Khwaahish hai mere paas khabar kis ke paas hai

Pur-haal hoon, p surat-e-ahaal kuch nahi
Hairat hai mere paas nazar kis ke paas hai

Ik aftaab hai meri jeb-e-nigah mein
Pehenai-e-numood-e-seher kis ke paas hai

Qissa kishore ka nahi koshak ka hai ki hai
Darwaza sab ke paas hai ghar kis ke paas hai

Mehmaan-e-qasr hain humein kuch ramz chahiyein
Yeh pooch ke batao khandar kis ke paas hai

Uthla sa naaf-pyaala hamari nahi talash
Ai ladkiyo! Batao bhawar kis ke paas hai

Naakhun badhe hue hain mere mujh se kar hazar
Yeh ja ke dekh nail-cutter kis ke paas hai
-------------------------------------------
शमशीर मेरी, मेरी सिपर किस के पास है
दो मेरा ख़ूद पर मिरा सर किस के पास है

दरपेश एक काम है हिम्मत का साथियो
कसना है मुझ को मेरी कमर किस के पास है

तारी हो मुझ पे कौन सी हालत मुझे बताओ
मेरा हिसाब-ए-नफ़-ओ-ज़रर किस के पास है

ऐ अहल-ए-शहर मैं तो दुआ-गो-ए-शहर हूँ
लब पर मिरे दुआ है असर किस के पास है

दाद-ओ-सितद के शहर में होने को आई शाम
ख़्वाहिश है मेरे पास ख़बर किस के पास है

पुर-हाल हूँ प सूरत-ए-अहवाल कुछ नहीं
हैरत है मेरे पास नज़र किस के पास है

इक आफ़्ताब है मिरी जेब-ए-निगाह में
पहनाई-ए-नुमूद-ए-सहर किस के पास है

क़िस्सा किशोर का नहीं कोशक का है कि है
दरवाज़ा सब के पास है घर किस के पास है

मेहमान-ए-क़स्र हैं हमें कुछ रम्ज़ चाहिएँ
ये पूछ के बताओ खंडर किस के पास है

उथला सा नाफ़-प्याला हमारी नहीं तलाश
ऐ लड़कियो! बताओ भँवर किस के पास है

नाख़ुन बढ़े हुए हैं मिरे मुझ से कर हज़र
ये जा के देख नेल-कटर किस के पास है

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Dil jo ik jaay thi duniya hui aabaad us mein..

Dil jo ik jaay thi duniya hui aabaad us mein
Pehle sunte hain ki rehti thi koi yaad us mein

Woh jo tha apna gumaan aaj bohot yaad aaya
Thi ajab rahat-e-aazaadi-e-ijad us mein

Ek hi to woh muhim thi jise sar karna tha
Mujhe hasil na kisi ki hui imdaad us mein

Ek khushboo mein rahi mujh ko talash-e-khud-o-khaal
Rang faslein meri yaaro huiin barbaad us mein

Bagh-e-jaan se tu kabhi raat gaye guzra hai
Kehte hain raat mein khelen hain pari-zaad us mein

Dil-mohalle mein ajab ek qafas tha yaaro
Said ko chhod ke rehne laga sayyad us mein
-------------------------------------------
दिल जो इक जाए थी दुनिया हुई आबाद उस में
पहले सुनते हैं कि रहती थी कोई याद उस में

वो जो था अपना गुमान आज बहुत याद आया
थी अजब राहत-ए-आज़ादी-ए-ईजाद उस में

एक ही तो वो मुहिम थी जिसे सर करना था
मुझे हासिल न किसी की हुई इमदाद उस में

एक ख़ुश्बू में रही मुझ को तलाश-ए-ख़द-ओ-ख़ाल
रंग फ़सलें मिरी यारो हुईं बरबाद उस में

बाग़-ए-जाँ से तू कभी रात गए गुज़रा है
कहते हैं रात में खेलें हैं परी-ज़ाद उस में

दिल-मोहल्ले में अजब एक क़फ़स था यारो
सैद को छोड़ के रहने लगा सय्याद उस में

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Khud se rishtay rahe kahan un ke..

Khud se rishtay rahe kahan un ke
Gham to jaane the raayegan un ke

Mast un ko gumaan mein rehne de
Khaana-barbaad hain gumaan un ke

Yaar sukh neend ho naseeb un ko
Dukh yeh hai dukh hain be-amaan un ke

Kitni sar-sabz thi zameen un ki
Kitne neele the aasman un ke

Nauha-khwani hai kya zaroor unhein
Un ke naghme hain nauha-khwan un ke
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ख़ुद से रिश्ते रहे कहाँ उन के
ग़म तो जाने थे राएगाँ उन के

मस्त उन को गुमाँ में रहने दे
ख़ाना-बर्बाद हैं गुमाँ उन के

यार सुख नींद हो नसीब उन को
दुख ये है दुख हैं बे-अमाँ उन के

कितनी सरसब्ज़ थी ज़मीं उन की
कितने नीले थे आसमाँ उन के

नौहा-ख़्वानी है क्या ज़रूर उन्हें
उन के नग़्मे हैं नौहा-ख़्वाँ उन के

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Tiflaan-e-koocha-gard ke patthar bhi kuch nahi..

Tiflaan-e-koocha-gard ke patthar bhi kuch nahi
Sauda bhi ek wahm hai aur sar bhi kuch nahi

Main aur khud ko tujh se chhupaunga ya'ni main
Le dekh le miyaan mere andar bhi kuch nahi

Bas ik gubaar-e-wahm hai ik koocha-gard ka
Deewar-e-bood kuch nahi aur dar bhi kuch nahi

Yeh shahar-daar-o-muhtasib-o-maulvi hi kya
Peer-e-mughan-o-rind-o-qalandar bhi kuch nahi

Shaikh-e-haram-luqma ki parwa hai kyun tumhein
Masjid bhi uski kuch nahi mimbar bhi kuch nahi

Maqdoor apna kuch bhi nahi is dayar mein
Shayad woh zabr hai ke muqaddar bhi kuch nahi

Jaane main tere naaf-piyaale pe hoon fida
Yeh aur baat hai tera paikar bhi kuch nahi

Yeh shab ka raqs-o-rang to kya sun meri kuhn
Subh-e-shitaab-kosh ko daftar bhi kuch nahi

Bas ik gubaar Toor-e-gumaan ka hai teh-ba-teh
Ya'ni nazar bhi kuch nahi manzar bhi kuch nahi

Hai ab to ek jaal sukoon-e-hameshgi
Parwaz ka to zikr hi kya par bhi kuch nahi

Kitna daraawna hai yeh shahar-e-nabood-o-bood
Aisa daraawna ki yahaan dar bhi kuch nahi

Pehlu mein hai jo mere kahin aur hai woh shakhs
Ya'ni wafa-e-ahad ka bistar bhi kuch nahi

Nisbat mein un ki jo hai aziyyat woh hai magar
Shehrag bhi koi shay nahi aur sar bhi kuch nahi

Yaaran tumhein jo mujh se gila hai to kis liye
Mujh ko to aitiraaz Khuda par bhi kuch nahi

Guzregi 'Jau'n' shahar mein rishton ke kis tarah
Dil mein bhi kuch nahi hai zubaan par bhi kuch nahi
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तिफ़्लान-ए-कूचा-गर्द के पत्थर भी कुछ नहीं
सौदा भी एक वहम है और सर भी कुछ नहीं

मैं और ख़ुद को तुझ से छुपाऊँगा या'नी मैं
ले देख ले मियाँ मिरे अंदर भी कुछ नहीं

बस इक गुबार-ए-वहम है इक कूचा-गर्द का
दीवार-ए-बूद कुछ नहीं और दर भी कुछ नहीं

ये शहर-दार-ओ-मुहतसिब-ओ-मौलवी ही क्या
पीर-ए-मुग़ान-ओ-रिन्द-ओ-क़लंदर भी कुछ नहीं

शैख़-ए-हराम-लुक़्मा की पर्वा है क्यूँ तुम्हें
मस्जिद भी उस की कुछ नहीं मिम्बर भी कुछ नहीं

मक़्दूर अपना कुछ भी नहीं इस दयार में
शायद वो जब्र है कि मुक़द्दर भी कुछ नहीं

जानी मैं तेरे नाफ़-पियाले पे हूँ फ़िदा
ये और बात है तिरा पैकर भी कुछ नहीं

ये शब का रक़्स-ओ-रंग तो क्या सुन मिरी कुहन
सुब्ह-ए-शिताब-कोश को दफ़्तर भी कुछ नहीं

बस इक ग़ुबार तूर-ए-गुमाँ का है तह-ब-तह
या'नी नज़र भी कुछ नहीं मंज़र भी कुछ नहीं

है अब तो एक जाल सुकून-ए-हमेशगी
पर्वाज़ का तो ज़िक्र ही क्या पर भी कुछ नहीं

कितना डरावना है ये शहर-ए-नबूद-ओ-बूद
ऐसा डरावना कि यहाँ डर भी कुछ नहीं

पहलू में है जो मेरे कहीं और है वो शख़्स
या'नी वफ़ा-ए-अहद का बिस्तर भी कुछ नहीं

निस्बत में उन की जो है अज़िय्यत वो है मगर
शह-रग भी कोई शय नहीं और सर भी कुछ नहीं

याराँ तुम्हें जो मुझ से गिला है तो किस लिए
मुझ को तो ए'तिराज़ ख़ुदा पर भी कुछ नहीं

गुज़रेगी 'जौन' शहर में रिश्तों के किस तरह
दिल में भी कुछ नहीं है ज़बाँ पर भी कुछ नहीं

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Dil ka dayar-e-khwaab mein door talak guzar raha..

Dil ka dayar-e-khwaab mein door talak guzar raha
Paanv nahi the darmiyaan aaj bada safar raha

Ho na saka humein kabhi apna khayal tak naseeb
Naqsh kisi khayal ka lau-e-khayal par raha

Naqsh-garon se chahiye naqsh o nigaar ka hisaab
Rang ki baat mat karo rang bahut bikhar raha

Jaane gumaan ki woh gali aisi jagah hai kaun si
Dekh rahe ho tum ki main phir wahin ja ke mar raha

Dil mere dil mujhe bhi tum apne khawaas mein rakho
Yaaran tumhare baab mein main hi na motabar raha

Shahar-e-firaq-e-yaar se aayi hai ik khabar mujhe
Koocha-e-yaad-e-yaar se koi nahi ubhar raha
-------------------------------------------------
दिल का दयार-ए-ख़्वाब में दूर तलक गुज़र रहा
पाँव नहीं थे दरमियाँ आज बड़ा सफ़र रहा

हो न सका हमें कभी अपना ख़याल तक नसीब
नक़्श किसी ख़याल का लौह-ए-ख़याल पर रहा

नक़्श-गरों से चाहिए नक़्श ओ निगार का हिसाब
रंग की बात मत करो रंग बहुत बिखर रहा

जाने गुमाँ की वो गली ऐसी जगह है कौन सी
देख रहे हो तुम कि मैं फिर वहीं जा के मर रहा

दिल मिरे दिल मुझे भी तुम अपने ख़वास में रखो
याराँ तुम्हारे बाब में मैं ही न मो'तबर रहा

शहर-ए-फ़िराक़-ए-यार से आई है इक ख़बर मुझे
कूचा-ए-याद-ए-यार से कोई नहीं उभर रहा

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Maskan-e-maah-o-saal chhod gaya..

Maskan-e-maah-o-saal chhod gaya
Dil ko us ka khayal chhod gaya

Tazah-dam jism-o-jaan the furqat mein
Wasl us ka nidhaal chhod gaya

Ahd-e-maazi jo tha ajab pur-haal
Ek veeraan haal chhod gaya

Jhala-baari ke marhalon ka safar
Qafile payemal chhod gaya

Dil ko ab ye bhi yaad ho ke na ho
Kaun tha kya malaal chhod gaya

Main bhi ab khud se hoon jawab-talab
Woh mujhe be-sawaal chhod gaya
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मस्कन-ए-माह-ओ-साल छोड़ गया
दिल को उस का ख़याल छोड़ गया

ताज़ा-दम जिस्म-ओ-जाँ थे फ़ुर्क़त में
वस्ल उस का निढाल छोड़ गया

अहद-ए-माज़ी जो था अजब पुर-हाल
एक वीरान हाल छोड़ गया

झाला-बारी के मरहलों का सफ़र
क़ाफ़िले पाएमाल छोड़ गया

दिल को अब ये भी याद हो कि न हो
कौन था क्या मलाल छोड़ गया

मैं भी अब ख़ुद से हूँ जवाब-तलब
वो मुझे बे-सवाल छोड़ गया

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Shahar-ba-shahar kar safar zad-e-safar liye bagair..

Shahar-ba-shahar kar safar zad-e-safar liye bagair
Koi asar kiye bagair koi asar liye bagair

Koh-o-kamar mein hum-safir kuch nahi ab bujhz hawa
Dekhiyo paltiyo na aaj shahar se par liye bagair

Waqt ke ma'rake mein thiin mujh ko riayatain hawas
Main sar-e-ma'raka gaya apni sipar liye bagair

Kuch bhi ho qatl-gaah mein husn-e-badan ka hai zarr
Hum na kahin se aayein ge dosh pe sar liye bagair

Karya-e-geri mein mera gerya hunar-warana hai
Yaan se kahin taloonga main daad-e-hunar liye bagair

Us ke bhi kuch gile hain dil unka hisaab tum rakho
Deed ne us mein ki basar us ki khabar liye bagair

Us ka sukhun bhi ja se hai aur wo ye ke 'Jau' tum
Shohra-e-shahar ho to kya shahar mein ghar liye bagair
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शहर-ब-शहर कर सफ़र ज़ाद-ए-सफ़र लिए बग़ैर
कोई असर किए बग़ैर कोई असर लिए बग़ैर

कोह-ओ-कमर में हम-सफ़ीर कुछ नहीं अब ब-जुज़ हवा
देखियो पलटियो न आज शहर से पर लिए बग़ैर

वक़्त के मा'रके में थीं मुझ को रिआयतें हवस
मैं सर-ए-मा'रका गया अपनी सिपर लिए बग़ैर

कुछ भी हो क़त्ल-गाह में हुस्न-ए-बदन का है ज़रर
हम न कहीं से आएँगे दोश पे सर लिए बग़ैर

करया-ए-गिरया में मिरा गिर्या हुनर-वराना है
याँ से कहीं टलूँगा मैं दाद-ए-हुनर लिए बग़ैर

उस के भी कुछ गिले हैं दिल उन का हिसाब तुम रखो
दीद ने उस में की बसर उस की ख़बर लिए बग़ैर

उस का सुख़न भी जा से है और वो ये कि 'जौन' तुम
शोहरा-ए-शहर हो तो क्या शहर में घर लिए बग़ैर

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Ranj hai haalate-safar haal-e-qayaam, ranj hai..

Ranj hai haalate-safar haal-e-qayaam, ranj hai
Subah-ba-subah ranj hai shaam-ba-shaam ranj hai

Us ki shameem-e-zulf ka kaise ho shukriya ada
Jab ke shameem ranj hai, jab ke masham ranj hai

Said to kya ke said-kaar khud bhi nahi ye jaanta
Daana bhi ranj hai yahani ke daam ranj hai

Maani-e-Jaavedaan-e-jaan kuch bhi nahi magar ziyaan
Saare kaleem hain zabaan, saara kalaam ranj hai

Baba Alif meri numood ranj hai aap ke ba-qoul
Kya mera naam bhi hai ranj, haan tera naam ranj hai

Kasa gadaagari ka hai naaf-pyaala yaar ka
Bhookh hai wo badan tamaam, wasl tamaam ranj hai

Jeet ke koi aaye tab haar ke koi aaye tab
Johar-e-teg sharm hai aur niyam ranj hai

Dil ne padha sabak tamaam, bood to hai qalq tamaam
Haan mera naam ranj hai, haan tera naam ranj hai

Paik-e-qaza hai dam-ba-dam 'Jaun' qadam-qadam shumaar
Laghzish-e-gaam ranj hai husn-e-khiraam ranj hai

Baba Alif ne shab kaha nasha-ba-nasha kar gile
Jura-ba-jura ranj hai jaam-ba-jaam ranj hai

Aaan pe ho madaar kya bood ke rozgaar ka
Dam hama-dam hai doon ye dam wahm-e-dawaam ranj hai

Razm hai khoon ka hazar koi bahaaye ya bahe
Rustam o Zaal hain malaal yahani ke saam ranj hai
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रंज है हालत-ए-सफ़र हाल-ए-क़याम रंज है
सुब्ह-ब-सुब्ह रंज है शाम-ब-शाम रंज है

उस की शमीम-ए-ज़ुल्फ़ का कैसे हो शुक्रिया अदा
जब कि शमीम रंज है जब कि मशाम रंज है

सैद तो क्या कि सैद-कार ख़ुद भी नहीं ये जानता
दाना भी रंज है यहाँ या'नी कि दाम रंज है

मानी-ए-जावेदान-ए-जाँ कुछ भी नहीं मगर ज़ियाँ
सारे कलीम हैं ज़ुबूँ सारा कलाम रंज है

बाबा अलिफ़ मिरी नुमूद रंज है आप के ब-क़ौल
क्या मिरा नाम भी है रंज हाँ तिरा नाम रंज है

कासा गदागरी का है नाफ़-पियाला यार का
भूक है वो बदन तमाम वस्ल तमाम रंज है

जीत के कोई आए तब हार के कोई आए तब
जौहर-ए-तेग़ शर्म है और नियाम रंज है

दिल ने पढ़ा सबक़ तमाम बूद तो है क़लक़ तमाम
हाँ मिरा नाम रंज है हाँ तिरा नाम रंज है

पैक-ए-क़ज़ा है दम-ब-दम 'जौन' क़दम क़दम शुमार
लग़्ज़िश-ए-गाम रंज है हुस्न-ए-ख़िराम रंज है

बाबा अलिफ़ ने शब कहा नश्शा-ब-नश्शा कर गिले
जुरआ-ब-जुरआ रंज है जाम-ब-जाम रंज है

आन पे हो मदार क्या बूद के रोज़गार का
दम हमा-दम है दूँ ये दम वहम-ए-दवाम रंज है

रज़्म है ख़ून का हज़र कोई बहाए या बहे
रुस्तम ओ ज़ाल हैं मलाल या'नी कि साम रंज है

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Ye jo suna ek din wo haveli yak-sar be-asaar giri..

Ye jo suna ek din wo haveli yak-sar be-asaar giri
Hum jab bhi saaye mein baithe, dil par ek deewar giri

Joonhi mud kar dekha maine, beech uthi thi ek deewar
Bas yun samjho mere upar bijli si ek baar giri

Dhaar pe baad rakhi jaye aur hum us ke ghaayal thahrein
Maine dekha aur nazron se un palkon ki dhaar giri

Girne wali un taameeron mein bhi ek saliqa tha
Tum eenton ki poochh rahe ho, mitti tak hamvaar giri

Bedari ke bistar par main un ke khwaab sajata hoon
Neend bhi jin ki taat ke upar khwaabon se nadaar giri

Khoob hi thi wo qaum-e-shahidaan, ya’ni sab be-zakhm-o-kharaash
Main bhi us saf mein tha shaamil, wo saf jo be-waar giri

Har lamha ghamsaan ka ran hai, kaun apne ausaan mein hai
Kaun hai ye? Achha to main hoon, laash to haan ek yaar giri
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ये जो सुना इक दिन वो हवेली यकसर बे-आसार गिरी
हम जब भी साए में बैठे दिल पर इक दीवार गिरी

जूँही मुड़ कर देखा मैं ने बीच उठी थी इक दीवार
बस यूँ समझो मेरे ऊपर बिजली सी इक बार गिरी

धार पे बाड़ रखी जाए और हम उस के घायल ठहरें
मैं ने देखा और नज़रों से उन पलकों की धार गिरी

गिरने वाली उन तामीरों में भी एक सलीक़ा था
तुम ईंटों की पूछ रहे हो मिट्टी तक हमवार गिरी

बेदारी के बिस्तर पर मैं उन के ख़्वाब सजाता हूँ
नींद भी जिन की टाट के ऊपर ख़्वाबों से नादार गिरी

ख़ूब ही थी वो क़ौम-ए-शहीदाँ या'नी सब बे-ज़ख़म-ओ-ख़राश
मैं भी उस सफ़ में था शामिल वो सफ़ जो बे-वार गिरी

हर लम्हा घमसान का रन है कौन अपने औसान में है
कौन है ये? अच्छा तो मैं हूँ लाश तो हाँ इक यार गिरी

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Koo-e-jaanaan mein aur kya maango..

Koo-e-jaanaan mein aur kya maango
Haalat-e-haal yak sadaa maango

Har-nafas tum yaqeen-e-mune’im se
Rizq apne gumaan ka maango

Hai agar wo bahut hi dil nazdeek
Us se doori ka silsila maango

Dar-e-matlab hai kya talab-angez
Kuch nahi waan, so kuch bhi jaa maango

Gosha-geer-e-ghubaar-e-zaat hoon main
Mujh mein ho kar mira pataa maango

Munkiraan-e-Khuda-e-bakhshinda
Us se to aur ek Khuda maango

Us shikam-raqs-gar ke saail ho
Naaf-pyaale ki tum ataa maango

Laakh janjaal maangne mein hain
Kuch na maango, faqat duaa maango
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कू-ए-जानाँ में और क्या माँगो
हालत-ए-हाल यक सदा माँगो

हर-नफ़स तुम यक़ीन-ए-मुनइम से
रिज़्क़ अपने गुमान का माँगो

है अगर वो बहुत ही दिल नज़दीक
उस से दूरी का सिलसिला माँगो

दर-ए-मतलब है क्या तलब-अंगेज़
कुछ नहीं वाँ सो कुछ भी जा माँगो

गोशा-गीर-ए-ग़ुबार-ए-ज़ात हूँ में
मुझ में हो कर मिरा पता माँगो

मुनकिरान-ए-ख़ुदा-ए-बख़शिंदा
उस से तो और इक ख़ुदा माँगो

उस शिकम-रक़्स-गर के साइल हो
नाफ़-प्याले की तुम अता माँगो

लाख जंजाल माँगने में हैं
कुछ न माँगो फ़क़त दुआ माँगो

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Zikr-e-gul ho, khaar ki baatein karein..

Zikr-e-gul ho, khaar ki baatein karein
Lazzat-o-aazaar ki baatein karein

Hai masham-e-shauq mehroom-e-shameem
Zulf-e-ambar-baar ki baatein karein

Door tak khaali hai sehra-e-nazar
Aahoo-e-Tataar ki baatein karein

Aaj kuch naa-saaz hai tab-e-khirad
Nargis-e-beemaar ki baatein karein

Yusuf-e-Kana'an ka ho kuch tazkira
Misr ke baazaar ki baatein karein

Aao ai khufta-naseebo muflis-o
Daulat-e-bedaar ki baatein karein

'Jaun' aao kaarvaan-dar-kaarvaan
Manzil-e-dushwaar ki baatein karein
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ज़िक्र-ए-गुल हो ख़ार की बातें करें
लज़्ज़त-ओ-आज़ार की बातें करें

है मशाम-ए-शौक़ महरूम-ए-शमीम
ज़ुल्फ़-ए-अम्बर-बार की बातें करें

दूर तक ख़ाली है सहरा-ए-नज़र
आहू-ए-तातार की बातें करें

आज कुछ ना-साज़ है तब-ए-ख़िरद
नर्गिस-ए-बीमार की बातें करें

यूसुफ़-ए-कनआँ' का हो कुछ तज़्किरा
मिस्र के बाज़ार की बातें करें

आओ ऐ ख़ुफ़्ता-नसीबो मुफ़लिसो
दौलत-ए-बेदार की बातें करें

'जौन' आओ कारवाँ-दर-कारवाँ
मंज़िल-ए-दुश्वार की बातें करें

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Haaye jaanana ki mehmaan-daariyan..

Haaye jaanana ki mehmaan-daariyan
Aur mujh dil ki badan aazaariyan

Dha gayi dil ko teri dehleez par
Teri qattaala sureeni bhaariyan

Uf shikan-haa-e-shikam jaanam teri
Kya kataaren hain kataaren kaariyan

Haaye teri chaatiyon ka tan-tanaav
Phir teri majbooriyan naachaariyan

Tishna-lab hai kab se dil sa sheer-khwaar
Tere doodhon se hain chashme jaariyan

Dukh ghuroor-e-hashr ke jaana hai kaun
Kis ne samjhi hashr ki dushwaariyan

Apne darbaan ko sambhaale rakhiye
Hain hawas ki apni izzat-daariyan

Hain sidhaari kaun se shehron taraf
Ladkiyaan wo dil gali ki saariyan

Khwaab jo taabeer ke bas ke na the
Doston ne un pe jaanen waariyan

Khalwat-e-mizraab-e-saaz-o-naaz mein
Chaahiye hum ko teri siskariyan

Lafz-o-ma'ani ka baham kyun hai sukhun
Kis zamaane mein thin in mein yaariyan

Shauq ka ek daav be-shauqi bhi hai
Hum hain us ke husn ke inkaariyan

Mujh se bad-tauri na kar o shehr-e-yaar
Mere jooton ke hain talve khaarriyan

Kha gayin us zaalimo-mazloom ko
Meri mazloomi-numa ayyaariyan

Ye haraami hain ghareebon ke raqeeb
Hain mulaazim sab ke sab sarkariyan

Wo jo hain jeete unhone be-tarah
Jeetne par himmatein hain haariyan

Tum se jo kuch bhi na keh paayein miyaan
Aakhirash karti wo kya be-chaariyan
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हाए जानाना की मेहमाँ-दारियाँ
और मुझ दिल की बदन आज़ारियाँ

ढा गईं दिल को तिरी दहलीज़ पर
तेरी क़त्ताला सुरीनी भारियाँ

उफ़ शिकन-हा-ए-शिकम जानम तिरी
क्या कटारें हैं कटारें कारियाँ

हाए तेरी छातियों का तन-तनाव
फिर तेरी मजबूरियाँ नाचारीयाँ

तिश्ना-लब है कब से दिल सा शीर-ख़्वार
तेरे दूधों से हैं चश्मे जारीयाँ

दुख ग़ुरूर-ए-हश्र के जाना है कौन
किस ने समझी हश्र की दुश्वारियाँ

अपने दरबाँ को सँभाले रखिए
हैं हवस की अपनी इज़्ज़त-दारियाँ

हैं सिधारी कौन से शहरों तरफ़
लड़कियाँ वो दिल गली की सारियाँ

ख़्वाब जो ता'बीर के बस के न थे
दोस्तों ने उन पे जानें वारियाँ

ख़ल्वत-ए-मिज़राब-ए-साज़-ओ-नाज़ में
चाहिए हम को तेरी सिस्कारियाँ

लफ़्ज़-ओ-म'आनी का बहम क्यूँ है सुख़न
किस ज़माने में थीं इन में यारियाँ

शौक़ का इक दाव बे-शौक़ी भी है
हम हैं उस के हुस्न के इनकारियाँ

मुझ से बद-तौरी न कर ओ शहर-ए-यार
मेरे जूतों के है तलवे ख़ारियाँ

खा गईं उस ज़ालिम-ओ-मज़लूम को
मेरी मज़लूमी-नुमा अय्यारियाँ

ये हरामी हैं ग़रीबों के रक़ीब
हैं मुलाज़िम सब के सब सरकारियाँ

वो जो हैं जीते उन्होंने बे-तरह
जीतने पर हिम्मतें हैं हारियाँ

तुम से जो कुछ भी न कह पाएँ मियाँ
आख़िरश करती वो क्या बे-चारियाँ

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Hawas mein to na the phir bhi kya na kar aaye..

Hawas mein to na the phir bhi kya na kar aaye
Ki daar par gaye hum aur phir utar aaye

Ajeeb haal ke majnoon the jo ba-ishwa-o-naaz
Ba-soo-e-baad ye mahmil mein baith kar aaye

Kabhi gaye the miyaan jo khabar ke sehra ki
Wo aaye bhi to bagoolon ke saath ghar aaye

Koi junoon nahi saudaaiyaan-e-sehra ko
Ki jo azaab bhi aaye wo shehr par aaye

Batao daam guru chahiye tumhein ab kya
Parindgaan-e-hawa khaak par utar aaye

Ajab khuloos se rukhsat kiya gaya hum ko
Khayaal-e-khaam ka taawaan tha so bhar aaye
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हवास में तो न थे फिर भी क्या न कर आए
कि दार पर गए हम और फिर उतर आए

अजीब हाल के मजनूँ थे जो ब-इश्वा-ओ-नाज़
ब-सू-ए-बाद ये महमिल में बैठ कर आए

कभी गए थे मियाँ जो ख़बर के सहरा की
वो आए भी तो बगूलों के साथ घर आए

कोई जुनूँ नहीं सौदाइयान-ए-सहरा को
कि जो अज़ाब भी आए वो शहर पर आए

बताओ दाम गुरु चाहिए तुम्हें अब क्या
परिंदगान-ए-हवा ख़ाक पर उतर आए

अजब ख़ुलूस से रुख़्सत किया गया हम को
ख़याल-ए-ख़ाम का तावान था सो भर आए

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Khwaab ki haalaaton ke saath teri hikayaton mein hain..

Khwaab ki haalaaton ke saath teri hikayaton mein hain
Hum bhi dayaar-e-ahl-e-dil teri riwayaton mein hain

Wo jo the rishta-haa-e-jaan, toot sake bhala kahaan
Jaan wo rishta-haa-e-jaan ab bhi shikayaton mein hain

Ek ghubaar hai ki hai daayra-waar pur-fishaan
Qaafila-haa-e-kahkashaan tang hain vahshaton mein hain

Waqt ki darmiyaaniyaan kar gayin jaan-kani ko jaan
Wo jo adawatein ki thin, aaj mohabbatton mein hain

Partav-e-rang hai ki hai deed mein jaan-nasheen-e-rang
Rang kahaan hain roonuma, rang to nikhhaton mein hain

Hai ye wujood ki numood apni nafas-nafas gurez
Waqt ki saari bastiyan apni hazeematton mein hain

Gard ka saara khaanumaan hai sar-e-dasht-e-be-amaan
Shehr hain wo jo har tarah gard ki khidmatton mein hain

Wo dil-o-jaan sooratein jaise kabhi na thin kahin
Hum unhi sooraton ke hain, hum unhi sooraton mein hain

Main na sununga maajra maaraka-haa-e-shauq ka
Khoon gaye hain raayegaan, rang nadamatton mein hain
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ख़्वाब की हालातों के साथ तेरी हिकायतों में हैं
हम भी दयार-ए-अहल-ए-दिल तेरी रिवायतों में हैं

वो जो थे रिश्ता-हा-ए-जाँ टूट सके भला कहाँ
जान वो रिश्ता-हा-ए-जाँ अब भी शिकायतों में हैं

एक ग़ुबार है कि है दायरा-वार पुर-फ़िशाँ
क़ाफ़िला-हा-ए-कहकशाँ तंग हैं वहशतों में हैं

वक़्त की दरमियानियाँ कर गईं जाँ-कनी को जाँ
वो जो अदावतें कि थीं आज मोहब्बतों में हैं

परतव-ए-रंग है कि है दीद में जाँ-नशीन-ए-रंग
रंग कहाँ हैं रूनुमा रंग तो निकहतों में हैं

है ये वजूद की नुमूद अपनी नफ़स नफ़स गुरेज़
वक़्त की सारी बस्तियाँ अपनी हज़ीमतों में हैं

गर्द का सारा ख़ानुमाँ है सर-ए-दश्त-ए-बे-अमाँ
शहर हैं वो जो हर तरह गर्द की ख़िदमतों में हैं

वो दिल ओ जान सूरतें जैसे कभी न थीं कहीं
हम उन्हीं सूरतों के हैं हम उन्हीं सूरतों में हैं

मैं न सुनूँगा माजरा मा'रका-हा-ए-शौक़ का
ख़ून गए हैं राएगाँ रंग नदामतों में हैं

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Shaam thi aur barg-o-gul shal the magar saba bhi thi..

Shaam thi aur barg-o-gul shal the magar saba bhi thi
Ek ajeeb sukoon tha, ek ajab sada bhi thi

Ek malaal ka sa haal mahv tha apne haal mein
Raqs-o-nawa the be-taraf, mehfil-e-shab bapa bhi thi

Saamia-e-sada-e-jaan be-sarokaar tha ki tha
Ek gumaan ki daastaan bar-lab neem-waa bhi thi

Kya mah-o-saal maajra, ek palak thi jo miyaan
Baat ki ibtida bhi thi, baat ki intiha bhi thi

Ek surood-e-raushni neema-e-shab ka khwaab tha
Ek khamosh teeragi, saaneha-aashna bhi thi

Dil tira pesha-e-gila-e-kaam kharaab kar gaya
Warna to ek ranj ki haalat-e-be-gila bhi thi

Dil ke muaamle jo the un mein se ek ye bhi hai
Ek havas thi dil mein jo dil se gureza-paa bhi thi

Baal-o-par-e-khayal ko ab nahin samt-o-soo naseeb
Pehle thi ek ajab faza aur jo pur-faza bhi thi

Khushk hai chashma-saar-e-jaan, zard hai sabza-zar-e-dil
Ab to ye sochiye ke yahan pehle kabhi hawa bhi thi
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शाम थी और बर्ग-ओ-गुल शल थे मगर सबा भी थी
एक अजीब सुकूत था एक अजब सदा भी थी

एक मलाल का सा हाल महव था अपने हाल में
रक़्स-ओ-नवा थे बे-तरफ़ महफ़िल-ए-शब बपा भी थी

सामेआ-ए-सदा-ए-जाँ बे-सरोकार था कि था
एक गुमाँ की दास्ताँ बर-लब नीम-वा भी थी

क्या मह-ओ-साल माजरा एक पलक थी जो मियाँ
बात की इब्तिदा भी थी बात की इंतिहा भी थी

एक सुरूद-ए-रौशनी नीमा-ए-शब का ख़्वाब था
एक ख़मोश तीरगी सानेहा-आश्ना भी थी

दिल तिरा पेशा-ए-गिला-ए-काम ख़राब कर गया
वर्ना तो एक रंज की हालत-ए-बे-गिला भी थी

दिल के मुआ'मले जो थे उन में से एक ये भी है
इक हवस थी दिल में जो दिल से गुरेज़-पा भी थी

बाल-ओ-पर-ए-ख़याल को अब नहीं सम्त-ओ-सू नसीब
पहले थी इक अजब फ़ज़ा और जो पुर-फ़ज़ा भी थी

ख़ुश्क है चश्मा-सार-ए-जाँ ज़र्द है सब्ज़ा-ज़ार-ए-दिल
अब तो ये सोचिए कि याँ पहले कभी हवा भी थी

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Kya hue aashufta-kaaraan kya hue..

Kya hue aashufta-kaaraan kya hue
Yaad-e-yaaraan, yaar-e-yaaraan kya hue

Ab to apnon mein se koi bhi nahin
Wo pareshan rozgaraan kya hue

So raha hai shaam hi se shehr-e-dil
Shehr ke shab-zinda-daraan kya hue

Us ki chashm-e-neem-waa se poochhiyo
Wo tire mizgaan-shumaraan kya hue

Ai bahaar-e-intezar-e-fasl-e-gul
Wo garebaan-taar-taaraan kya hue

Kya hue soorat-nigaraan khwaab ke
Khwaab ke soorat-nigaraan kya hue

Yaad us ki ho gayi hai be-amaan
Yaad ke be-yaadgaraan kya hue
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क्या हुए आशुफ़्ता-काराँ क्या हुए
याद-ए-याराँ यार-ए-याराँ क्या हुए

अब तो अपनों में से कोई भी नहीं
वो परेशाँ रोज़गाराँ क्या हुए

सो रहा है शाम ही से शहर-ए-दिल
शहर के शब-ज़िंदा-दाराँ क्या हुए

उस की चश्म-ए-नीम-वा से पूछियो
वो तिरे मिज़्गाँ-शुमाराँ क्या हुए

ऐ बहार-ए-इंतिज़ार-ए-फ़स्ल-ए-गुल
वो गरेबाँ-तार-ताराँ क्या हुए

क्या हुए सूरत-निगाराँ ख़्वाब के
ख़्वाब के सूरत-निगाराँ क्या हुए

याद उस की हो गई है बे-अमाँ
याद के बे-यादगाराँ क्या हुए

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Furqat mein waslat barpa hai Allah-Hoo ke baade mein..

Furqat mein waslat barpa hai Allah-Hoo ke baade mein
Aashob-e-wahdat barpa hai Allah-Hoo ke baade mein

Rooh-e-kul se sab roohon par wasl ki hasrat taari hai
Ek sar-e-hikmat barpa hai Allah-Hoo ke baade mein

Be-ahwaali ki haalat hai shayad ya shayad ki nahin
Par ahwaliyyat barpa hai Allah-Hoo ke baade mein

Mukhtari ke lab silwana jabr ajab-tar thehra hai
Haijaan-e-ghairat barpa hai Allah-Hoo ke baade mein

Baba Alif irshaad-kunaa hain pesh-e-adam ke baare mein
Hairat be-hairat barpa hai Allah-Hoo ke baade mein

Ma’ani hain lafzon se barham qahr-e-khamoshi aalam hai
Ek ajab hujjat barpa hai Allah-Hoo ke baade mein

Maujoodi se inkaari hai apni zid mein naaz-e-wujood
Haalat si haalat barpa hai Allah-Hoo ke baade mein
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फ़ुर्क़त में वसलत बरपा है अल्लाह-हू के बाड़े में
आशोब-ए-वहदत बरपा है अल्लाह-हू के बाड़े में

रूह-ए-कुल से सब रूहों पर वस्ल की हसरत तारी है
इक सर-ए-हिकमत बरपा है अल्लाह-हू के बाड़े में

बे-अहवाली की हालत है शायद या शायद कि नहीं
पर अहवालिय्यत बरपा है अल्लाह-हू के बाड़े में

मुख़्तारी के लब सिलवाना जब्र अजब-तर ठहरा है
हैजान-ए-ग़ैरत बरपा है अल्लाह-हू के बाड़े में

बाबा अलिफ़ इरशाद-कुनाँ हैं पेश-ए-अदम के बारे में
हैरत बे-हैरत बरपा है अल्लाह-हू के बाड़े में

मा'नी हैं लफ़्ज़ों से बरहम क़हर-ए-ख़मोशी आलम है
एक अजब हुज्जत बरपा है अल्लाह-हू के बाड़े में

मौजूदी से इंकारी है अपनी ज़िद में नाज़-ए-वजूद
हालत सी हालत बरपा है अल्लाह-हू के बाड़े में

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Saari duniya ke gham hamaare hain..

Saari duniya ke gham hamaare hain
Aur sitam ye ke hum tumhaare hain

Dil-e-barbaad ye khayal rahe
Us ne gesu nahi sanvaare hain

Un rafeeqon se sharm aati hai
Jo mera saath de ke haare hain

Aur to hum ne kya kiya ab tak
Ye kiya hai ke din guzaare hain

Us gali se jo ho ke aaye hon
Ab to wo raah-rau bhi pyaare hain

'Jaun' hum zindagi ki raahon mein
Apni tanha-ravi ke maare hain
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सारी दुनिया के ग़म हमारे हैं
और सितम ये कि हम तुम्हारे हैं

दिल-ए-बर्बाद ये ख़याल रहे
उस ने गेसू नहीं सँवारे हैं

उन रफ़ीक़ों से शर्म आती है
जो मिरा साथ दे के हारे हैं

और तो हम ने क्या किया अब तक
ये किया है कि दिन गुज़ारे हैं

उस गली से जो हो के आए हों
अब तो वो राह-रौ भी प्यारे हैं

'जौन' हम ज़िंदगी की राहों में
अपनी तन्हा-रवी के मारे हैं

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ada-e-ishq hoon poori ana ke saath hoon main..

ada-e-ishq hoon poori ana ke saath hoon main
khud apne saath hoon ya'ni khuda ke saath hoon main

mujavaraan-e-hawas tang hain ki yun kaise
baghair sharm-o-haya bhi haya ke saath hoon main

safar shuruat to hone de apne saath mera
tu khud kahega ye kaisi bala ke saath hoon main

main choo gaya to tira rang kaat daaloonga
so apne aap se tujh ko bacha ke saath hoon main

durood-bar-dil-e-wahshi salaam-bar-tap-e-ishq
khud apni hamd khud apni sana ke saath hoon main

yahi to farq hai mere aur un ke hal ke beech
shikaayaten hain unhen aur raza ke saath hoon main

main awwaleen ki izzat mein aakhireen ka noor
vo intiha hoon ki har ibtida ke saath hoon main

dikhaai doon bhi to kaise sunaai doon bhi to kyun
wara-e-naqsh-o-nawa hoon fana ke saath hoon main

b-hukm-e-yaar love kabz karne aati hai
bujha rahi hai bujaaye hawa ke saath hoon main

ye saabireen-e-mohabbat ye kaashifeen-e-junoon
inhi ke sang inheen auliya ke saath hoon main

kisi ke saath nahin hoon magar jamaal-e-ilaaha
tiri qism tire har mubtala ke saath hoon main

zamaane bhar ko pata hai main kis tariq pe hoon
sabhi ko ilm hai kis dil-ruba ke saath hoon main

munaafiqeen-e-tasavvuf ki maut hoon main ali
har ik aseel har ik be-riya ke saath hoon main 
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अदा-ए-इश्क़ हूँ पूरी अना के साथ हूँ मैं
ख़ुद अपने साथ हूँ या'नी ख़ुदा के साथ हूँ मैं

मुजावरान-ए-हवस तंग हैं कि यूँ कैसे
बग़ैर शर्म-ओ-हया भी हया के साथ हूँ मैं

सफ़र शुरूअ' तो होने दे अपने साथ मिरा
तू ख़ुद कहेगा ये कैसी बला के साथ हूँ मैं

मैं छू गया तो तिरा रंग काट डालूँगा
सो अपने आप से तुझ को बचा के साथ हूँ मैं

दुरूद-बर-दिल-ए-वहशी सलाम-बर-तप-ए-इश्क़
ख़ुद अपनी हम्द ख़ुद अपनी सना के साथ हूँ मैं

यही तो फ़र्क़ है मेरे और उन के हल के बीच
शिकायतें हैं उन्हें और रज़ा के साथ हूँ मैं

मैं अव्वलीन की इज़्ज़त में आख़िरीन का नूर
वो इंतिहा हूँ कि हर इब्तिदा के साथ हूँ मैं

दिखाई दूँ भी तो कैसे सुनाई दूँ भी तो क्यूँ
वरा-ए-नक़्श-ओ-नवा हूँ फ़ना के साथ हूँ मैं

ब-हुक्म-ए-यार लवें क़ब्ज़ करने आती है
बुझा रही है? बुझाए हवा के साथ हूँ मैं

ये साबिरीन-ए-मोहब्बत ये काशिफ़ीन-ए-जुनूँ
इन्ही के संग इन्हीं औलिया के साथ हूँ मैं

किसी के साथ नहीं हूँ मगर जमाल-ए-इलाहा
तिरी क़िस्म तिरे हर मुब्तला के साथ हूँ मैं

ज़माने भर को पता है मैं किस तरीक़ पे हूँ
सभी को इल्म है किस दिल-रुबा के साथ हूँ मैं

मुनाफ़िक़ीन-ए-तसव्वुफ़ की मौत हूँ मैं 'अली'
हर इक असील हर इक बे-रिया के साथ हूँ मैं
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khayal mein bhi use be-rida nahin kiya hai..

khayal mein bhi use be-rida nahin kiya hai
ye zulm mujhse nahin ho saka nahin kiya hai

main ek shakhs ko eimaan jaanta hoon to kya
khuda ke naam par logon ne kya nahin kiya hai

isiliye to main roya nahin bichhadte samay
tujhe ravana kiya hai juda nahin kiya hai

ye bad-tameez agar tujhse dar rahe hain to phir
tujhe bigaad kar maine bura nahin kiya hai 
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ख़याल में भी उसे बे-रिदा नहीं किया है
ये ज़ुल्म मुझसे नहीं हो सका नहीं किया है

मैं एक शख़्स को ईमान जानता हूँ तो क्या
ख़ुदा के नाम पर लोगों ने क्या नहीं किया है

इसीलिए तो मैं रोया नहीं बिछड़ते समय
तुझे रवाना किया है जुदा नहीं किया है

ये बद-तमीज़ अगर तुझसे डर रहे हैं तो फिर
तुझे बिगाड़ कर मैंने बुरा नहीं किया है
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Pyaar mein jism ko yak-sar na mita jaane de..

Pyaar mein jism ko yak-sar na mita jaane de
Qurbat-e-lams ko gaali na bana jaane de

Tu jo har roz naye husn pe mar jaata hai
Tu batayega mujhe 'Ishq hai kya'? Jaane de

Chai peete hain kahin baith ke dono bhai
Ja chuki hai na toh bas chhod chal aa jaane de
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प्यार में जिस्म को यकसर न मिटा जाने दे
कुर्बत-ए-लम्स को गाली ना बना जाने दे 

तू जो हर रोज़ नए हुस्न पे मर जाता है 
तू बताएगा मुझे 'इश्क़ है क्या'? जाने दे 

चाय पीते हैं कहीं बैठ के दोनों भाई 
जा चुकी है ना तो बस छोड़ चल आ जाने दे 

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haalat jo hamaari hai tumhaari to nahin hai..

haalat jo hamaari hai tumhaari to nahin hai
aisa hai to phir ye koi yaari to nahin hai

tahqeer na kar ye meri udhadi hui gudadi
jaisi bhi hai apni hai udhaari to nahin hai

tanha hi sahi lad to rahi hai vo akeli
bas thak ke giri hai abhi haari to nahin hai

ye tu jo mohabbat mein sila maang raha hai
ai shakhs tu andar se bhikaari to nahin hai

jitni bhi kama li ho bana li ho ye duniya
duniya hai to phir dost tumhaari to nahin hai 
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हालत जो हमारी है तुम्हारी तो नहीं है
ऐसा है तो फिर ये कोई यारी तो नहीं है

तहक़ीर ना कर ये मेरी उधड़ी हुई गुदड़ी
जैसी भी है अपनी है उधारी तो नहीं है

तनहा ही सही लड़ तो रही है वो अकेली
बस थक के गिरी है अभी हारी तो नहीं है

ये तू जो मोहब्बत में सिला मांग रहा है
ऐ शख्स तू अंदर से भिखारी तो नहीं है

जितनी भी कमा ली हो बना ली हो ये दुनिया
दुनिया है तो फिर दोस्त तुम्हारी तो नहीं है
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nekiya aur bhalaaiya maula..

nekiya aur bhalaaiya maula
sab ke sab khudnumaaiya maula

apni koi dukaandaari nahin
apni kaisi kamaaiyaan maula

subhanallah ek sharaarat bhara sawaal karoon
auratein kyun banaaiya maula 
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नेकिया और भलाईया मौला
सब के सब खुदनुमाईया मौला

अपनी कोई दुकानदारी नहीं
अपनी कैसी कमाईयाँ मौला,

सुभानल्लाह एक शरारत भरा सवाल करूं
औरतें क्यों बनाईया मौला
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khuda banda tane tanhaa gaya hai..

khuda banda tane tanhaa gaya hai
sue dariya mera pyaasa gaya hai

ajal se lekar ab tak auraton ko
siwaye jism kya samjha gaya hai

khuda ki shayari hoti hai aurat
jise pairo'n tale raunda gaya hai

tumhein dil ke chale jaane pe kya gam
tumhaara kaun sa apna gaya hai
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खुदा बंदा तने तन्हा गया है
सुए दरिया मेरा प्यासा गया है्

अजल से लेकर अब तक औरतों को
सिवाय जिस्म क्या समझा गया है।

खुदा की शायरी होती है औरत
जिसे पैरों तले रौंदा गया है

तुम्हें दिल के चले जाने पे क्या गम
तुम्हारा कौन सा अपना गया है
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chadar ki izzat karta hoon aur parde ko maanta hoon..

chadar ki izzat karta hoon aur parde ko maanta hoon
har parda parda nahin hota itna main bhi jaanta hoon

saare mard ek jaise hain tumne kaise kah daala
main bhi to ek mard hoon tumko khud se behtar maanta hoon

maine usse pyaar kiya hai milkiiyat ka daava nahin
vo jiske bhi saath hai main usko bhi apna maanta hoon

chadar ki izzat karta hoon aur parde ko maanta hoon
har parda parda nahin hota itna main bhi jaanta hoon 
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चादर की इज्जत करता हूं और पर्दे को मानता हूं
हर पर्दा पर्दा नहीं होता इतना मैं भी जानता हूं

सारे मर्द एक जैसे हैं तुमने कैसे कह डाला
मैं भी तो एक मर्द हूं तुमको खुद से बेहतर मानता हूं

मैंने उससे प्यार किया है मिल्कियत का दावा नहीं
वो जिसके भी साथ है मैं उसको भी अपना मानता हूं

चादर की इज्जत करता हूं और पर्दे को मानता हूं
हर पर्दा पर्दा नहीं होता इतना मैं भी जानता हूं
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main sochta hoon na jaane kahaan se aa gaye hain..

main sochta hoon na jaane kahaan se aa gaye hain
hamaare beech zamaane kahaan se aa gaye hain

main shehar waala sahi tu to gaav-zaadi hai
tujhe bahaane banaane kahaan se aa gaye hain

mere watan tere chehre ko noche waale
ye kaun hain ye gharaane kahaan se aa gaye hain 
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मैं सोचता हूँ न जाने कहाँ से आ गए हैं
हमारे बीच ज़माने कहाँ से आ गए हैं

मैं शहर वाला सही, तू तो गाँव-ज़ादी है
तुझे बहाने बनाने कहाँ से आ गए हैं

मेरे वतन तेरे चेहरे को नोचने वाले
ये कौन हैं ये घराने कहाँ से आ गए हैं
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gul-e-shabaab mahakta hai aur bulaata hai..

gul-e-shabaab mahakta hai aur bulaata hai
meri ghazal koi pashto mein gungunata hai

ajeeb taur hai uske mijaaz-e-shaahi ka
lade kisi se bhi aankhen mujhe dikhaata hai

tum uska haath jhatak kar ye kyun nahin kahtiin
tu jaanwar hai jo aurat pe haath uthaata hai
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गुल-ए-शबाब महकता है और बुलाता है
मेरी ग़ज़ल कोई पश्तो में गुनगुनाता है

अजीब तौर है उसके मिजाज-ए-शाही का
लड़े किसी से भी, आंखें मुझे दिखाता है

तुम उसका हाथ झटक कर ये क्यों नहीं कहतीं
तू जानवर है जो औरत पे हाथ उठाता है
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jo ism-o-jism ko baaham nibhaane waala nahi..

jo ism-o-jism ko baaham nibhaane waala nahi
main aise ishq par eimaan laane waala nahin

main paanv dhoke piyuun yaar banke jo aaye
munaafiqon ko to main munh lagaane waala nahin

bas itna jaan le ai pur-kashish ke dil tujhse
bahl to saka hai par tujh pe aane waala nahin

tujhe kisi ne galat kah diya mere baare
nahin miyaan main dilon ko dukhaane waala nahin

sun ai kaabila-e-kufi-dilaan mukarrar sun
ali kabhi bhi hajeemat uthaane waala nahin 
---------------------------------------------
जो इस्म-ओ-जिस्म को बाहम निभाने वाला नही
मैं ऐसे इश्क़ पर ईमान लाने वाला नहीं

मैं पांव धोके पियूं, यार बनके जो आए
मुनाफ़िक़ों को तो मैं मुंह लगाने वाला नहीं

बस इतना जान ले ऐ पुर-कशिश के दिल तुझसे
बहल तो सकता है पर तुझ पे आने वाला नहीं

तुझे किसी ने गलत कह दिया मेरे बारे
नहीं मियां मैं दिलों को दुखाने वाला नहीं

सुन ऐ काबिला-ए-कुफी-दिलाँ मुकर्रर सुन
अली कभी भी हजीमत उठाने वाला नहीं
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chamakte din bahut chaalaak hai shab jaanti hai..

chamakte din bahut chaalaak hai shab jaanti hai
use pehle nahin maaloom tha ab jaanti hai

ye rishtedaar usko isliye jhuthla rahe hain
vo rishta maangne waalon ka matlab jaanti hai

jo dukh usne sahe hain uski beti to na dekhe
vo maa hai aur maa hone ka mansab jaanti hai

ye agli rau mein baithi mujhse sarvat sunne waali
main uske vaaste aaya hoon ye sab jaanti hain 
---------------------------------------------
चमकते दिन बहुत चालाक है शब जानती है
उसे पहले नहीं मालूम था अब जानती है

ये रिश्तेदार उसको इसलिए झुठला रहे हैं
वो रिश्ता मांगने वालों का मतलब जानती है

जो दुख उसने सहे हैं उसकी बेटी तो ना देखे
वो मां है और मां होने का मनसब जानती है

ये अगली रौ में बैठी मुझसे सर्वत सुनने वाली
मैं उसके वास्ते आया हूं ये सब‌ जानती हैं
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yaar to uske saalgirah par kya kya tohfe laaye hain..

yaar to uske saalgirah par kya kya tohfe laaye hain
aur idhar hamne uski tasveer ko sher sunaayein hain

aap se badhkar kaun samajh saka hai rang aur khushboo ko
aapse koi bahs nahin hai aap uske hamsaayein hai

kisi bahaane se uski naarazi khatm to karne thi
uske pasandeeda shayar ke sher use bhejavai hain 
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यार तो उसके सालगिराह पर क्या क्या तोहफें लाए हैं
और इधर हमने उसकी तस्वीर को शेर सुनाएं हैं

आप से बढ़कर कौन समझ सकता है रंग और खुशबू को
आपसे कोई बहस नहीं है आप उसके हमसाएं है

किसी बहाने से उसकी नाराजी खत्म तो करनी थी
उसके पसंदीदा शायर के शेर उसे भिजवाए हैं
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baat muqaddar ki hai saari waqt ka likkha maarta hai..

baat muqaddar ki hai saari waqt ka likkha maarta hai
kuchh sajdon mein mar jaate hain kuchh ko sajda maarta hai

sirf ham hi hain jo tujh par poore ke poore marte hain
varna kisi ko teri aankhen kisi ko lahza maarta hai

dilwaale ek dooje ki imdaad ko khud mar jaate hain
duniyadaar ko jab bhi maare duniyaavaala maarta hai

shehar mein ek naye kaatil ke husn-e-sukhan ke balve hain
usse bach ke rahna sher suna ke banda maarta hai 
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बात मुकद्दर की है सारी वक्त का लिक्खा मारता है
कुछ सजदों में मर जाते हैं कुछ को सजदा मारता है

सिर्फ हम ही हैं जो तुझ पर पूरे के पूरे मरते हैं
वरना किसी को तेरी आंखें, किसी को लहज़ा मारता है

दिलवाले एक दूजे की इमदाद को खुद मर जाते हैं
दुनियादार को जब भी मारे दुनियावाला मारता है

शहर में एक नए कातिल के हुस्न-ए-सुखन के बलवे हैं
उससे बच के रहना शेर सुना के बंदा मारता है
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man jis ka maula hota hai..

man jis ka maula hota hai
vo bilkul mujh sa hota hai

tum mujhko apna kahte ho
kah lene se kya hota hai

achhi ladki zid nahin karte
dekho ishq bura hota hai

aankhen hans kar pooch rahi hain
neend aane se kya hota hai

mitti ki izzat hoti hai
paani ka charcha hota hai

marne mein koi bahs na karna
mar jaana achha hota hai 
-------------------------
मन जिस का मौला होता है
वो बिल्कुल मुझ सा होता है

तुम मुझको अपना कहते हो
कह लेने से क्या होता है

अच्छी लड़की ज़िद नहीं करते
देखो इश्क़ बुरा होता है

आँखें हंस कर पूछ रही हैं
नींद आने से क्या होता है

मिट्टी की इज़्ज़त होती है
पानी का चर्चा होता है

मरने में कोई बहस ना करना
मर जाना अच्छा होता है
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apne yaaron se bahut door nahin hota tha..

apne yaaron se bahut door nahin hota tha
yaar tu un dinon mashhoor nahin hota tha

mujhko lagta hai tujhe dil ki dua lag gai hai
tere chehre par to ye noor nahin hota tha

koi to dukh hai jo waapas nahin deta
varna main ghar se kabhi door nahin hota tha 
-----------------------------------------
अपने यारों से बहुत दूर नहीं होता था
यार तू उन दिनों मशहूर नहीं होता था

मुझको लगता है तुझे दिल की दुआ लग गई है
तेरे चेहरे पर तो ये नूर नहीं होता था

कोई तो दुःख है जो वापस नहीं देता
वरना मैं घर से कभी दूर नहीं होता था

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ham yun hi nahin shah ke azaadaar hue hain..

ham yun hi nahin shah ke azaadaar hue hain
nasli hain to asli ke parastaar hue hain

tohmat to laga dete ho bekaari ki hampar
poocho to sahi kislie bekar hue hain

sab aake mujhe kahte hain murshid koi chaara
jis jis ko dar ae yaar se inkaar hue hain

ye vo hain jinhen maine sukhun karna sikhaaya
ye lehje mere saamne talwaar hue hain

milne to akela hi use jaana hai zaryoon
ye dost magar kislie taiyaar hue hain 
------------------------------------------
हम यूँ ही नहीं शह के अज़ादार हुए हैं
नस्ली हैं तो अस्ली के परस़्तार हुए हैं

तोहमत तो लगा देते हो बेकारी की हमपर
पूछो तो सही किसलिए बेकार हुए हैं

सब आके मुझे कहते हैं मुर्शिद कोई चारा
जिस जिस को दर ए यार से इन्कार हुए हैं

ये वो हैं जिन्हें मैंने सुख़न करना सिखाया
ये लहजे मेरे सामने तलवार हुए हैं

मिलने तो अकेले ही उसे जाना है "ज़रयून"
ये दोस्त मगर किसलिए तैयार हुए हैं?
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mujhe to sab tamasha lag raha hai..

mujhe to sab tamasha lag raha hai
khuda se pooch use kya lag raha hai

vaba ke din guzarte ja rahe hain
madeena aur saccha lag raha hai

azziziyat se take jaata hoon khudko
tumhein ye ghar mein rahna lag raha hai

khud apne saath rahna pad gaya tha
aur ab dushman bhi achha lag raha hai
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मुझे तो सब तमाशा लग रहा है
खुदा से पूछ उसे क्या लग रहा है

वबा के दिन गुज़रते जा रहे हैं
मदीना और सच्चा लग रहा है

अज़्जी़यत से तके जाता हूँ खुदको
तुम्हें ये घर में रहना लग रहा है

खुद अपने साथ रहना पड़ गया था
और अब दुश्मन भी अच्छा लग रहा है
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vo hi kartaba teri yaad ka vo hi nai nava ae khayal hai..

vo hi kartaba teri yaad ka vo hi nai nava ae khayal hai
vo hi main jo tha tere hijr mein vo hi mashhad ae khaddo khaal hai

teri neend kiske liye udri mera khwaab kisne bujha diya
ise sun kar rookh nahin pherna tere maatami ka sawaal hai

ye mazaq to nahin ho raha main khushi se to nahin ro raha
koi film to nahin chal rahi meri jaan ye mera haal hai

kisi saiyada ke charan padhoon koi kaazmi jo dua kare
koi ho jo gham ki haya kare mera karbalaai malaal hai

vo charaagh ae shehar ae vifaq hai mere saath jiska firaq hai
bhale door paar se hi sahi mera raabta to bahaal hai

vo khushi se itni nihaal thi ki ali main soch kar dar gaya
main use bata hi nahin saka ki ye meri aakhiri call hai 
-----------------------------------------------------
वो ही कर्तबा तेरी याद का, वो ही नै नवा ए खयाल है
वो ही मैं जो था तेरे हिज्र में, वो ही मशहद ए खद्दो खाल है

तेरी नींद किसके लिए उड़ी, मेरा ख्वाब किसने बुझा दिया
इसे सुन कर रूख़ नहीं फेरना, तेरे मातमी का सवाल है

ये मजाक़ तो नहीं हो रहा, मैं खुशी से तो नहीं रो रहा
कोई फिल्म तो नहीं चल रही, मेरी जान ये मेरा हाल है

किसी सैय्यदा के चरण पडूं, कोई काज़मी जो दुआ करे
कोई हो जो ग़म की हया करे, मेरा कर्बलाई मलाल है

वो चराग़ ए शहर ए विफाक़ है, मेरे साथ जिसका फिराक़ है
भले दूर पार से ही सही, मेरा राब़्ता तो बहाल है

वो खुशी से इतनी निहाल थी कि "अली" मैं सोच कर डर गया
मैं उसे बता ही नहीं सका कि ये मेरी आखिरी कॉल है
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bujhi aankhon mein kirnen bhar rahi ho kaun ho tum..

bujhi aankhon mein kirnen bhar rahi ho kaun ho tum
meri neendon ko roshan kar rahi ho kaun ho tum

mujh aise ghar mein to shaitaan bhi aata nahin hai
tum itne din mere andar rahi ho kaun ho tum

main jiski yaad mein roya hua hoon vo kahaan hai
mera tawaan tum kyun bhar rahi ho kaun ho tum

bhare majme se kamre tak tumheen laai ho mujhko
ab is tanhaai se khud dar rahi ho kaun ho tum 
---------------------------------------------------
बुझी आंखों में किरणें भर रही हो, कौन हो तुम?
मेरी नींदों को रोशन कर रही हो, कौन हो तुम?

मुझ ऐसे घर में तो शैतान भी आता नहीं है,
तुम इतने दिन मेरे अंदर रही हो, कौन हो तुम?

मैं जिसकी याद में 'रोया' हुआ हूँ वो कहाँ है?
मेरा तावान तुम क्यों भर रही हो, कौन हो तुम?

भरे मजमे से कमरे तक तुम्हीं लाई हो मुझको,
अब इस तन्हाई से खुद डर रही हो, कौन हो तुम?
Read more

zane haseen thi aur phool chun kar laati thi..

zane haseen thi aur phool chun kar laati thi
main sher kehta tha vo dastaan sunaati thi

arab lahu tha ragon mein badan sunhara tha
vo muskuraati nahin thi die jalaati thi

ali se door raho log usse kahte the
vo mera sach hai bahut cheekh kar bataati thi

ali ye log tumhein jaante nahin hain abhi
gale lagaakar mera hausla badhaati thi

ye phool dekh rahe ho ye uska lahja tha
ye jheel dekh rahe ho yahan vo aati thi

main uske baad kabhi theek se nahin jaaga
vo mujhko khwaab nahin neend se jagati thi

use kisi se mohabbat thi aur vo main nahin tha
ye baat mujhse ziyaada use roolaati thi

main kuchh bata nahin saka vo meri kya thi ali
ki usko dekhkar bas apni yaad aati thi 
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ज़ने हसीन थी और फूल चुन कर लाती थी
मैं शेर कहता था, वो दास्ताँ सुनाती थी

अरब लहू था रगों में, बदन सुनहरा था
वो मुस्कुराती नहीं थी, दीए जलाती थी

"अली से दूर रहो", लोग उससे कहते थे
"वो मेरा सच है", बहुत चीख कर बताती थी

"अली ये लोग तुम्हें जानते नहीं हैं अभी"
गले लगाकर मेरा हौसला बढ़ाती थी

ये फूल देख रहे हो, ये उसका लहजा था
ये झील देख रहे हो, यहाँ वो आती थी

मैं उसके बाद कभी ठीक से नहीं जागा
वो मुझको ख्वाब नहीं नींद से जगाती थी

उसे किसी से मोहब्बत थी और वो मैं नहीं था
ये बात मुझसे ज़्यादा उसे रूलाती थी

मैं कुछ बता नहीं सकता वो मेरी क्या थी "अली"
कि उसको देखकर बस अपनी याद आती थी
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haalat ae hijr mein hoon yaar meri samt na dekh..

haalat ae hijr mein hoon yaar meri samt na dekh
tu na ho jaaye girftaar meri samt na dekh

aasteen mein jo chhupe saanp hain unko to nikaal
apne nuksaan par har baar meri samt na dekh

tujhko jis baat ka khadsha hai vo ho sakti hai
aise nashshe mein lagaataar meri samt na dekh

ya koi baat suna ya mujhe seene se laga
is tarah baithkar bekar meri samt na dekh

tera yaaron se nahin jeb se yaaraana hai
ai mohabbat ke dukandaar meri samt na dekh
-----------------------------------------------
हालत ए हिज्र में हूँ यार मेरी सम्त न देख
तू न हो जाए गिरफ्तार, मेरी सम्त न देख

आस्तीन में जो छूपे सांप हैं उनको तो निकाल
अपने नुकसान पर हर बार मेरी सम्त न देख

तुझको जिस बात का 'ख़द्शा' है वो हो सकती है
ऐसे नश्शे में लगातार मेरी सम्त न देख

या कोई बात सुना या मुझे सीने से लगा
इस तरह बैठकर बेकार मेरी सम्त न देख

तेरा यारों से नहीं जेब से याराना है
ऐ मोहब्बत के दुकाँदार मेरी सम्त न देख
Read more

shaahsaazi mein riayaat bhi nahin karte ho..

shaahsaazi mein riayaat bhi nahin karte ho
saamne aakar hukoomat bhi nahin karke ho

wall par chikhte rahte ho ki mazloom hain ham
aur system se bagaavat bhi nahin karte ho

tumse kya baat karoon kaun kahaan qatl hua
tum to is zulm par hairat bhi nahin karte ho

ab mere haal par kyun tumko pareshaani hai
ab to tum mujhse mohabbat bhi nahin karte ho

pyaar karne ki sanad kaise tumhein jaari karoon
tum abhi theek se nafrat bhi nahin karte ho 
-------------------------------------
शाहसाज़ी में रियायत भी नहीं करते हो
सामने आकर हुकूमत भी नहीं करके हो

वॉल पर चीखते रहते हो कि मज़लूम हैं हम
और सिस्टम से बगावत भी नहीं करते हो

तुमसे क्या बात करूँ कौन कहाँ क़त्ल हुआ
तुम तो इस ज़ु़ल्म पर हैरत भी नहीं करते हो

अब मेरे हाल पर क्यूँ तुमको परेशानी है
अब तो तुम मुझसे मोहब्बत भी नहीं करते हो

प्यार करने की सनद कैसे तुम्हें जारी करूँ
तुम अभी ठीक से नफ़रत भी नहीं करते हो
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darne ke liye hai na naseehat ke liye hai..

darne ke liye hai na naseehat ke liye hai
jis umr mein tum ho vo mohabbat ke liye hai

ye dil jo abhi pichhle janaaze nahin bhoola
taiyaar ab ik aur museebat ke liye hai

kya hai jo mujhe hukm nahin maanne aate
deewaana to hota hi bagaavat ke liye hai

paaysis hai agar vo to pareshaan na hona
ye burj bana hi kisi hairat ke liye hai

ye pyaar tujhe isliye shobha nahin deta
tu jhooth hai aur jhooth siyaasat ke liye hai 
--------------------------------------------
डरने के लिए है न नसीहत के लिए है
जिस उम्र में तुम हो वो मोहब्बत के लिए है

ये दिल जो अभी पिछले जनाज़े नहीं भूला
तैयार अब इक और मुसीबत के लिए है

क्या है जो मुझे हुक्म नहीं मानने आते
दीवाना तो होता ही बगावत के लिए है

पाइसिस है अगर वो तो परेशान न होना
ये बुर्ज बना ही किसी हैरत के लिए है

ये प्यार तुझे इसलिए शोभा नहीं देता
तू झूठ है और झूठ सियासत के लिए है
Read more

saaz taiyaar kar raha hoon main..

saaz taiyaar kar raha hoon main
aur khabardaar kar raha hoon main

tumko shaayad bura lage lekin
dekh ke pyaar kar raha hoon main

haan nahin chahiye ye taaj aur takht
saaf inkaar kar raha hoon main

koi jaakar use bata to de
jiska kirdaar kar raha hoon main

aaj se khud ko teri haalat se
dastbardaar kar raha hoon main

do jahaan mujhko mil rahe hain magar
tujh par israar kar raha hoon main 
------------------------
साज़ तैयार कर रहा हूँ मैं
और खबरदार कर रहा हूँ मैं

तुमको शायद बुरा लगे, लेकिन
देख के प्यार कर रहा हूँ मैं

हाँ! नहीं चाहिए ये ताज और तख़्त
साफ़ इन्कार कर रहा हूँ मैं

कोई जाकर उसे बता तो दे
जिसका किरदार कर रहा हूँ मैं

आज से, खुद को तेरी हालत से
दस्तबरदार कर रहा हूँ मैं

दो जहाँ मुझको मिल रहे हैं, मगर
तुझ पर इसरार कर रहा हूँ मैं
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jaagna aur jaga ke so jaana..

jaagna aur jaga ke so jaana
raat ko din bana ke so jaana

text karna tamaam raat usko
ungliyon ko daba ke so jaana

aaj phir der se ghar aaya hoon
aaj phir munh bana ke so jaana 
----------------------------
जागना और जगा के सो जाना
रात को दिन बना के सो जाना

टैक्स्ट करना तमाम रात उसको
उंगलियों को दबा के सो जाना

आज फिर देर से घर आया हूं
आज फिर मुंह बना के सो जाना
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khayal mein bhi use berida nahin kiya hai..

khayal mein bhi use berida nahin kiya hai
ye julm mujhse nahin ho saka nahin kiya hai

main ek shakhs ko eimaan jaanta hoon to kya
khuda ke naam pe logon ne kya nahin kiya hai

isiliye to main roya nahin bichhadte samay
tujhe ravana kiya hai juda nahin kiya hai

yah badtameez agar tujh se dar rahe hain to phir
tujhe bigaad ke maine bura nahin kiya hai 
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खयाल में भी उसे बेरिदा नहीं किया है
ये जुल्म मुझसे नहीं हो सका, नहीं किया है

मैं एक शख्स को ईमान जानता हूं तो क्या
खुदा के नाम पे लोगों ने क्या नहीं किया है

इसीलिए तो मैं रोया नहीं बिछड़ते समय
तुझे रवाना किया है जुदा नहीं किया है

यह बदतमीज अगर तुझ से डर रहे हैं तो फिर
तुझे बिगाड़ के मैंने बुरा नहीं किया है
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sab kar lena lamhe jaaya mat karna..

sab kar lena lamhe jaaya mat karna
galat jagah par jazbe jaaya mat karna

ishq to niyat ki sacchaai dekhta hai
dil na dukhe to sajde jaaya mat karna

saada hoon aur brands pasand nahin mujh ko
mujh par apne paise jaaya mat karna

rozi-roti desh mein bhi mil sakti hai
door bhej ke rishte jaaya mat karna 
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सब कर लेना लम्हें जाया मत करना
गलत जगह पर जज्बे जाया मत करना

इश्क़ तो नियत की सच्चाई देखता है
दिल ना दुखे तो सजदे जाया मत करना

सादा हूं और ब्रैंड्स पसंद नहीं मुझ को
मुझ पर अपने पैसे जाया मत करना

रोजी-रोटी देश में भी मिल सकती है
दूर भेज के रिश्ते जाया मत करना
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are kya seekh sakogen bhala hijrat se hamaari..

are kya seekh sakogen bhala hijrat se hamaari
tum log maza lete ho haalat se hamaari

ham kaun hain ye baat tumhein likh ke bataayein
andaaza nahin hota shabaahat se hamaari

besudh nahin raayega ho jaana hamaara
kuchh phool khile hain to mushkatat se hamaari 
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अरे क्या सीख सकोगें भला हिजरत से हमारी
तुम लोग मजा लेते हो हालत से हमारी

हम कौन हैं ये बात तुम्हें लिख के बताएं
अंदाजा नहीं होता शबाहत से हमारी

बेसुध नहीं राएगा हो जाना हमारा
कुछ फूल खिले हैं तो मुशक्तत से हमारी
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is tarah se na aajmao mujhe..

is tarah se na aajmao mujhe
uski tasveer mat dikhaao mujhe

ain mumkin hai main palat aaun
uski aawaaz mein bulao mujhe

maine bola tha yaad mat aana
jhooth bola tha yaad aao mujhe
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इस तरह से ना आजमाओ मुझे
उसकी तस्वीर मत दिखाओ मुझे

ऐन मुमकिन है मैं पलट आऊं
उसकी आवाज में बुलाओ मुझे

मैंने बोला था याद मत आना
झूठ बोला था, याद आओ मुझे
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pyaar mein jism ko yaksar na mita jaane de..

pyaar mein jism ko yaksar na mita jaane de
qurbat-e-lams ko gaali na bana jaane de

tu jo har roz naye husn pe mar jaata hai
tu bataaega mujhe ishq hai kya jaane de

chaai peete hain kahi baith ke dono bhaai
ja chuki hai na to bas chhod chal aa jaane de 
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प्यार में जिस्म को यकसर न मिटा जाने दे
कुर्बत-ए-लम्स को गाली ना बना जाने दे

तू जो हर रोज़ नए हुस्न पे मर जाता है
तू बताएगा मुझे 'इश्क़ है क्या'? जाने दे

चाय पीते हैं कहीं बैठ के दोनों भाई
जा चुकी है ना तो बस छोड़ चल आ जाने दे
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toor-e-seena hai sar karoge miyaan..

toor-e-seena hai sar karoge miyaan
apne andar safar karoge miyaan

tum hamein roz yaad karte ho
phir to tum umr bhar karoge miyaan

vo jo ik lafz mar gaya hai
usko kiski khabar karoge miyaan

aur dil-e-darvesh ek madeena hai
tum madine mein sair karoge miyaan 
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तूर-ए-सीना है सर करोगे मियां
अपने अंदर सफर करोगे मियां

तुम हमें रोज याद करते हो
फिर तो तुम उम्र भर करोगे मियां

वो जो इक लफ्ज़ मर गया है
उसको किसकी खबर करोगे मियां

और दिल-ए-दरवेश एक मदीना है
तुम मदीने में सैर करोगे मियां
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aaj bhi tingi ki qismat mein..

aaj bhi tingi ki qismat mein
sam-e-qaatil hai salsabeel nahin

sab khuda ke wakeel hain lekin
aadmi ka koi wakeel nahin

hai kushaada azal se roo-e-zameen
haram-o dair be-faseel nahin

zindagi apne rog se hai tabaah
aur darmaan ki kuchh sabeel nahin

tum bahut jaazib-o-jameel sahi
zindagi jaazib-o-jameel nahin

na karo bahs haar jaayogi
husn itni badi daleel nahin 
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आज भी तिनगी की क़िस्मत में
सम-ए-क़ातिल है सलसबील नहीं

सब ख़ुदा के वकील हैं लेकिन
आदमी का कोई वकील नहीं

है कुशादा अज़ल से रू-ए-ज़मीं
हरम-ओ- दैर बे-फ़सील नहीं

जिंदगी अपने रोग से है तबाह
और दरमाँ की कुछ सबील नहीं

तुम बहुत जाज़िब-ओ-जमील सही
ज़िंदगी जाज़िब-ओ-जमील नहीं

न करो बहस हार जाओगी
हुस्न इतनी बड़ी दलील नहीं
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nazar andaaz hai ghaayal pade hai..

nazar andaaz hai ghaayal pade hai
kai dariya kai jungle pade hai

nazar uthi hai uski meri jaanib
kai peshaaniyon par bal pade hai

main uska khat baha ke aaraha hu
mere baazu abhi tak shal pade hai

use kehna ke kal terrace par aaye
use kehna ke baadal chal pade hai 
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नज़र अंदाज है घायल पड़े है
कई दरिया कई जंगल पड़े है

नजर उठी है उसकी मेरी जानिब
कई पेशानियों पर बल पड़े है

मैं उसका ख़त बहा के आरहा हु
मेरे बाजू अभी तक शल पड़े है

उसे कहना के कल टेरिस पर आये
उसे कहना के बादल चल पड़े है
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ho jise yaar se tasdeeq nahin kar saka..

ho jise yaar se tasdeeq nahin kar saka
vo kisi sher ki tazheek nahin kar saka

pur-kashish dost mere hijr ki majboori samajh
main tujhe door se nazdeek nahin kar saka

mujh pe tanqeed se rahte hain ujaale jinmein
un dukano ko main tareek nahin kar saka

kaun se gham se nikalna hai kise rakhna hai
mas’ala ye hai main tafreek nahin kar saka

ped ko gaaliyaan bakne ke ilaava zaryoon
kya karein vo ke jo takhleeq nahin kar saka

sher to khair main tanhaai mein kah looga ali
apni haalat to main khud theek nahin kar saka

hijr se gujre bina ishq bataane waala
bahs kar saka hai tehqeeq nahin kar saka 
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हो जिसे यार से तस्दीक़ नहीं कर सकता
वो किसी शेर की तज़हीक नहीं कर सकता

पुर-कशिश दोस्त मेरे हिज्र की मजबूरी समझ
मैं तुझे दूर से नज़दीक नहीं कर सकता

मुझ पे तनकीद से रहते हैं उजाले जिनमें
उन दुकानों को मैं तारीक नहीं कर सकता

कौन से ग़म से निकलना है किसे रखना है
मस‌अला ये है मैं तफरीक नहीं कर सकता

पेड़ को गालियां बकने के इलावा ज़रयून
क्या करें वो के जो तख़लीक़ नहीं कर सकता

शेर तो खैर मैं तन्हाई में कह लूगा अली
अपनी हालत तो मैं खुद ठीक नहीं कर सकता

हिज्र से गुजरे बिना इश्क बताने वाला
बहस कर सकता है तहकीक नहीं कर सकता

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aasaan to ye kaar-e-wafa hota nahin hai..

aasaan to ye kaar-e-wafa hota nahin hai
kehne ko to kahte hain kiya hota nahin hai

awwal to main naraaz nahin hota hoon lekin
ho jaaun to phir mujh sa bura hota nahin hai

gusse mein to vo maa ki tarha hota hai bilkul
lagta hai khafa sach mein khafa hota nahin hai

tum mere liye jang karoge are chhodo
tumse to miyaan milne bhi aa hota nahin hai

ham apni mohabbat mein samajh le to samajh le
vaise kisi bande mein khuda hota nahin hai

kahte hain khuda vo hai ki jo kah de to sab ho
vaise mere kehne se bhi kya hota nahin hai

eimaan hai ya chaand ko laana hai zameen par
kahte ho ki le aata hoon la hota nahin hai

mujh par jo ali khaas karam hai to mere dost
har dil bhi to mujh jaisa siya hota nahin hai 
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आसान तो ये कार-ए-वफ़ा होता नहीं है
कहने को तो कहते हैं किया होता नहीं है

अव्वल तो मैं नाराज नहीं होता हूं लेकिन
हो जाऊं तो फिर मुझ सा बुरा होता नहीं है

गुस्से में तो वो मां की तरहा होता है बिल्कुल
लगता है खफा सच में खफा होता नहीं है

तुम मेरे लिए जंग करोगे अरे छोड़ो
तुमसे तो मियां मिलने भी आ होता नहीं है

हम अपनी मोहब्बत में समझ ले तो समझ ले
वैसे किसी बंदे में खुदा होता नहीं है

कहते हैं खुदा वो है की जो कह दे तो सब हो
वैसे मेरे कहने से भी क्या होता नहीं है

ईमान है या चांद को लाना है ज़मीं पर
कहते हो कि ले आता हूं ला होता नहीं है

मुझ पर जो अली खास करम है तो मेरे दोस्त
हर दिल भी तो मुझ जैसा सिया होता नहीं है
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lehje mein khanak baat mein dam hai to karam hai..

lehje mein khanak baat mein dam hai to karam hai
gardan dar-e-haider pe jo kham hai to karam hai

mat soch ki is ghar pe karam hai to alam hai
darasl tere ghar pe alam hai to karam hai

bistar pe kamar theek nahin lagti to khush ho
khuraak bhi ai yaar jo kam hai to karam hai

be-nisbat-o-be-ishq kahaan milti hai izzat
mujh pe mere maula ka karam hai to karam hai

munkir ki jalan hi mein to mumin ka maza hai
gar taana-o-tashnee-o-sitam hai to karam hai

ab jab ke koi haal bhi kyun pooche kisi ka
ik aankh mere vaaste nam hai to karam hai

ab jab ke koi aankh nahin rukti kisi par
jo koi jahaan jiska sanam hai to karam hai

midhat ka maza bhi ho taghazzul ki ada bhi
kuchh aisa sukhun tujhko bahm hai to karam hai

akhtar se ghazal-sazon ke hote hue zaryoon
thoda sa agar tera bharam hai to karam hai
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लहजे में खनक बात में दम है तो करम है
गर्दन दर-ए-हैदर पे जो ख़म है तो करम है

मत सोच कि इस घर पे करम है तो अलम है
दरअस्ल तेरे घर पे अलम है तो करम है

बिस्तर पे कमर ठीक नहीं लगती तो ख़ुश हो
ख़ुराक भी ऐ यार जो कम है तो करम है

बे-निस्बत-ओ-बे-इश्क कहाँ मिलती है इज़्ज़त
मुझ पे मेरे मौला का करम है तो करम है

मुंकिर की जलन ही में तो मोमिन का मज़ा है
गर ताना-ओ-तश्नी-ओ-सितम है तो करम है

अब जब के कोई हाल भी क्यूँ पूछे किसी का
इक आँख मेरे वास्ते नम है तो करम है

अब जब के कोई आँख नहीं रुकती किसी पर
जो कोई जहाँ जिसका सनम है तो करम है

मिदहत का मज़ा भी हो तग़ज़्ज़ुल की अदा भी
कुछ ऐसा सुख़न तुझको बहम है तो करम है

अख़्तर से ग़ज़ल-साज़ों के होते हुए 'ज़रयून'
थोड़ा सा अगर तेरा भरम है तो करम है
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us mohalle ke sab gharo ki khair..

us mohalle ke sab gharo ki khair
aur gharo mein jale diyon ki khair

maa main qurbaan tere gusse par
baba jaani ki jhidkiyon ki khair

tere ham-khwaab doston ke nisaar
teri ham-naam ladkiyon ki khair

jo tere khaddo khaal par honge
tere betau ki betiyon ki khair

jinka sardaar o peshwa mein hoon
tere haatho pooche huoon ki khair

tooti-footi likhaai ke sadke
pehli pehli mohabbaton ki khair

dushmanon ke liye dua yaani
teri jaanib ke doston ki khair

facebook se jo door baithe hain
un fakeeron ki baithkon ki khair

car mein baagh khil gaya jaise
gulbadan teri khushbuon ki khair

vo jo seenon pe das ke hansati hai
un havasnaak naginon ki khair 
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उस मोहल्ले के सब घरों की खैर
और घरों में जले दियों की खैर

मां मैं कुर्बान तेरे गुस्से पर
बाबा जानी की झिड़कियों की खैर

तेरे हम-ख्वाब दोस्तों के निसार
तेरी हम-नाम लड़कियों की खैर

जो तेरे खद्दो खाल पर होंगे
तेरे बेटौ की बेटियों की खैर

जिनका सरदार ओ पेशवा में हूं
तेरे हाथो पूछे हुओं की खैर

टूटी-फूटी लिखाई के सदके
पहली पहली मोहब्बतों की खैर

दुश्मनों के लिए दुआ यानी
तेरी जानिब के दोस्तों की खैर

फेसबुक से जो दूर बैठे हैं
उन फकीरों की बैठकों की खैर

कार में बाग़ खिल गया जैसे
गुलबदन तेरी खुशबुओं की खैर

वो जो सीनों पे डस के हंसती है
उन हवसनाक नागिनों की खैर
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chhukar dar-e-shifa ko shifa ho gaya hoon main..

chhukar dar-e-shifa ko shifa ho gaya hoon main
is arsa-e-waba mein dua ho gaya hoon main

ik be-nisha ke ghar ka pata ho gaya hoon main
har la dava ke gham ki dava ho gaya hoon main

main tha jo apni aap rukaavat tha sahiba
achha hua ki khud se juda ho gaya hoon main

tune udhar judaai ka socha hi tha idhar
baithe-bithaye tujh se rihaa ho gaya hoon main

tumko khabar nahin hai ki kya ban gaye ho tum
mujh ko to sab pata hai ki kya ho gaya hoon main

main hoon to log kyun mujhe kahte hain ki vo ho tum
gar tum nahin to kis mein fana ho gaya hoon main 
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छूकर दर-ए-शिफा को शिफा हो गया हूं मैं
इस अरसा-ए-वबा में दुआ हो गया हूं मैं

इक बे-निशा के घर का पता हो गया हूं मैं
हर ला दवा के ग़म की दवा हो गया हूं मैं

मैं था जो अपनी आप रुकावट था साहिबा
अच्छा हुआ कि ख़ुद से जुदा हो गया हूं मैं

तूने उधर जुदाई का सोचा ही था इधर
बैठे-बिठाए तुझ से रिहा हो गया हूं मैं

तुमको खबर नहीं है कि क्या बन गए हो तुम
मुझ को तो सब पता है कि क्या हो गया हूं मैं

मैं हूं तो लोग क्यूं मुझे कहते हैं कि वो हो तुम
गर तुम नहीं तो किस में फना हो गया हूं मैं
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nazarandaaz ho jaane ka zahar apni nason mein bhar raha hai kaun jaane..

nazarandaaz ho jaane ka zahar apni nason mein bhar raha hai kaun jaane
bahot sar-sabz ghazalon nazmon waala apne andar mar raha hai kaun jaane

akela shakhs ko apne kareebi mausamon mein kis tarah ke zakhm aaye
vo aakhir kislie maan-baap ki kabron pe jaate dar raha hai kaun jaane

ye jiske fez se apne paraaye jholiyaan bharte hue thakte nahin hai
ye chashma tere aane se bahot pehle talak patthar raha hai kaun jaane

jo pichhle tees barso se mohabbat shayari aur yaad se roothe hue the
tera shayar vo hi bacche vo hi boodhe ikatthe kar raha hai kaun jaane 
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नजरअंदाज हो जाने का ज़हर अपनी नसों में भर रहा है कौन जाने
बहोत सर-सब्ज़ ग़ज़लों नज़्मों वाला अपने अंदर मर रहा है कौन जाने

अकेले शख़्स को अपने करीबी मौसमों में किस तरह के ज़ख्म आए
वो आख़िर किसलिए मां-बाप की कब्रों पे जाते डर रहा है कौन जाने

ये जिसके फे़ज़ से अपने पराएं झोलियां भरते हुए थकते नहीं है
ये चश्मा तेरे आने से बहोत पहले तलक पत्थर रहा है कौन जाने

जो पिछले तीस बरसो से मोहब्बत, शायरी और याद से रूठे हुए थे
तेरा शायर वो ही बच्चे वो ही बूढ़े इकट्ठे कर रहा है कौन जाने
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tanj karna hai mujh par ajee kijie..

tanj karna hai mujh par ajee kijie
kar rahe hain sabhi aap bhi kijie

baat bhi kijie dekh bhi leejie
dekh bhi leejie baat bhi kijie

aap kyun kar rahe hain mere vaaste
aap apne liye shayari kijie

khandaani munaafiq hai aap isliye
doston ki jade khokhli kijie

aap is ke siva kar bhi sakte hain kya
yaani jo kar rahe hain wahi kijie

main kahaan rokta hoon sitam se bhala
kijie kijie jaan jee kijie

aa gaye aap ke aastaane par ham
ab buri kijie ya bhali kijie

leejie chhodta hoon main kaar-e-sukhan
meri jaanib se bhi aap hi kijie

vo ali ho mohabbat ho ya ishq ho
in se miliye yahaan zindagi kijie

kya hasad bhi koi kaam karne ka hai
aashiqi kijie dilbari kijie 
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तंज करना है मुझ पर अजी कीजिए
कर रहे हैं सभी आप भी कीजिए

बात भी कीजिए देख भी लीजिए
देख भी लीजिए बात भी कीजिए

आप क्यूं कर रहे हैं मेरे वास्ते
आप अपने लिए शायरी कीजिए

खानदानी मुनाफ़िक़ है आप इसलिए
दोस्तों की जड़े खोखली कीजिए

आप इस के सिवा कर भी सकते हैं क्या
यानी जो कर रहे हैं वही कीजिए

मैं कहां रोकता हूं सितम से भला
कीजिए कीजिए जान जी कीजिए

आ गए आप के आस्ताने पर हम
अब बुरी कीजिए या भली कीजिए

लीजिए छोड़ता हूं मैं कार-ए-सुखन
मेरी जानिब से भी आप ही कीजिए

वो अली हो मोहब्बत हो या इश्क हो
इन से मिलिए यहां जिंदगी कीजिए

क्या हसद भी कोई काम करने का है
आशिक़ी कीजिए दिलबरी कीजिए
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charaagahein nai aabaad hogi..

charaagahein nai aabaad hogi
magar jo bastiyaan barbaad hogi

khuda mitti ko phir se hukm dega
kai shaklein nai ijaad hogi

abhi mumkin nahin lekin ye hoga
kitaaben sahib-e-aulaad hogi

main un aankhon ko padhkar sochta hoon
ye nazmein kis tarah se yaad hogi

ye pariyaan phir nahin aayegi milne
ye ghazlein phir nahin irshaad hogi

main darta hoon ali un aadaton se
ke jo mujhko tumhaare baad hogi 
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चरागाहें न‌ई आबाद होगी
मगर जो बस्तियां बर्बाद होगी

खुदा मिट्टी को फिर से हुक्म देगा
कई शक्लें न‌ई ईजाद होगी

अभी मुमकिन नहीं लेकिन ये होगा
किताबें साहिब-ए-औलाद होगी

मैं उन आंखों को पढ़कर सोचता हूं
ये नज्में किस तरह से याद होगी

ये परियां फिर नहीं आएगी मिलने
ये ग़ज़लें फिर नहीं इरशाद होगी

मैं डरता हूं अली उन आदतों से
के जो मुझको तुम्हारे बाद होगी
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chupchaap kyun firo ho koi baat to karo..

chupchaap kyun firo ho koi baat to karo
hal bhi nikaalte hain mulaqaat to karo

khaali hawa mein udna fakeeri nahin miyaan
dil jod ke dikhaao karaamaat to karo

kheton ko kha gai hai ye shehrili bastiyaan
sahab ilaaj-e-ranj-e-muzaafat to karo 
---------------------------------------
चुपचाप क्यों फिरो हो कोई बात तो करो
हल भी निकालते हैं मुलाकात तो करो

ख़ाली हवा में उड़ना फकीरी नहीं मियां
दिल जोड़ के दिखाओ करामात तो करो

खेतों को खा गई है ये शहरिली बस्तियां
साहब इलाज-ए-रंज-ए-मुज़ाफ़ात तो करो
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mere dil mein ye tere siva kaun hai..

mere dil mein ye tere siva kaun hai
tu nahin hai to teri jagah kaun hai

ham mohabbat mein haare hue log hain
aur mohabbat mein jeeta hua kaun hai

mere pahluu se uth ke gaya kaun hai
tu nahin hai to teri jagah kaun hai

tune jaate hue ye bataaya nahin
main tera kaun hoon tu mera kaun hai 
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मेरे दिल में ये तेरे सिवा कौन है?
तू नहीं है तो तेरी जगह कौन है?

हम मोहब्बत में हारे हुए लोग हैं
और मोहब्बत में जीता हुआ कौन है?

मेरे पहलू से उठ के गया कौन है?
तू नहीं है तो तेरी जगह कौन है?

तूने जाते हुए ये बताया नहीं
मैं तेरा कौन हूँ तू मेरा कौन है
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zakhamo ne mujh mein darwaaze khole hain..

zakhamo ne mujh mein darwaaze khole hain
maine waqt se pehle taanke khole hain

baahar aane ki bhi sakat nahin ham mein
tune kis mausam mein pinjare khole hain

kaun hamaari pyaas pe daaka daal gaya
kis ne maskejo ke tasme khole hain

yoon to mujhko kitne khat mosul hue
ek do aise the jo dil se khole hain

ye mera pehla ramjaan tha uske bagair
mat poocho kis munh se rozay khole hain

varna dhoop ka parvat kis se katata tha
usne chhatri khol ke raaste khole hain 
-----------------------------------------
जख्मों ने मुझ में दरवाजे खोले हैं
मैंने वक्त से पहले टांके खोलें हैं

बाहर आने की भी सकत नहीं हम में
तूने किस मौसम में पिंजरे खोले हैं

कौन हमारी प्यास पे डाका डाल गया
किस ने मस्कीजो के तसमे खोले हैं

यूं तो मुझको कितने खत मोसुल हुए
एक दो ऐसे थे जो दिल से खोलें हैं

ये मेरा पहला रमजान था उसके बगैर
मत पूछो किस मुंह से रोज़े खोलें हैं

वरना धूप का पर्वत किस से कटता था
उसने छतरी खोल के रास्ते खोले हैं
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maheenon baad daftar aa rahe hain..

maheenon baad daftar aa rahe hain
ham ek sadme se baahar aa rahe hain

teri baahon se dil ukta gaya hain
ab is jhoole mein chakkar aa rahe hain

kahaan soya hai chaukidaar mera
ye kaise log andar aa rahe hain

samandar kar chuka tasleem hamko
khajaane khud hi oopar aa rahe hain

yahi ek din bacha tha dekhne ko
use bas mein bitha kar aa rahe hain
------------------------------------
महीनों बाद दफ्तर आ रहे हैं
हम एक सदमे से बाहर आ रहे हैं

तेरी बाहों से दिल उकता गया हैं
अब इस झूले में चक्कर आ रहे हैं

कहां सोया है चौकीदार मेरा
ये कैसे लोग अंदर आ रहे हैं

समंदर कर चुका तस्लीम हमको
खजाने ख़ुद ही ऊपर आ रहे हैं

यही एक दिन बचा था देखने को
उसे बस में बिठा कर आ रहे हैं
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ghalat nikle sab andaaze hamaare..

ghalat nikle sab andaaze hamaare
ki din aaye nahi achhe hamaare

safar se baaz rahne ko kaha hain
kisi ne khol ke tasmee hamaare

har ik mausam bahut andar tak aaya
khule rahte the darwaaze hamaare

us abr-e-mehrban se kya shikaayat
agar bartan nahin bharte hamaare 
-----------------------------------
ग़लत निकले सब अंदाज़े हमारे
कि दिन आये नही अच्छे हमारे

सफ़र से बाज़ रहने को कहा हैं
किसी ने खोल के तस्मे हमारे

हर इक मौसम बहुत अंदर तक आया
खुले रहते थे दरवाज़े हमारे

उस अब्र-ए-मेहरबाँ से क्या शिकायत
अगर बर्तन नहीं भरते हमारे
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haan ye sach hai ki mohabbat nahin ki..

haan ye sach hai ki mohabbat nahin ki
dost bas meri tabiyat nahin ki

isliye gaanv main sailaab aaya
hamne daryaao ki izzat nahin ki

jism tak usne mujhe saunp diya
dil ne is par bhi kanaayat nahin ki

mere ejaz mein rakhi gai thi
maine jis bazm mein shirkat nahin ki

yaad bhi yaad se rakha usko
bhool jaane mein bhi gafalat nahin ki

usko dekha tha ajab haalat mein
phir kabhi uski hifaazat nahin ki

ham agar fatah hue hai to kya
ishq ne kis pe hukoomat nahin ki 
-------------------------------------
हां ये सच है कि मोहब्बत नहीं की
दोस्त बस मेरी तबीयत नहीं की

इसलिए गांव मैं सैलाब आया
हमने दरियाओ की इज्जत नहीं की

जिस्म तक उसने मुझे सौंप दिया
दिल ने इस पर भी कनायत नहीं की

मेरे एजाज़ में रखी गई थी
मैने जिस बज़्म में शिरकत नहीं की

याद भी याद से रखा उसको
भूल जाने में भी गफलत नहीं की

उसको देखा था अजब हालत में
फिर कभी उसकी हिफाज़त नहीं की

हम अगर फतह हुए है तो क्या
इश्क ने किस पे हकूमत नहीं की
Read more

kab paani girne se khushboo footi hai..

kab paani girne se khushboo footi hai
mitti ko bhi ilm hai baarish jhoothi hai

ek rishte ko laaparwaahi le doobi
ek rassi dheeli padne par tooti hai

haath milaane par bhi us pe khula nahin
ye ungli par zakham hai ya angoothi hai

uska hansna naa-mumkin tha yun samjho
seement ki deewaar se kopale footi hai

hamne in par sher nahin likkhe haafi
hamne in pedon ki izzat looti hai

yun lagta hai deen-o-duniya chhoot gaye
mujh se tere shehar ki bas kya chhooti hai 
-----------------------------------------------
कब पानी गिरने से ख़ुशबू फूटी है
मिट्टी को भी इल्म है बारिश झूठी है

एक रिश्ते को लापरवाही ले डूबी
एक रस्सी ढीली पड़ने पर टूटी है

हाथ मिलाने पर भी उस पे खुला नहीं
ये उँगली पर ज़ख़्म है या अँगूठी है

उसका हँसना ना-मुमकिन था यूँ समझो
सीमेंट की दीवार से कोपल फूटी है

हमने इन पर शेर नहीं लिक्खे हाफ़ी
हमने इन पेड़ों की इज़्ज़त लूटी है

यूँ लगता है दीन-ओ-दुनिया छूट गए
मुझ से तेरे शहर की बस क्या छूटी है
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ye shayari ye mere seene mein dabii hui aag..

ye shayari ye mere seene mein dabii hui aag
bhadak uthegi kabhi meri jama ki hui aag

main choo raha hoon tera jism khwaab ke andar
bujha raha hoon main tasveer mein lagi hui aag

khijaan mein door rakho maachiso ko jungle se
dikhaai deti nahin ped mein chhupi hui aag

main kaatta hoon abhi tak wahi kate hue lafz
main taapta hoon abhi tak wahi bujhi hui aag

yahi diya tujhe pehli nazar mein bhaaya tha
khareed laaya main teri pasand ki hui aag

ek umr se jal bujh raha hoon inke sabab
tera bacha hua paani teri bachi hui aag
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ये शायरी ये मेरे सीने में दबी हुई आग
भड़क उठेगी कभी मेरी जमा की हुई आग

मैं छू रहा हूं तेरा जिस्म ख्वाब के अंदर
बुझा रहा हूं मैं तस्वीर में लगी हुई आग

खिजां में दूर रखो माचिसो को जंगल से
दिखाई देती नहीं पेड़ में छुपी हुई आग

मैं काटता हूं अभी तक वही कटे हुए लफ्ज़
मैं तापता हूं अभी तक वही बुझी हुई आग

यही दिया तुझे पहली नजर में भाया था
खरीद लाया मैं तेरी पसंद की हुई आग

एक उम्र से जल बूझ रहा हूं इनके सबब
तेरा बचा हुआ पानी तेरी बची हुई आग
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meri aankh se tera gam chhalk to nahin gaya..

meri aankh se tera gam chhalk to nahin gaya
tujhe dhoondh kar kahi main bhatk to nahin gaya

yah jo itne pyaar se dekhta hai tu aajkal
mere dost tu kahi mujhse thak to nahin gaya

teri baddua ka asar hua bhi to faayda
mere maand padne se tu chamak to nahin gaya

bada purfareb hai shahdo shir ka zaayka
magar in labon se tera namak to nahin gaya

tere jism se meri guftagoo rahi raat bhar
kahi main nashe mein zyaada bak to nahin gaya 
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मेरी आंख से तेरा गम छलक तो नहीं गया
तुझे ढूंढ कर कहीं मैं भटक तो नहीं गया

यह जो इतने प्यार से देखता है तू आजकल
मेरे दोस्त तू कहीं मुझसे थक तो नहीं गया

तेरी बद्दुआ का असर हुआ भी तो फायदा
मेरे मांद पड़ने से तू चमक तो नहीं गया

बड़ा पुरफरेब है शहदो शिर का ज़ायका
मगर इन लबों से तेरा नमक तो नहीं गया

तेरे जिस्म से मेरी गुफ्तगू रही रात भर
कहीं मैं नशे में ज्यादा बक तो नहीं गया
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yah soch kar mera sehra mein jee nahin lagta..

yah soch kar mera sehra mein jee nahin lagta
main shaamile safe aawaargi nahin lagta

kabhi-kabhi vo khuda ban ke saath chalta hai
kabhi-kabhi to vo insaan bhi nahin lagta

yakeen kyun nahin aata tujhe mere dil par
ye fal kahaan se tujhe mausami nahin lagta

main chahta hoon vo meri jabeen pe bausa de
magar jali hui roti ko ghee nahin lagta

tere khyaal se aage bhi ek duniya hai
tera khyaal mujhe sarsari nahin lagta

main uske paas kisi kaam se nahin aata
use ye kaam koi kaam hi nahin lagta 
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यह सोच कर मेरा सहरा में जी नहीं लगता
मैं शामिले सफे आवारगी नहीं लगता

कभी-कभी वो ख़ुदा बन के साथ चलता है
कभी-कभी तो वो इंसान भी नहीं लगता

यकीन क्यों नहीं आता तुझे मेरे दिल पर
ये फल कहां से तुझे मौसमी नहीं लगता

मैं चाहता हूं वो मेरी जबीं पे बौसा दे
मगर जली हुई रोटी को घी नहीं लगता

तेरे ख्याल से आगे भी एक दुनिया है
तेरा ख्याल मुझे सरसरी नहीं लगता

मैं उसके पास किसी काम से नहीं आता
उसे ये काम कोई काम ही नहीं लगता
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paayal kabhi pahne kabhi kangan use kehna..

paayal kabhi pahne kabhi kangan use kehna
le aaye muhabbat mein nayaapan use kehna

maykash kabhi aankhon ke bharose nahin rahte
shabnam kabhi bharti nahin bartan use kehna

ghar-baar bhula deti hai dariya ki muhabbat
kashti mein guzaar aaya hoon jeevan use kehna

ik shab se ziyaada nahin duniya ki maseri
ik shab se ziyaada nahin dulhan use kehna

rah rah ke dahak uthati hai ye aatish-e-vahshat
deewane hai seharaaon ka eendhan use kehna
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पायल कभी पहने कभी कंगन उसे कहना
ले आए मुहब्बत में नयापन उसे कहना

मयकश कभी आँखों के भरोसे नहीं रहते
शबनम कभी भरती नहीं बर्तन उसे कहना

घर-बार भुला देती है दरिया की मुहब्बत
कश्ती में गुज़ार आया हूँ जीवन उसे कहना

इक शब से ज़ियादा नहीं दुनिया की मसेरी
इक शब से ज़ियादा नहीं दुल्हन उसे कहना

रह रह के दहक उठती है ये आतिश-ए-वहशत
दीवाने है सहराओं का ईंधन उसे कहना
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mujh se milta hai par jism ki sarhad paar nahin karta..

mujh se milta hai par jism ki sarhad paar nahin karta
iska matlab tu bhi mujhse saccha pyaar nahin karta

dushman achha ho to jang mein dil ko thaaras rahti hai
dushman achha ho to vo peeche se vaar nahin karta

roz tujhe toote dil kam qeemat par lena padte hain
isse achha tha tu ishq ka kaarobaar nahin karta 
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मुझ से मिलता है पर जिस्म की सरहद पार नहीं करता
इसका मतलब तू भी मुझसे सच्चा प्यार नहीं करता

दुश्मन अच्छा हो तो जंग में दिल को ठारस रहती है
दुश्मन अच्छा हो तो वो पीछे से वार नहीं करता

रोज तुझे टूटे दिल कम क़ीमत पर लेना पड़ते हैं
इससे अच्छा था तू इश्क़ का कारोबार नहीं करता
 
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shaitaan ke dil par chalta hoon seenon mein safar karta hoon..

shaitaan ke dil par chalta hoon seenon mein safar karta hoon
us aankh ka kya bachta hai mai jis aankh mein ghar karta hoon

jo mujh mein utre hain unko meri lehron ka andaaza hai
daryaao mein uthata baithta hoon sailaab basar karta hoon

meri tanhaai ka bojh tumhaari binaai le doobega
mujhe itna qareeb se mat dekho aankhon par asar karta hoon 
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शैतान के दिल पर चलता हूं सीनों में सफर करता हूं
उस आंख का क्या बचता है मै जिस आंख में घर करता हूं

जो मुझ में उतरे हैं उनको मेरी लहरों का अंदाजा है
दरियाओ में उठता बैठता हूं सैलाब बसर करता हूं

मेरी तन्हाई का बोझ तुम्हारी बिनाई ले डूबेगा
मुझे इतना करीब से मत देखो आंखों पर असर करता हूं
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aaine aankh mein chubhte the bistar se badan katraata tha..

aaine aankh mein chubhte the bistar se badan katraata tha
ek yaad basar karti thi mujhe mai saans nahin le paata tha

ek shakhs ke haath mein tha sab kuchh mera khilna bhi murjhaana bhi
rota tha to raat ujad jaati hansata tha to din ban jaata tha

mai rab se raabte mein rehta mumkin hai ki us se raabta ho
mujhe haath uthaana padte the tab jaakar vo phone uthaata tha

mujhe aaj bhi yaad hai bachpan mein kabhi us par nazar agar padti
mere baste se phool barsate the meri takhti pe dil ban jaata tha

ham ek zindaan mein jinda the ham ek janjeer mein badhe hue
ek doosre ko dekh kar ham kabhi hansate the to rona aata tha

vo jism nazarandaaz nahin ho paata tha in aankhon se
mujrim thehrata tha apna kehne ko to ghar thehrata tha 
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आईने आंख में चुभते थे बिस्तर से बदन कतराता था
एक याद बसर करती थी मुझे मै सांस नहीं ले पाता था

एक शख्स के हाथ में था सब कुछ मेरा खिलना भी मुरझाना भी
रोता था तो रात उजड़ जाती हंसता था तो दिन बन जाता था

मै रब से राब्ते में रहता मुमकिन है की उस से राब्ता हो
मुझे हाथ उठाना पड़ते थे तब जाकर वो फोन उठाता था

मुझे आज भी याद है बचपन में कभी उस पर नजर अगर पड़ती
मेरे बस्ते से फूल बरसते थे मेरी तख्ती पे दिल बन जाता था

हम एक ज़िंदान में जिंदा थे हम एक जंजीर में बढ़े हुए
एक दूसरे को देख कर हम कभी हंसते थे तो रोना आता था

वो जिस्म नजरअंदाज नहीं हो पाता था इन आंखों से
मुजरिम ठहराता था अपना कहने को तो घर ठहराता था
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nahin aata kisi par dil hamaara..

nahin aata kisi par dil hamaara
wahi kashti wahi saahil hamaara

tere dar par karenge naukri ham
teri galiyaan hain mustaqbil hamaara

kabhi milta tha koi hotelon mein
kabhi bharta tha koi bill hamaara 
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नहीं आता किसी पर दिल हमारा
वही कश्ती वही साहिल हमारा

तेरे दर पर करेंगे नौकरी हम
तेरी गलियाँ हैं मुस्तक़बिल हमारा

कभी मिलता था कोई होटलों में
कभी भरता था कोई बिल हमारा
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tujhe bhi apne saath rakhta aur use bhi apna deewaana bana leta..

tujhe bhi apne saath rakhta aur use bhi apna deewaana bana leta
agar main chahta to dil mein koi chor darwaaza bana leta

main apne khwaab poore kar ke khush hoon par ye pachtawa nahi jaata
ke mustaqbil banaane se to achha tha tujhe apna bana leta

akela aadmi hoon aur achaanak aaye ho jo kuchh tha haazir hai
agar tum aane se pehle bata dete to kuchh achha bana leta 
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तुझे भी अपने साथ रखता और उसे भी अपना दीवाना बना लेता
अगर मैं चाहता तो दिल में कोई चोर दरवाज़ा बना लेता

मैं अपने ख्वाब पूरे कर के खुश हूँ पर ये पछतावा नही जाता
के मुस्तक़बिल बनाने से तो अच्छा था तुझे अपना बना लेता

अकेला आदमी हूँ और अचानक आये हो, जो कुछ था हाजिर है
अगर तुम आने से पहले बता देते तो कुछ अच्छा बना लेता
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ye kis tarah ka taalluq hai aapka mere saath..

ye kis tarah ka taalluq hai aapka mere saath
mujhe hi chhod ke jaane ka mashwara mere saath

yahi kahi hamein raston ne baddua di thi
magar main bhul gaya aur kaun tha mere saath

vo jhaankta nahin khidki se din nikalta hai
tujhe yakeen nahin aa raha to aa mere saath 
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ये किस तरह का ताल्लुक है आपका मेरे साथ
मुझे ही छोड़ के जाने का मशवरा मेरे साथ

यही कहीं हमें रस्तों ने बद्दुआ दी थी
मगर मैं भुल गया और कौन था मेरे साथ

वो झांकता नहीं खिड़की से दिन निकलता है
तुझे यकीन नहीं आ रहा तो आ मेरे साथ
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jo tere saath rahte hue sogwaar ho..

jo tere saath rahte hue sogwaar ho
laanat ho aise shakhs pe aur beshumaar ho

ab itni der bhi na laga ye ho na kahi
tu aa chuka ho aur tera intezar ho

mai phool hoon to phir tere baalo mein kyun nahi hoon
tu teer hai to mere kaleje ke paar ho

ek aasteen chadhaane ki aadat ko chhod kar
haafi tum aadmi to bahut shaandaar ho

kab tak kisi se koi mohabbat se pesh aaein
usko mere ravayye par dukh hai to yaar ho 
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जो तेरे साथ रहते हुए सोगवार हो
लानत हो ऐसे शख़्स पे और बेशुमार हो

अब इतनी देर भी ना लगा, ये हो ना कहीं
तू आ चुका हो और तेरा इंतज़ार हो

मै फूल हूँ तो फिर तेरे बालो में क्यों नही हूँ
तू तीर है तो मेरे कलेजे के पार हो

एक आस्तीन चढ़ाने की आदत को छोड़ कर
‘हाफ़ी’ तुम आदमी तो बहुत शानदार हो

कब तक किसी से कोई मोहब्बत से पेश आएं
उसको मेरे रवय्ये पर दुख है तो यार हो
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ek aur shakhs chhodkar chala gaya to kya hua..

ek aur shakhs chhodkar chala gaya to kya hua
hamaare saath kaun sa ye pehli martaba hua

azl se in hateliyon mein hijr ki lakeer thi
tumhaara dukh to jaise mere haath mein bada hua

mere khilaaf dushmanon ki saf mein hai vo aur main
bahut bura lagunga us par teer kheenchta hua 
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एक और शख़्स छोड़कर चला गया तो क्या हुआ
हमारे साथ कौन सा ये पहली मर्तबा हुआ।

अज़ल से इन हथेलियों में हिज्र की लकीर थी
तुम्हारा दुःख तो जैसे मेरे हाथ में बड़ा हुआ

मेरे खिलाफ दुश्मनों की सफ़ में है वो और मैं
बहुत बुरा लगूँगा उस पर तीर खींचता हुआ
 
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jaane waale se raabta rah jaaye..

jaane waale se raabta rah jaaye
ghar ki deewaar par diya rah jaaye

ik nazar jo bhi dekh le tujh ko
vo tire khwaab dekhta rah jaaye

itni girhen lagi hain is dil par
koi khole to kholta rah jaaye

koi kamre mein aag taapta ho
koi baarish mein bheegta rah jaaye

neend aisi ki raat kam pad jaaye
khwaab aisa ki munh khula rah jaaye

jheel saif-ul-mulook par jaaun
aur kamre mein camera rah jaaye 
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जाने वाले से राब्ता रह जाए
घर की दीवार पर दिया रह जाए

इक नज़र जो भी देख ले तुझ को
वो तिरे ख़्वाब देखता रह जाए

इतनी गिर्हें लगी हैं इस दिल पर
कोई खोले तो खोलता रह जाए

कोई कमरे में आग तापता हो
कोई बारिश में भीगता रह जाए

नींद ऐसी कि रात कम पड़ जाए
ख़्वाब ऐसा कि मुँह खुला रह जाए

झील सैफ़-उल-मुलूक पर जाऊँ
और कमरे में कैमरा रह जाए
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jab kisi ek ko rihaa kiya jaaye..

jab kisi ek ko rihaa kiya jaaye
sab asiroon se mashwara kiya jaaye

rah liya jaaye apne hone par
apne marne pe hausla kiya jaaye

ishq karne mein kya buraai hai
haan kiya jaaye baarha kiya jaaye

mera ik yaar sindh ke us paar
na-khudaon se raabta kiya jaaye

meri naqlein utaarne laga hai
aaine ka batao kya kiya jaaye

khaamoshi se lada hua ik ped
is se chal kar mukaalima kiya jaaye 
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जब किसी एक को रिहा किया जाए
सब असीरों से मशवरा किया जाए

रह लिया जाए अपने होने पर
अपने मरने पे हौसला किया जाए

इश्क़ करने में क्या बुराई है
हाँ किया जाए बारहा किया जाए

मेरा इक यार सिंध के उस पार
ना-ख़ुदाओं से राब्ता किया जाए

मेरी नक़लें उतारने लगा है
आईने का बताओ क्या किया जाए

ख़ामुशी से लदा हुआ इक पेड़
इस से चल कर मुकालिमा किया जाए
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